Monday, December 31, 2012

दामिनी की अमर-ज्योति नभ से भूतल तक....


आशा की अक्षुण ज्योति
( चित्र- टाइम्स ऑफ इंडिया के सौजन्य से)


मेरी एक परिचित, शिखा जी , जो दिल्ली में रहती हैं उनसे दो दिन पहले फेसबुक पर मेरी बातचीत हुई तो हम सभी की तरह वे भी दामिनी की मृत्यु से अति दुःखी व सदमें में थी। हमारी बातचीत का सारांश इस प्रकार है-

शिखाः सर मैं दामिनी के बारे में पढ़ रही हूँ जो लोगों ने फेसबुक पर कमेंट व शेयर किया है।बहुत सोचती हूँ सर और आँसू भी नहीं रुकते...क्या करूँ समझ नहीं  आ रहा है। सर सही में अब दिल्ली में डर लगने लगा है।पता नहीं लोग उसकी फोटों क्यों डाल रहे हैं।सर उसकी रुह परेशान है और हम सभी के अंदर तक समा चुकी है।

मैः .... किंतु जो दामिनी के साथ हादसा हुआ है, वह हमारे देश, खास तौर पर देश की राजधानी दिल्ली,की अराजक स्थिति का एक पहलू मात्र है,सच पूछिये तो इसी प्रकार की अराजकता,अन्याय, व अपराधप्रवृत्ति हमारे समाज के लगभग अधिकांश पक्षों में वर्तमान हैं, प्रायः हमारे जीवन क अधिकाँश पक्ष इसी प्रकार की अराजकता से घिरे हुये हैं। सरकार व पुलिस के नाकारेपन को जाने भी दें तो, समाज व व्यक्ति के स्तर पर भी क्या कम अराजकता है , खास तौर पर महिलाओं के साथ हिंसा व शोषण, जैसे दहेज , कन्या भ्रूण हत्या की अपराध-घटनाओं को  क्या दामिनी की जघन्य हत्या से किसी भी प्रकार से कम ठहराया जा सकता है।आखिर जो हम बोयेंगे, वहीं तो काटेंगे।

शिखाः सर आप विश्वास नहीं करेंगे, कल रात मैं और मेरी दोस्त अपने जीवन के पुराने स्मृतियों को स्मरण कर रहे तो यह अनुभव हुआ कि जिस प्रकार की छेड़खानियों से मैं कानपुर में गुजरी हूँ , ठीक उसी प्रकार का त्रासद अनुभव मेरी मित्र का गया में भी हुआ था।यह सब सोचकर ही जी सिहर उठता है कि हमारे देश के हर हिस्से में ही हम महिलायें असुरक्षित हैं व अपमानित होने को बाध्य है।पूरी रात उस लड़की (दामिनी) का चेहरा हमारी जेहन में सामने आता रहा।कभी आरुषी की नृशंश हत्या की याद ताजा हो जाती तो कभी निठारी में छोटी मासूम बच्चियों की जघन्य हत्या का स्मरण हो जाता व आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं लेते। क्या ऐसे ही होता रहेगा हमारे देश में। क्या नारी का जन्म लेना गुनाह है इस देश में।

मैः जिस देश में अराजकता, भ्रष्टाचार, अन्याय व पाखंड का चारों और बोल-बाला हो वहाँ भला इन तरह के हादसों के अलावा क्या घटित होने की अपेक्षा कर सकते हैं। जहाँ गुंडे,कत्ली,अपहरणकर्ता, आतंकी कानून के शिंकजे से दूर खुलेआम निर्भय घूमते हों और हद तब हो जाती है कि सारे अपराधों व अभियोगों के बावजूद वेही एक दिन हमारे जनप्रतिनिधि बन देश की उच्च विधायी संस्थाओं संसद व विधानसभा में माननीय सदस्य के रूप में बैठते हों और हमारे संविधान के रक्षा करने की झूठी कसम खाते हों और उसी संविधान का स्वयं बलात्कार करते हों,वहाँ इस तरह के हादसों के अलावा क्या घटित होने की आशा कर सकते हैं।इसके अलावा आम आदमी का व्यक्तिगत जीवन व आचरण क्या कम पाखंड पूर्ण है ।

हमें समझना चाहिये कि न्याय निरपेक्ष होता है,न्याय व पाखंड में जमीन-आसमान का फर्क होता है, न्याय की परिभाषा स्थाई होती है, इसे सुविधा अनुसार व व्यक्ति-व्यक्ति में फर्क करके बदला नहीं जाता,जैसा की हमारे देश व समाज में प्रायः होता है।प्रथम तो हम सभी को अपने गिरेबान में झाँककर , आत्मनिरीक्षण करना होगा, हमें व्यक्तिगत स्तर पर ईमानदारी, विधिसंगत व पाखंडरहित बनना पड़ेगा तभी हम किसी बदलाव की काबिलियत व आशा रख सकते हैं।

दामिनी की हत्या अपराधियों द्वारा किया एक जघन्य अपराध है, पर उस जघन्य अपराध का क्या जो हमारे सभ्य घरों में सोच-समझ कर व पूरी तैयारी के साथ रोज किया जाता है, व लाखों कन्याशिशुओं को जन्म के पहले माँ के गर्भ में ही उनके ही माता-पिता रिश्तेदारों द्वारा ही मार दिया जाता है, क्या यह किसी जघन्य हत्या व अपराध से किसी प्रकार कम है।क्या दहेज के नाम पर जिस युवती को अपने ही लोग उसे जलाकर मार डालते है, क्या यह दामिनी की जघन्य बलात्कार व हत्या से कम जघन्य अपराध है।वास्तविकता तो यह है कि हम और हमारा समाज एक पाखंडी व अपराधी समाज है, जो एक तरफ तो यत्र नार्यस्त पूज्यंते, रमंते तत्र देवता का मिथ्याभाषण देता है, तो दूसरी और स्त्री की मर्यादा व उसके अस्तित्व को गाजर-मूली समझकर काटता व कुचलता व दमन करता रहता है।

शिखाः जी.....पता नहीं कभी हालात बदलेंगे भी या नहीं, हमें तो बड़ी निराशा सी हो रही है।

मैः मैं समझता व विश्वास करता हूँ कि हालात बदलेंगे, जैसे जैसे नारी ज्यादा सशक्त होगी,शिक्षा,कार्य-रोजगार,नौकरी में उसकी ज्यादा से ज्यादा भागीदारी व उसकी आर्थिक आत्मनिर्भरता व आजादी बढ़ेगी , उससे हालात जरूर बदलेगे, बेहतर होंगे।मेरी समझ में महिलाओं की आर्थिक व व्यवसायिक आजादी व आत्मनिर्भरता निश्चय ही एक प्रभावी बदलाव लायेगी।

शिखाः सर मुझे तो लगता है कि सरकार को स्कूलों में कक्षा 1 से ही लडकियों हेतु आत्म-रक्षा की ट्रेनिंग अनिवार्य कर देनी चाहिये , क्योंकि अगर फिर से कभी कोई किसी और दामिनी की जान व आबरू पर हाथ उठाये तो वह अपनी आत्मरक्षा में कुछ-न-कुछ तो कर सके।

मैः ( हँसते हुये) सरकार की जो प्राथमिक जिम्मेदारी व कर्तव्य है, नियम व कानून का पालन सुनिश्चित करना ,सभी को प्राथमिक शिक्षा मुहैया करना, वह तक तो कर नहीं पाती, तो भला सरकार से सबकुछ अपेक्षा करने का क्या औचित्य है।सरकार के पास कोई अलादीन का चिराग थोड़े ही है, कि वह सब कुछ कर देगी।सरकार को भी तो हमारे पाखंडी व लाचार समाज के व्यक्ति ही चलाते हैं।

शिखाः तो सर हमें ही अपने-अपने घरों में इसकी शुरुआत करनी होगी।

मैः आत्मरक्षा की बात तो ठीक है परंतु हम किन-किन मुद्दों व मसलों के लिये व किससे-किससे शारीरिक लड़ाई लड़ सकते हैं व क्या यह प्रायोगिक रूप से संभव भी है।अकेला आदमी हो अथवा औरत, वह कितने गुंडों,अपराधियों या मवालियों का अकेलेदम सामना कर सकता है।कोई भी व्यक्ति, आदमी हो या औरत, सुरक्षित तो तभी है न जब पूरा परिवेश सुरक्षित है। यदि हम समाज में महिलाओं  की सुरक्षा के प्रति वास्तव में गंभीर हैं तो हमें पूरे परिवेश व समाज को ही सुरक्षित बनाना होगा। मेरी समझ में तो यदि लड़कियाँ अपने घर में सशक्त व सुरक्षित हैं, तो स्वाभाविक रूप में समाज में भी सशक्त व सुरक्षित होंगी।

शिखाः सर हमें कहीं न कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी न.....अपनी लड़कियों को जूडो,तायकंडो सिखाकर हम कुछ हद तो उन्हे सुरक्षित कर सकते हैं न...

मैः पता नहीं, मेरी समझ से क्रूर अपराधियों से सीधे तौर पर हाथापाई व सीधी लड़ाई करके अकेला व्यक्ति नहीं निपट सकता है। अपराधियों व बलात्कार जैसे अपराध करने वाले अराजक व हिंसक राक्षसों से निपटने के लिये तो विधिसंगत प्रशासन व द्रुत न्याय निस्तारण अनिवार्य ही है। यह कार्य तो सरकार द्वारा ही सुनिश्चित किया जा सकता है, यही सरकार का मुख्य कार्य भी है।

हाँ अलबत्ता व्यक्तिगत व समाज के स्तर पर लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा शिक्षित करने,उन्हें समाज व जीवन के हर सामान्य कार्यक्षेत्र में बराबर की हिस्सेदारी हासिल करने हेतु प्रोत्साहित करने जैसे कदम उठाकर हम इस दिशा में अति प्रधान व महत्वपूर्ण भूमिका  निभा सकते हैं।ज्यादा से ज्यादा लड़कियां नौकरी पर जायें,पुलिस फोर्स,जनयातायात सेवाओं,ट्रैफिक पुलिस,न्याय व कानूनसेवा,राजनीति व विधायिका, जनसेवा संबंधित कार्यस्थलों,कार्यालयों इत्यादि में ज्यादा से ज्यादा महिला शक्ति शामिल हो तो स्वाभाविक रूप से महिलायों पर होने वाले इस तरह के पाशविक हमले व अनाचार कमतर होंगे,उन्हे न्याय मिल सकेगा व वे अधिकांशतः निर्भय व सुरक्षित होंगी।

शिखाः जी...

मैः मैं आपको बताऊँ कि अमरीका में एक आश्यर्यजनक बात देखता था कि वहाँ जन-यातायात बसों, स्कूल-बसों की चालक अधिकांशतः महिलायें हैं।इसी प्रकार किसी भी जन सेवा कार्यालय व स्थान,यहाँ तक कि पुलिस में भी महिलाओं की भारी तादाद दिखती है, अतः स्वाभाविक रूप से महिलाओं के विरुद्ध लिंग- आपराधिक घटनायें,जैसे बलात्कार इत्यादि, न्यूनतम होते हैं। कल्पना करें कि यदि दिल्ली में भी अमरीका की ही तरह आधे से ज्यादा बस कंडक्टर व चालक महिलायें हों तो क्या दामिनी जैसे हादसे, जो कि यहाँ आम बात है, संभव होंगे।

शिखाः जी .... । सुना है कि हमारे देश के दक्षिणी राज्यों जैसे आंध्रप्रदेश में भी काफी महिलायें बस कंडक्टर हैं।

मैः बगलौर में भी जनपरिवहन बसों में मैं  इक्का-दुक्का महिला कंडक्टर देखता हूँ। इसी प्रकार ट्रैफिक पुलिस में भी इक्का-दुक्का महिलायें नजर आ जाती हैं। किंतु समाधान व बदलाव की स्थिति तो तब होगी जब उनकी तादाद बहुतायत में हो, जैसा कि अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों में दिखता है।

इस प्रकार हमारी हो रही वार्ता नेट के व्यवधान वश बीच में ही समाप्त हो गयी।किंतु इस वार्ता से जहाँ मन में दामिनी के प्रति हुये दुराचार,पाशविक हिंसा व अंततः उसकी मृत्यु का अपार दुःख व क्षोभ हो रहा था वहीं यह विश्वास भी उत्पन्न हो रहा था कि अवश्य ही दामिनी के बलिदान से हम कुछ सबक लेंगे व वर्तमान विभत्स हालात में एक सार्थक बदलाव की पहल करेंगे।

आशा कर सकते हैं कि दामिनी की ज्योति यूँ ही जाया विलीन नहीं होगी, बल्कि नभमंडल से भूतल तक चिर  ज्योतिपुंज बनकर  वह निरंतर हमारी अंतर्चेतना को जागृत व प्रकाशित करती रहेगी।

Friday, December 28, 2012

कैलोरी की बैलेंससीट....

कैलोरी की संतुलित  तुला

अपनी पिछली पोस्ट कुछ डिप्रेसिंग कुछ इंस्पायरिंग में मैंने इस अवसान हो रहे वर्ष में अपने शारीरिक वजन कम करने  संतुलित शारीरिक फिटनेस के निर्धारित लक्ष्य में अपनी विफलता की चर्चा की थी।इसी सिलसिले में मैं  अपने रेलवे के सहकर्मी डाक्टर महोदय से चर्चा करते हुये अपने मन की निराशा प्रकट की कि डाक्टर साहब आप जानते ही हैं कि मैं शाकाहारी हूँ,बाहर का खाना भी नहीं खाता,मेरा खानपान भी बहुत साधारण है,यहाँ तक चाय भी ज्यादातर बिना दूध शक्कर के पीता हूँ,फिर भी वजन नहीं घटता,घटना तो दूर हर साल किलो दो किलो बढ़ता ही जा रहा है।

डाक्टर साहब ने मेरी बात धैर्य से सुनते मुस्कराते हुये मुझसे पूछा कि क्या आप नियमित मार्निंग वाक अथवा अन्य फीजिकल इक्सरसाइज इत्यादि करते हैं, तो मैंने सकुचाते हुये नहीं कहा तो डाक्टर साहब ने बताया कि आपका शारीरिक वजन घट पाने प्रतिवर्ष बढ़ते जाने का यही कारण है,आपकी सिडैंटरी(श्रमरहित) दिनचर्या ।

डाक्टर साहब मेरे चेहरे पर दिखते भ्रम के भाव को भाँपते हुये व अपनी बात को और स्पष्ट करते हुये कहा कि देखिये मात्र अपनी डाइट संतुलित कर लेने,शाकाहारी होने,घी तेल कम सेवन करने इत्यादि से आपको स्वास्थ्य संबंधित कई लाभ  जैसे कोलेस्ट्राल का संतुलित स्तर उसकी गुणवत्ता,विभिन्न बीमारियों से प्रतिरोधक क्षमता जैसे फायदे अवश्य होते हैं, किंतु जहाँ तक आपके शारीरिक वजन का ताल्लुक है,तो यह तो सीधे सीधे आपके भोजन खानपान से शरीर को मिलने वाली कैलोरी से संबंधित है।

डाक्टर साहब ने कहा कि शरीर में कैलोरी का सिद्धांत एक शुद्ध अंकगणित पर आधारित है कि आपके दिनभर के खानपान आहार से शरीर को कुल कितनी कैलोरी प्राप्त हुई बदले में आपकी विभिन्न शारीरिक गतिविधियों व क्रियाशीलता में कितनी कैलोरी खपत हुई, और इस प्रकार शरीर में बची अनुपयोग में लायी गयी कैलोरी ही शारीरिक वजन को बढ़ाती रहती है।आप कितना भी साधारण खानपान भोजन लेते हों फिर भी औसतन 1500 से 2000 कैलोरी प्रतिदिन शरीर को मिलती ही है, ऐसे में भी यदि आपकी दिनचर्या सिडैंटरी है,यानि बस आप खाते पीते उठते बैठते सोते हैं,कोई शारीरिक श्रम करते ही नहीं, तो शरीर में औसतन चार सौ से पाँच सौ कैलोरी अनुपयोगी बची रहती है यही लगातार संचय होकर आपका शारीरिक वजन बढ़ाती रहती है।और ध्यान रखिये जहाँ तक कैलोरी की बात है कैलोरी तो कैलोरी है,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप साधारण चावल दाल या रोटी लेते हैं या दूध,दही या चीनी अथवा कि अन्य मांसाहारी भोजन।

डाक्टर साहब अपनी बात पर जोर देते हुये व यह नसीहत देते हुये  कहा कि यह बात साफ और सीधे तौर पर समझ लीजिये कि अगर आपको अपना शारीरिक वजन घटाना है अथवा वजन बढ़ने से रोकना है तो नियमित मार्निंग वाक,जॉगिंग अन्य फिजिकल इक्सरसाइज द्वारा शरीर में बचने वाली अनावश्यक कैलोरी को जलाना,उसकी खपत करना होगा ताकि इसका शरीर में संचयन बंद हो और तभी शरीर का वजन नियंत्रित होगा।

डाक्टर साहब की बात बड़ी सीधी स्पष्ट तो थी,पहले भी डाइटिसियंस अन्य डाक्रों ने मेरे स्वास्थ्यपरीक्षण के उपरांत इसी प्रकार की ही सलाह दी थी,परंतु इन उचित सलाहों को अमल में लाने में अभी तक तो मैं नाकारा ही सिद्ध हुआ हूँ,इसलिये डाक्टर साहब से  इस दिशा में  अपने मन के निराशाभाव को अभिव्यक्त करते हुये बोला कि लेकिन डाक्टर साहब मैं अपने कई मित्रों परिचितों को देखता हूँ जिनका खान-पान दिनचर्या एकदम बिंदास है,उन्हें कभी खास शारीरिक व्यायाम अथवा श्रम करते भी नहीं देखता परंतु उनका शारीरिक वजन नहीं बढ़ता,वहीं कुछ ऐसे हैं,जिनमें मैं भी शामिल हूँ,जो बड़ा नियंत्रित खानपान रखते हैं परंतु वजन नियंत्रण से बाहर हो गया है, कहीं यह जेनेटिक या अन्य समस्या तो नहीं।

डाक्टरसाहब ने मेरी बात पर हँसते हुये मुझे पुनसमझाया कि अवश्य कुछ हद तक शारीरिक वजन के ज्यादा व कम होने के आनुवंशिक कारण भी होते हैं,क्योंकि शारीरिक ऊर्जा(कैलोरी) की खपत  शरीर की मेटाबोलिज्म द्वारा निर्धारित होती है जो आनुवंशिक कारणों से विभिन्न मनुष्यों में अलग-अलग होती है।साथ ही साथ कई बार शरीर में कुछ  हार्मोन्स की असामान्य मात्रा, कुछ विशेष दवाइयाँ जैसे स्टेरोयड , अवसाद-निरोधक इत्यादि के कारण भी व्यक्ति का शारीरिक वजन अप्रत्यासित बढ़ सकता है,किंतु अपनी कैलोरी वाले मंत्र  को दुहराते हुये उन्होंने मुझे पुन: नसीहत देते हुये कहा कि अंतत: तो शारीरिक वजन का नियंत्रण,इसका घटना बढ़ना अथवा मेंटेन रहना,इसी बात पर ही निर्भर करता है कि शरीर में नेट कैलोरी(शरीर द्वारा प्राप्त कैलोरी-शरीर के द्वारा खर्च कैलोरी) की मात्रा,कम ज्यादा अथवा बराबर है।

डाक्टर साहब ने इसके साथ कई महत्वपूर्ण बातें बतायीं कि शरीर में लगभग चार हजार अतिरिक्त कैलोरी बचे होने पर शरीर का वजन एक पौंड तक बढ़ सकता है,इस प्रकार अति सामान्य खानपान होने पर भी, जिसके द्वारा शरीर को 1500 से 2000 कैलोरी  तक ऊर्जा प्रतिदिन प्राप्त हो जाती है,और यदि आप शारीरिक श्रम नहीं करते या आपकी शारीरिक सक्रियता कम है तो,आपके शरीर में चार सौ से पाँच सौ कैलोरी तक ऊर्जा प्रतिदिन बच जाती है जो महीने भर में इकट्ठी होकर दस हजार कैलोरी तक हो जाती है,जिससे शारीरिक वजन एक से सवा किलो तक बढ़ सकता है,इसी प्रकार यदि आपको एक किलो वजन घटाने हेतु अपने शरीर की कम से कम आठ से दस हजार कैलोरी शारीरिक श्रम द्वारा खर्च करनी ही होगी।

मुझे डॉक्टर साहब द्वारा यह कैलोरी के आमद और खर्च का हिसाब-किताब और इसकी जटिलता कुछ इसी प्रकार अनुभव हो रही थी जैसा कि प्रबंधन की पढ़ाई में एकाउंटेंसी व फाइनेंस की क्लास में प्रोफेसर द्वारा कंपनी के बैलेंस सीट का घनचक्कर ।फिर भी डाक्टर साहब की बात बहुत ही तर्क संगत व सटीक अनुभव हो रही थी।

डाक्टर साहब ने आगे बताया कि यदि आप अपना वजन नियंत्रित भर करना चाहते हैं कि और बढ़े तो भी आपको साप्ताहिक कम से कम 150 मिनट की ब्रिस्क मार्निंग वाक अथवा 75 मिनट की एरोबिक इक्सरसाइज(जॉगिंग,डान्स इत्यादि) और साथ ही साथ लगभग 60 मिनट की मैस्कुलर इक्सरसाइज(वेटलिफ्टिंग,सिटअप,लानटेनिस या कोई अन्य आउटडोर गेम, पुशअप अथवा योगासन इत्यादि) करना अनिवार्य है, और यदि आप अपना वजन एककिलो प्रतिमाह तक घटाना चाहते है तो उपरोक्त से तकरीबन दुगुना यानि साप्ताहिक 300 मिनट का ब्रिस्कपेस मार्निंग वाक 120 मिनट का मैस्कुलर इक्सरसाइज नियम से करना होगा।

डाक्टर साहब  अपनी इस नसीहत से मुझे सहमा देखकर बोले कि यह कोई असंभव सा कार्य तो नहीं,इसको आप अपनी दिनचर्या में शामिल कर इसे काफी सहज व संभव बना सकते हैं, जैसे प्रतिदिन सुबह एक घंटे,अथवा सुबह शाम आधा-आधा घंटे की ब्रिस्कपेस वाकिंग और सप्ताह में दो या तीन दिन आधा घंटे का योगाभ्यास करके भी आप अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

डाक्टर साहब की बात बड़ी सटीक सार्थक लग रही थी,किंतु मन ही मन स्वयं के संकल्पशक्ति नियमित मार्निंग वाक इक्सरसाइज को जारी रख पाने के आत्मविश्वास पर संदेह हो रहा थाविगत का जो अनुभव रहा है,उसमें मार्निंग वाक योगा शुरू करने व इसके कुछ दिन तक कायम रहने का तो सिलसिला चलता है,परंतु कुछ दिनों बाद ही इस या उस बहाने व्यवधान जाता है, फिर से वहीं सिडैंटरी लाइफ शुरू हो जाती है।

विगत एक हफ्ते से तो मैं  एक घंटे की  मार्निंग वाक कुछ योगा भी कर रहा हूँ,जिससे बड़ा ही आनंद रहा है,किंतु रोज सुबह-सुबह उठने व मार्निंग वाक पर जाने हेतु इस आलसी मन व स्वभाव से पूरी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।बात तो तब बने जब यह सुबह की सैर मेरे मन के स्वभाव दिनचर्या में अनिवार्य स्थाई रूप से शामिल हो जाये।आप सबकी शुभकामना की सहायता से ऐसी ही आशा कर सकता हूँ।