Friday, February 20, 2015

खाँसी और जनसंवेदना....

हमारे देश के एक आमपरिवार में एक आमआदमी के घर में एक आमबालक ने कभी जन्म लिया , पढ़नेलिखने में अत्यंत मेहनती , अध्यवसायी और प्रतिभावान और अपनी इस योग्यता के बदौलत देश के योग्यतम शिक्षणसंस्थान से शिक्षा प्राप्त कर देश की उच्चतम सेवा प्रतियोगिता योग्यता से उत्तीर्ण करके देश की उच्च प्रशासनिक सेवा में तैनात हुआ ।

कुछ कारणवश उसे यह सरकारी नौकरी रास नहीं आुई , और वह कुछ वर्षों पश्चात् अपनी इस उच्च व सम्मानित नौकरी और पद का त्याग करते समाज और जन सेवा कार्य में स्वयं को समर्पित कर दिया , उसने आमजनता के सरकारी कामकाज में होने वाली धाँधली और हीला हवाली के खिलाफ , सरकारी कामकाज व फाइल की आम आदमी को सूचना व जानकारी के अधिकार के लिये जनआंदोलन चलाये , जिसके आगे सरकार व तंत्र को भी झुकना और कानून बनाना पड़ा , जिस खातिर उसको देशविदेश में नाम , ख्याति और प्रसिद्धि और पुरस्कार अर्जित हुये।

इन शुरुआती सफलताओं से उसका जनआंदोलन में आत्मविश्वास बढ़ता गया ।  अब उसका अगला लक्ष्य था नये जन आंदोलन , नयी प्रसिद्धि की प्राप्ति। इसी बीच उसकी दृष्टि एक ऐसे जनांदोलन और उसके अगुआ बुजुर्ग युगपुरुष पर पड़ी जो सरकारी कामकाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के खात्मा हेतु सरकार के विरुद्ध जन-आंदोलन शुरू किया था , वह बुजुर्ग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार द्वारा कड़े कानून की माँग लेकर देश में जगह जगह . विशेषकर देश की राजधानी में , आमरण अनशन कर रहा था जिसको देश की जनता का , विशेषकर देश की नव महात्वाकांक्षी युवावर्ग , का भारी समर्थन मिल रहा था। उसे यह उपयुक्ततम् अवसर लगा और वह फौरन इस आंदोलन व आंदोलन के अगुआ युगपुरुष की छतरी के प्रश्रय में आ गया ।

जनआंदोलन में मिली उसकी प्रसिद्धि और  उत्कंठा अब धीरे धीरे उसकी राजनीतिक प्रसिद्धि व उसकी सत्ता की महात्वाकांक्षा  और उत्कंठा में परिणित होने लगी ।  उसने झटपट खुद की एक राजनीतिक पार्टी गठित कर ली ,पार्टी का प्रतीक चिह्म भी झाड़ू रखा , जिससे कि सामाजिक और आर्थिक रुप से हासिये पर ऱह रहे आम और गरीब जनमानस से वह प्रतीकात्मक रूप से सीधे जुड़ सके और उनकी सहानुभूति और समर्थन पा सके , और वह इसमें बहुत शीघ्र और तेज सफल रहा ।

स्वयं को मिल रहे भारी जनसमर्थन और लोकप्रियता के कारण वह अपने बुजुर्ग पैट्रन युगपुरुष के साये से बाहर निकलकर अब स्वयं ही जनता के बीच युगपुरुष बन गया , और इस देशव्यापी भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनांदोलन की राजनीतिक अगुआई करने लगा।

उसकी बढ़ती लोकप्रियता के साथ साथ उसके शारीरिक भावभंगिमा व व्यवहार में भी कुछ खास परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे । वह जैसे ही किसी जनसंवेदना या समस्या को अनुभव करता , या  वह  किसी जनमुद्दे या समस्या पर कोई परिचर्चा शुरू करता उसे खाँसी आनी शुरु हो जाती । वह खाँसी के बढ़ते प्रकोप का कारण चढ़ती उतरती सर्दी गरमी के मद्देनजर सिर पर कागज की टोपी और गले और कान पर हमेशा  मफलर लपेटे रहता । उसके जनआंदोलन  की बढ़ती लोकप्रियता के साथ साथ उसकी बात बात में खाँसी , सिर पर कागज की टोपी और गले और कान पर लपेटा मफलर भी जनांदोलन का प्रचलित ट्रेडमार्क और फैसन बन गया ।जब कभी कोई उससे उसके बात बात में खाँसी का कारण व उसके निदान के उसके किसी प्रयास की चर्चा करता तो वह यही उत्तर देता कि वह बहुत उपचार करा लिया , बहुत से नामी गिरामी डॉक्टरों को दिखाया परंतु खाँसी ठीक ही नहीं होती । 

आखिरकार उसका राजनीतिक आंदोलन बढ़ता, निखरता और प्रसिद्ध होता चला गया , वह जनता के बीच एक युगपुरुष का अवतार , भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मुखर आवाज और भ्रष्ट सरकारी तंत्र से त्रस्त  जनता के लिये एक जनमसीहा और उम्मीद बनकर देश की राजधानी के राजनीतिक आकाशपटल पर धूमकेतु के मानिंद छा गया । वह देश , शहर , समाज में व्याप्त जनसमस्याओं की चर्चा करता , उनके कारण और जड़ में भ्रष्ट राजनेताओं को दोषारोपित करता और स्वयं को जनता की उम्मीद बताकर ,जनता द्वारा स्वयं को पाँच साल की सत्ता  का अवसर दिये जाने पर जनता के लिये काम करने और उनकी सारी समस्याओं के निवारण , सबको मुफ्त बिजली , पानी , मँहगाई से मुक्ति इत्यादि के आश्नासन देता । उसके आश्वासनों के कारण , व अन्य राजनीतिक दलों के नाकारेपन से निराश हो चुकी , जनता के बीच वह दिन दूना और रात चौगुना जनप्रिय होता गया ।

जनता के मन में उसकी भारी लोकप्रियता के समक्ष सभी राजनीतिक धुरंधर और शक्तियाँ माचिस की तीली के बने किले की मानिंद बिखर गये और वह देश की राजधानी राज्य के चुुनाव में  जनता द्वारा सर्वविजयी और सर्वोपरि बनाते राजसत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ और पदासीन हो गया ।

स्वयं राजा बनने के बाद उसके खुद के ही शासन और सत्ता में उसके लिये अब एक नयी दुनिया प्रस्तुत थी । अभी तक तो वह जनता को सपनों का प्रलोभन व आश्वासन देता आया था , अब उन्हीं सपनों को साकार करने की उसके सामने चुनौती थी । जिन समस्याओं - गरीबी , बेरोजगारी , बिजली , पानी , मँहगाई , भ्रष्टाचार की आवाज और नारे देकर वह अपने विपक्षी राजनीतिक दलों पर प्रहार करता था और जनता की तालियाँ और उनके समर्थन की हुँकार अर्जित करता था अब उन्हीं समस्याओं को खुद सुलझाने व समाधान देने की उसकी ही बारी और जिम्मेदारी थी । जो जनता कल तक उसके पीछे पीछे चलते उसके राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नारे देते घूमती थी , अब वही जनता की भीड़ उसके दफ्तर और घर के सामने अपने समस्या की गुहार और फरियाद लेकर भीड़ जमा करने लगी । वह जनता की गुहार और फरियाद सुनता मगर कुछ समाधान और राहत नहीं दे पाता । वह समस्याओं के निराकरण हेतु कुछ भी प्रभावी न कर पाने की निराशा अपने कल तक की अंधभक्त समर्थक जनता के चेहरे पर स्पष्ट देख सकता था ।  कल तक जिन समस्याओं को स्वयं जनता के बीच गिनाते वह इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाया करता था , अब जनता द्वारा उन्हीं समस्याओं की चरचा और फरियाद सुनते बहाने बनाता , उनके न हो सकने के पक्ष में तर्क करता या उनको नजरंदाज कर देता ।

वह कुछ भी प्रभावी न कर पाने से स्वयं भी बड़ा निराश सा दिखने लगा था परंतु साथ ही साथ उसकी शारीरिक भावभंगिमा में भी काफी रोचक व चमत्कारिक परिवर्तन आने लगे । अपनी कागज की टोपी तो वह सत्तासीन होने के दिन ही परित्याग कर दिया था परंतु कुछ दिन तक उसकी बातबात में खाँसी और मफलर लपेटने की आदत और स्टाइल चालू रही । मगर वह जैसे जैसे जनता की समस्याओं को नजरंदाज करने लगा उसकी खाँसी में चमत्कारिक सुधार होने लगा , सत्तासिंघासन पर बैठे बमुश्किल महीेने भर हुये कि उसकी खाँसी लगभग बिल्कुल ठीक हो गयी , जहाँ उसको पहले दिन में भी सर्दी लगती और कान और गले पर मफलर लपेटकर रहना होता , अब तो वह प्रायः बिना  मफलर बाँधे ही रहता और उसकी कनपटी पर पसीने की चुहचुहाहट व सफेद बूँदें दिखती । इस प्रकार वह अद्भुत युगपुरुष भी सिंहासन पर बैठने के चंद सप्ताह के अंदर ही बिना खाँसता , बिना मफलर लपेटे एक सहज और साधारण आभिजात्य राजनेता व राजपुरुष की तरह दिखने लगा ।

अब वह युगपुरुष अपनी भक्त जनता को देखकर जोश में आकर न तो ' इंकलाब जिंदाबाद ' के नारे ही लगाता और न ही अपनी बेसुरी आवाज में पह़ले की भाँति कोई देशभक्ति के गाने ही गाता । अब तो उसके आम जन समर्थकों को भी उसमें और अन्य साधारण राजनेताओं में अंतर और फर्क करने में कठिनाई अनुभव होती ।

वह युगपुरुष जनता व जनसमर्थन की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते व उनका इस्तेलाम करते अब पहले के एक आम जननेता से परिवर्तित होकर स्वयं भी अपने विरोधी सहराजनेताओं की ही तरह एक अभिजात्य व सधा जनसंनेदनहीन राजनेता बन गया ।