Sunday, May 1, 2011

.......क्यों न रस्ता पूछ लेते!


राह से भटके पथिक तुम,
गंतव्य से अनजान से तुम,
संकोच तेरा निष्प्रयोजन,
स्वागत है तेरा पथप्रयन,
नयन भरके,साथ चलते
सहपथिक को देख लेते।
क्यों न रस्ता पूछ लेते!
 
 
 
छाँव देते वृक्ष साक्षी-
नीड में आवास पक्षी,
भर अंजुली फलदान देते,
हृदय मन से तृप्त भक्षी  
मार्गदर्शक बन खडे ये,
परमार्थ- पथ संकेत देते।
क्यों न रस्ता .............।
 
राह में सौन्दर्य बनकर,
उल्लसित हो पुष्प खिलते,
तितलियाँ रसपान करतीं,
भ्रमर गुंजन गान करते।
सप्रेम पथ सौन्दर्य पथ ,
रस-प्रेम के संगम बनाते।
क्यों न रस्ता .............।
 
 
 
सूर्य  भी हैं साथ चलते,
नवदिवस भी साथ लाते।
जब निशा अवरोह लाती,
चाँद तारे पथ दिखाते।
यात्रा निरंतर अनंत यह,
नियति सबकी राह चलते।
क्यों न रस्ता .............!
देखा नहीं यह सरित बहते?
सुनते कभी(उन्हें) दुखराग कहते?
स्निग्ध शांत प्रवाहमय ये,
शीतलपवन की राह भरते।
पानकर शीतलमधुर जल,
क्यों न मन विश्रांत करते?
क्यों न रस्ता .............!
 
 
 
संग पवन क्यों भूलते तुम?
संग गगन क्यों भूलते तुम?
जलद भी जलछत्र साधे,
धूप-छाँव हैं खेलते ।
साथ तेरे सहपथिक सब,
स्वागत-करतल-वाद करते
क्यों न रस्ता पूछ लेते!
 

7 comments:

  1. पथिक को पथ प्रदर्शक मिल जाए तो दुर्गम रास्ता भी आसान सा दिखता है . मन अह्वलादित हुआ .

    ReplyDelete
  2. अहं जब संवाद बंद कर दे!

    ReplyDelete
  3. बिलकुल सही कहा प्रवीन पाण्डेय साहब ने की अहं जब संवाद बंद कर दे ,और आत्ममुग्धता साथ छोर दे तो सच्चे व अच्छे रास्ते व शुभ चिंतकों की राह समझ में आने लगती है....असल जिन्दगी का आनंद भी आने लगता है....बहुत बढियां है ..क्यों ना रास्ता पूछ लेते...?

    ReplyDelete
  4. मिश्रा साहब आप फेसबुक पर हैं इसलिए आपके ब्लॉग तक मैं जल्दी पहुँच जाता हूँ..ज्योंही फेसबुक पर ब्लॉग लिंक प्रकाशित होता है...लेकिन प्रवीन पाण्डेय जी फेसबुक पर नहीं हैं...मिश्रा साहब आपसे आग्रह है की आप कृपा कर प्रवीन पाण्डेय जी को भी फेसबुक पर सक्रीय करें...आशा है आप ऐसा जरूर करेंगे...

    ReplyDelete
  5. जब निशा अवरोह लाती,
    चाँद तारे पथ दिखाते।
    यात्रा निरंतर अनंत यह,
    नियति सबकी राह चलते।
    एक गतिमान जीवन की आशा और ऊर्जा से भरी यह रचना सुखद संदेश का संचार करती है।

    ReplyDelete
  6. संग पवन क्यों भूलते तुम?
    संग गगन क्यों भूलते तुम?
    जलद भी जलछत्र साधे,धूप-छाँव हैं खेलते ।साथ तेरे सहपथिक सब,स्वागत-करतल-वाद करतेक्यों न रस्ता पूछ लेते! भाव शब्द रस माधुर्य ने ह्रदय बाँध लिया....मन में उर्जा भरती मार्गदर्शन करती, अप्रतिम रचना...वाह !!!अतिशय आनंद आया पढ़कर...बहुत बहुत आभार आपका...

    ReplyDelete
  7. संग पवन क्यों भूलते तुम?
    संग गगन क्यों भूलते तुम?
    जलद भी जलछत्र साधे,
    धूप-छाँव हैं खेलते ।
    साथ तेरे सहपथिक सब,
    स्वागत-करतल-वाद करते
    क्यों न रस्ता पूछ लेते!
    ....
    भाव शब्द रस माधुर्य ने ह्रदय बाँध लिया....
    मन में उर्जा भरती मार्गदर्शन करती, अप्रतिम रचना...वाह !!!अतिशय आनंद आया पढ़कर...बहुत बहुत आभार आपका...

    ReplyDelete