Wednesday, September 18, 2013

मनख्वाबों की पुष्पवाटिका ......


मन में ख्वाबों के दीप जला ,
मैं नियमित अर्घ्य दिया करता ।
कुछ कमल खिले कुछ जलकुंभी 
कुछ कीचड़ में ,कुछ पानी में ।१।

मनभाव कई विकसित होते ,
फूलों के जैसे नवरंग लिये 
कुछ खिलते सूरज उजियारे
कुछ रातों के अँधियारे में ।२।

यह  चार पलों का जीवन था ,
कब गुजर गया यूँ मिला जुला।
दो पल काटे तनहाई  संग,
दो कटे यार -रुसवाई  में ।३।

कुछ पता नहीं, काबू भी क्या ?
अनजान किनारे और दरिया ।
कुछ तलक बहा मौजों की तलब,
कुछ माजी बनकर कस्ती में ।४।

ख्वाबों की भी  तासीर अजूबी,
एतबार है इनका बेमानी ।
उड़ते हैं  तो छूते अर्श ऊँचाई ,
गिरते तो  औंधे नीची फर्शों में ।५।

क्या साथ निभे हम दोनों का 
क्या हो भी अपनी कहासुनी ?
मन उलझन में उसकी बस्ती ,
मैं अपने गीतों की गलियों में ।६।

कुछ रिश्ते जीवन में ऐसे ,
जैसे नींदो में  सपने हों ।
जब तक बेहोशी, वे कायम ,
टूटें बिखरे जब होशों में ।७।


यह भी उसका अहसान रहा 
जीवन सच अनुभव करा दिया 
कि अपनो से नेह लगाकर 
हम जीते कितने बेमानी में ! ८।

3 comments:

  1. अहा, मन है कि बहता जायेगा..

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  2. बहुत सुन्दर मनभावन प्रस्तुति ....

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  3. कटु सत्य लिखा है आपने

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