Friday, September 21, 2012

ॐ गं गणपतये नमः

सार्वभौमिक व सकलमंगलदायी कोटिकोटि नाम्नी भगवान गणेश
मेरा आवास कार्यालय से थोड़ा दूर होने के कारण शाम को ऑफिस से घर-वापसी की लगभग एक घंटे की शहर के बीच से गुजर कर यात्रा में भीड़-भाड़ वाली सड़कें,गाड़ियों की रेलम-पेल व ट्रैफिक सिगनल पर थका देने वाला इंतजार एक तनावपूर्ण पक्ष लिये अवश्य होते है, किंतु इसका सार्थक पक्ष यह भी हो जाता है कि दिनभर की व्यस्त दिनचर्या के बीच मेरा यह मेरा अपना समय होता है,जिसमें मैं अपने पसंद के गाने सुनने अथवा मन के चिंतन के अनुरूप लेखन कर पाने का अवसर लाभ उठा सकता हूँ, अथवा तो रात की रोशनी व चकाचौंध में नहाये शहर व इसकी भागम-भाग को निहारने का अवसरलाभ ही उठाता हूँ।

विगत दो-तीन दिन से गणेशचतुर्थी की पूजा में पूरा शहर, विशेषकर रास्ते में आने वाले अनेकों मंदिर प्रांगण, सुंदर रोशनी व सजावट से भरा हुआ और बड़ा ही मनोरम हो गया है।मंदिरों के प्रांगण में सजी स्थापित गणपति बप्पा की दिव्य व सुंदर मूर्ति और पूरे प्रांगण व इसके आस-पास के क्षेत्र की सुंदर रोशनी से सजावट मन को बरबस अपनी और खींचती हैं।एक तरह से पूरा शहर ही विगत दो-तीन दिन से विनायक-मय हो गया है।

वैसे तो भगवान गणेश पूरे भारत में ही हिंदुओं के प्रधानतम् आराध्य देव है, किंतु दक्षिण व दक्षिणमध्य भारत विशेषकर महाराष्ट्र,गोवा,कर्नाटक,आंध्रप्रदेश,तमिलमाडु,छत्तीसगढ़ राज्यों में गणेशपूजा व गणेशचतुर्थी के अवसर पर गणेशोत्सव व विशेष-पूजा का बहुत खास महत्व है, ठीक उसी प्रकार जैसे बंगाल प्रांत में दुर्गापूजा का विशेष महत्व है।

भगवान गणपति विघ्नविनायक गणेश की आराधना वैदिककाल से ही सनातन धर्म में प्रधान रही है। हर यज्ञ व पूजा में श्री गणेश का प्रथम देव के रूप में आराधना का विधान रहा है, और ऐसी मान्यता है कि किसी भी कार्य व यज्ञ की विघ्नरहित संपन्नता हेतु श्री गणेश की कृपा व प्रसन्नता परमावश्यक है। इसीलिये इनको विघ्नेश्वर भी कहते हैं।किंतु वर्तमान सामूहिक गणेशोत्सव का स्वरूप दक्षिण व दक्षिणभारत में मराठा शासन के प्रभुत्वकाल, विशेषकर वीर शिवाजी व उनके उत्तराधिकारी ब्राह्मण शासक पेशवा, जिनके कुलदेवता भी गणपति देव थे, के शासन काल में विकसित हुई। हालाँकि मराठा शासन के पतन के उपरांत व राजकीय सहायता की अनुपस्थिति में सामूहिक वृहत् गणेशोत्सव की परंपरा भी बिखर सी गयी व इसका स्थान अपने घर में सामान्य पूजा तक ही सीमित हो गयी किंतु उन्नीसवीं शताब्दी के अंत व बीसवीं शताब्दी के प्रारंभकाल में, विशेषकर लोकमान्य तिलक जैसे स्वराज्य के पुरोधा नेता की अगुआई में सामाजिक समरसता व एकता हेतु जिससे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध स्वराज की लड़ाई ज्यादा प्रभावकारी रूप में इकट्ठा होकर लड़ी जा सके, वार्षिक गणेशोत्सव की परंपरा शुरू हुई।

हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला यह 10 दिन का भव्य व अति उत्साहजनक धार्मिक, व साथ ही साथ सामाजिक उत्सव होता है। प्रायः यह उत्सव सितंबर माह के पहले सप्ताह से तीसरे सप्ताह में पड़ता है।

वैदिक शास्त्रों में गणपति वंदना के अनेकों स्तोत्र व मंत्रों का विधान है जिनका हमारे जीवन,सामाजिक,धार्मिक व याज्ञिक अनुष्ठानों में सदैव विशेष महत्व रहा है।किसी भी यज्ञ आथवा पूजा के प्रारंभ में निम्न मंज्ञों , जो कि शुक्लयजुर्वेद के अंश हैं,द्वारा सर्वप्रथम गणपति वंदना व उनका आह्वान अनिवार्य होता हैः
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||
अर्थात्- हे परमदेव गणेशजी ! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों प्राणियों के पालक और समस्त सुखनिधियों के निधिपति ! आपका हम आवाहन करते हैं । आप सृष्टि को उत्पन्न करने वाले हैं, हिरण्यगर्भ को धारण करने वाले अर्थात् संसार को अपने-आप में धारण करने वाली प्रकृति के भी स्वामी हैं, आपको हम प्राप्त हों ।।
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः श्रृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ।।


अर्थात्- हे अपने गणों में गणपति (देव), क्रान्तदर्शियों (कवियों) में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के दाता ! हम आपका आवाहन करते हैं । हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रुप में आप इस सदन में आसीन हों ।।
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो
व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो
गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो
विरुपेभ्यो विश्वरुपेभ्यश्च वो नमः ।।


अर्थात्--देवानुचर गण-विशेषों को, विश्वनाथ महाकालेश्वर आदि की तरह पीठभेद से विभिन्न गणपतियों को, संघों को, संघ-पतियों को, बुद्धिशालियों को, बुद्धिशालियों के परिपालन करने वाले उनके स्वामियों को, दिगम्बर-परमहंस-जटिलादि चतुर्थाश्रमियों को तथा सकलात्मदर्शियों को नमस्कार है ।।

हमारे वेद,उपनिषद व पुराण भगवान गणेश की वंदना व महिमा स्तुति के अनेकों मंत्रों, स्तोत्रों व कथाओं से परिपूर्ण हैं, जिनसे इनकी महिमा व महत्व के साथ-साथ उनके जन्म व जीवन से संबंधित अनेकों रोचक कथाओं का ज्ञान होता है।किस तरह माता पार्वती ने अपने चंदनलेप की सहायता से एक बालक मूर्ति की रचना की व उसमें उनके द्वारा प्राण डालकर बालक  गणेश जी का जन्म दिया व अपने स्नान की अवधि में प्रवेशद्वार की रक्षा की जिम्मेदारी दीं, किस प्रकार बालक गणेश अपने माता की दी गयी जिम्मेदारी को निभाने में स्वयं भगवान शिव को गृह में प्रवेश करने से रोका और जिस कारण शिव ने क्रोधवश बालक गणेश का सिर काटकर वध कर दिया,किसप्रकार माता पार्वती बालक गणेश की मृत्यु पर अति क्रोधित व पुत्र विछोह में दुःखी हो आदिशक्ति के प्रचंड रूप में सम्पूर्ण सृष्टि का ही विनाश करने को उद्यत हो गयीं, फिर किस प्रकार त्रिमुर्ति- ब्रह्मा,विष्णु व महेश ने एक मृत बालक-हाथी का सिर लाकर बालक गणेश को पुनः जीवित किया व इस तरह गणेश गजानन हो गये, जैसी अनेकों रोचक कथाओं से हम सभी पहले से ही भली-भाँति परिचित हैं।

जिसप्रकार किसी भी पूजा व यज्ञ के प्रारंभ में गणपति सुक्त के मंत्रों द्वारा गणपति के आवाहन व आराधना  का विधान है, उसी प्रकार पूजा के अंत में गणपति अथर्वशिर्ष स्तोत्र के मंत्रों द्वारा गणपति की अर्चना व स्वस्तिपाठ का भी विशेष महत्व है।गणपति  अथर्वशिर्ष स्तोत्र के मंत्र अथर्व वेद से लिये गये हैं ।इसलिये इसे गणपति अथर्वशिर्षोपनिषद भी कहते हैं। इन मंत्रों द्वारा विनायक भगवान के परमब्रह्म स्वरूप की महिमा का वर्णन करते हुये, उनके द्वारा जगत के सार्वभौमिक कल्याण की मंगलकामना की गयी है। विशेषकर महाराष्ट्र में इस स्तोत्र व इसके द्वारा विनायक आराधना का इतना महत्व है कि प्रायः वहाँ के सिद्दिविनायक मंदिरों की दीवारों पर इस स्तोत्र के सभी मंत्रों को उकेरित किया गया है।

गणपति वंदना के स्तोत्र व मंत्र संगीतमय छंदों में हैं,इसलिये शास्त्रीय गायकों व संगीतज्ञों के लिये भी ये सदैव प्रिय रहे हैं।हर शास्त्रीय गायक अपने गायन का प्रारंभ एक सुंदर गणेशस्तुति से ही करता है।इसीलिये प्रायः सभी गणेश मंत्र व स्तोत्र सभी प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों की मधुर व दैवीय वाणी में उपलब्ध हैं। अथर्वशीर्ष स्तोत्र को भी सभी प्रधान व प्रसिद्ध गायको ने विभिन्न रागों में गाया है, जिसे सुनना अभूतपूर्व व अलौकिक दैवीय अनुभूति है।Youtube पर इनकी अनेकों विडियो क्लिप मौजूद हैं, जिन्हे आप सहजता से डाउनलोड कर सुन सकते हैं। आपकी सुविधा हेतु Youtube से ही डाउनलोड किया हुआ,लता मंगेशकर जी की दैवीय वाणी में गणपति अथर्वशीर्ष का आडियो क्लिप यहाँ मैंने संलग्न किया है । आशा है आप इस दिव्य स्तोत्र को इस दिव्यमयी वाणी में सुनकर अवश्य आनंदित होंगे।

गणपति अथर्वशीर्षस्तोत्रम्

4 comments:

  1. गणेश का महत्व हम सबके लिये बड़ा है, हर कार्य का प्रारम्भ ही उसकी दिशा निर्धारित करता है । परम्परायें स्वस्थ रही हैं भारत में ।

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  2. भावार्थ सहित वेद मंत्रों के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद प्रियवर

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  3. I thoroughly enjoyed this blog thanks for sharing.

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