Sunday, September 22, 2013

क्या यही है एक महान साहित्यकार की साहित्यिक सत्यनिष्ठा व ईमानदारी?

साहित्यधर्म - लेखनी की सत्यनिष्ठा 


कन्नड़ के प्रसिद्ध साहित्यकार व भारत के उच्चतम राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार , भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, से सम्मानित श्री यू आर अनंतमूर्ति का विगत एक दो दिन में अजीबोगरीब कथन आया है कि श्री नरेंद्र मोदी व उनके समर्थक फॉसीस्ट हैं व यदि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमन्त्री बन जाते हैं तो श्री अनंतमूर्ति अपने भारतदेश का ही परित्याग कर कहीं बाहर चले जायेंगे।

यदि इसप्रकार का कथन श्री दिग्विजय सिंह
जैसा कोई राजनेता, अथवा अन्य , करते हैं तो से राजनीतिक विरोधियों के पारस्परिक राजनीतिक मतभेद व प्रतिस्पर्धा के अंतर्गत दिये विचार व कथन के रूप में स्वीकार कर सकते हैं, परंतु एक महान व ज्ञानपीठ जैसे उच्चतम राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार का इस प्रकार का कथन आश्चर्य व दुख में डालता है।

हालाँकि मैं कोई लेखक तो नहीं, अपितु लेखनी व लेखन विधा का सम्मान करने वाले एक साधारण व्यक्ति
हूँअपनी व्यक्तिगत सोच के आधार पर यह आस्था व विश्वास रखता हूँ कि कोई भी साहित्य लेखनकार्य का प्रतिपादन व रचनाधर्मिता पूर्ण चारित्रिक व वैचारिक इमानदारी द्वारा ही संभव होती है , साहित्य रचना व लेखन में पूर्वाग्रह व विवंचना का स्थान नहीं होता, अन्यथा सुंदर साहित्य की रचना कदापि संभव नहीं ,वस्तुतः साहित्य रचना भी निराकार ईश्वर की सच्ची साधना की ही तरह पवित्र व वाह्यांतर की पूर्ण यत्यनिष्ठा द्वारा ही संभव होती है ।मेरी इसी धारणा के आधार पर किये आकलन में श्री अनंतमूर्ति जैसे श्रेष्ठ साहित्यकार का चिंतन व विचार भी निस्चय ही किसी भी प्रकार के पक्षपात से रहित, पवित्र,ईमानदार व सत्यनिष्ठा पूर्ण होना चाहिए ।

परंतु श्री अनंतमूर्ति जी का नरेंद्र मोदी जी के बारे में इस प्रकार का कथन उपरोक्त धारणा व अपेक्षाओं के सर्वथा विपरीत
यह निष्पक्षतारहित व पूर्वाग्रह पूर्ण लगता है ।आखिर नरेंद्र मोदी को फॉसिस्ट वे किस आधार पर कहते हैं,जबकि मोदी विगत तीन बार से पूर्ण लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया द्वारा जनता के चुने गए जनप्रतिनिधि हैं व उनकी पार्टी को जनता का भारी बहुमत प्राप्त है, वे पूरी ईमानदारी, निष्ठा व प्रशासनिक कुशलता से विगत 12 वर्षों से गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं, गुजरात के वर्तमान उन्नत व विकसित स्थिति में उनका योगदान महत्वपूर्ण है और यह निश्चय ही नरेंद्र मोदी की उत्कृष्ट जननेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता को दर्शाता है।

निश्चय ही 2002 का गोदारा का साम्प्रदायिक दंगा नरेंद्र मोदी जी के शासनकाल को कलंकित व उनकी राजधर्म की आवश्यक निश्पक्षता पर प्रश्नचिह्न उत्पन्न करता है, किंतु यदि श्री अनंतमूर्ति जी क
ी दृष्टि व विचार में श्री नरेंद्र मोदी जी के फॉसिस्ट होने का आधार मात्र उनके गोधारा साम्प्रदायिक दंगों के नियंत्रण में उनकी गुजरात राज्य के  मुख्यमंत्री रहते प्रशासनिक विसफलता  , जो कि निश्चय रूप से उनकी भारी प्रशासनिक विफलता व राजनीतिक भूल थी, तो उचित व न्यायसंगत तो यह होता कि मोदी के बारे में किसी एकांगी टिप्पड़ी देने के पूर्व श्री अनंत मूर्ति जी को अन्य राजनैतिक पार्टियों व राजनेताओं के कार्य व सरकार की भी समीक्षा करनी चाहिए।उन्हे यह भी स्मरण कर लेना चाहिये कि हमारे देश में पूर्व में भी, देश की आजादी के बाद, अनेकों साम्प्रदायिक दंगे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता ,हैदराबाद एवं उत्तर भारत के अन्य प्रमुख शहरों में हुए हें व तत्कालीन सरकारें, विशेषकर कांग्रेस पार्टी की सरकार, इन दंगों को नियंत्रित करने में प्रशासनिक रूप से बुरी तरह विफल रहीं और नतीजतन उनमें भारी हत्यायें व नरसंहार हुए, निर्दोष हिंदू मुस्लिम दोनों मारे गये तो क्या यह दंगे कांग्रेस पार्टी व उसके तत्कालीन सरकार के नेतृत्व करने वाले नेताओं को फॉसीस्ट सिद्ध नहीं करता ? 1984 का सिक्ख विरोधी दंगा जिसमें हजारों निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई जो विशुद्ध रूप से कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित था व इसके लिए कांग्रेस पार्टी के मुखिया व देश के तत्कालीन प्रधानमन्त्री का खुला समर्थन था व तत्कालीन केंद्र सरकार दंगों को नियंत्रित करने में बुरी तरह विफल रही, क्या फॉसीवाद नहीं है ?श्री मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व मे उत्तर प्रदेश में जब जब सरकार बनी है कितने ही साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं,मुजफ्फरनगर का हाल ही में हुआ दंगा जबकि उन्हीं के पुत्र मुख्य मंत्री के पद पर पदासीन हैं इसका ताजा उदाहरण है, जिनमें गुजरात के गोधारा दंगे से कई गुणा, हजारों निर्दोष लोग मारे गए हैं व आज तक दंगापीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला, क्या यह मुलायम सिंह जैसे नेताओं की फॉसीस्ट विचारधारा सिद्ध नहीं करता ? 

प्रश्न उठता है कि यदि श्री अनंतमूर्ति की दृष्टि में श्री नरेंद्र मोदी मात्र इस आधार पर कि वे गोधारा साम्प्रदायिक दंगे को
नियंत्रित करने में प्रशालनिक रूप से विफल रहे, फॉसीस्ट हैं व उनके प्रधानमन्त्री बनने पर वे अपनी मातृभूमि, भारत देश तक का परित्याग कर सकते हैं, तो आखिर कार उन्हें अन्य पार्टी व उनके नेता जैसे कांग्रेस व समाजवादी पार्टी या अन्य, जो गोधारा कांड से भी कई गुणा बड़े सैकड़ों साम्प्रदायिक दंगों हेतु जिम्मेदार है, श्री मुलायम सिंह जैसे राजनेता जिनकी राजनैतिक ताकत ही साम्प्रदायिक विवाद व विभाजन कराना व घृणा फैलाना है ,क्यों फॉसीस्ट नहीं लगते व उनके विरुद्ध श्री अनंतमूर्ति आज तक कभी भी एक भी शब्द नहीं कहया लिख ? खिर वे इन असली फॉसीस्टों को अब तक, आजादी के 66वर्ष बाद भी , बर्दाश्त करते भारत में कैसे रहते रहे परंतु अब 82 वर्ष की पूर्ण आयु में वे नरेंद्र मोदी जैसे एक साधारण से फॉसिस्ट की खातिर देश के परित्याग की बात क्यों करते हैं ?क्या फॉसीस्टों के चयन में भी उनकी व्यक्तिगत पसंद -नापसंद है ? क्या यही है  साहित्य साधना? क्या यही है साहित्य धर्म? क्या यही है एक महान साहित्यकार की वैचारिक ईमानदारी व सत्यनिष्ठा? 


मुझे आश्चर्य व दुख होता है कि श्री यू अनंतमूर्ति जी जैसा एक महान साहित्यकार इतना पक्षपात व पूर्वाग्रह पूर्ण विचार कैसे रख सकता है?अभी तक पढ़ते आये थे कि साहित्य समाज का दर्पण होता है व साहित्यकार सत्य का दर्पणकार, क्या
श्री अनंतमूर्ति द्वारा दिखाया जाने वाला यह सत्य का दर्पण है?

6 comments:

  1. शायद उम्र मस्तिष्क पर हावी हो गया है

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  2. इस देश में एक लॉबी है, जो चाहती है कि इस देश के संसाधनों पर केवल उन लोगों का ही हक है। यदि साहित्‍य के क्षेत्र में भी कोई लॉबी से इतर व्‍यक्ति आ जाता है तो उसका ये लोग बुरा हाल करते हैं। ज्ञानपीठ आदि पुरस्‍कार भी केवल मात्र इसी लॉबी के हिस्‍से आते हैं। नरेन्‍द्र मोदी के नाम पर ये लोग इसलिए चहकते हैं कि कहीं मोदी आ जाएगा तो इस लॉबी का क्‍या होगा? फिर तो ये कितने बड़े साहित्‍यकार हैं पोल खुल ही जाएगी, क्‍योंकि दूसरे भी इस लाइन में खड़े हो जाएंगे। यही कारण है कि सारे ही लॉबी बाज लोग एक स्‍वर में चिल्‍ला रहे हैं। ऐसे लोगों से पूछना चाहिए कि कौन सा देश है जहाँ प्रत्‍येक व्‍यक्ति सुरक्षित है? कल ही केन्‍या में धर्म के आधार पर लोगों को मारा गया है। वे कहाँ बसना चाहेंगे - पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, बंगालादेश जैसे सेकुलर देशों में या और कहीं?

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  3. लेखकगण तीक्ष्ण टिप्पणियों से बचें, उन्हें राजनेताओं के लिये ही छोड़ दे। उन्हें वह खाना और पचाना दोनों ही आता है।

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  4. अच्‍छा विवेचन। ऐसी ही कुछ विवेचना मैंने भी अपने (chandkhem.blogspot.in) पर (मोदी विरोध व समर्थन) शीर्षक के साथ की है। कृपया देखने का कष्‍ट करें।

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  5. लेखक को निरपेक्ष होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करना चाहिये..

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  6. आपके इन विचारों से सहमत हूँ।
    मुझे भी आश्चर्य हुआ था।
    इससे पहले, गिरीश कार्नाड ने भी नाइपॉल के विरुद्ध गलत मंच पर अपने विचार व्यक्त किए थे।

    आपके लेख अभी अभी पढने लगा हूँ।
    श्री प्रवीण पांडेजी के ब्लॉग से यहाँ आया हूँ।
    आते रहेंगे।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ
    (बेंगळूरु/कैलिफ़ोर्निया)

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