Sunday, June 9, 2013

भाग्य,अवसर व प्रतिभा......



कोई पकडा कोई छूटा

विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व अमरीकी फेडरल रिजर्व बैंक के चेयरमैन श्री बेन बर्नांके अपने अल्मामीटर प्रिंस्टेन युनिवरसीटी के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में दीक्षित छात्रों  को  दिये अपने भाषण में बड़ी ही लीक से हटकर व गहरी सच्चाईपूर्ण बात कही जिसकी आजकल काफी चर्चा,प्रशंसको व आलोचकों दोनों के द्वारा, है।

प्रतिभा को सफलता की कुंजी समझने की हमारी पुरानी आस्था व धारणा,जिसमें अंतर्निहित कमियाँ हैं व जो कतई अन्यायपूर्ण है, पर कड़ी किंतु बड़ी सटीक टिप्पड़ी करते हुये बेन का कहना है- यह अति विचारणीय व चिंतनीय बात है।प्रतिभाशीलता वह पद्धति है जिसमें अनेकों प्रकार से भाग्यशाली मात्र कुछ लोग - जैसे स्वास्थ्य अथवा आनुवंशिक रूप से विशेष शारीरिक योग्यता रखने वाले कुछ विशेष भाग्यशाली, अथवा पारिवारिक संबल,प्रोत्साहन अथवा आर्थिक सहयोग में  विशेष भाग्यशाली अथवा शिक्षा व रोजगार के अतिरिक्त अवसर प्राप्त होने में विशेष भाग्यशाली,कुछ लोग जो जीवन में प्राप्त विशेष अवसरों के कारण अपने जीवन के सामान्य प्रयासों के एवज में अपनी योग्यता से ज्यादा व अप्रत्यासित रूप सेे पुरस्कृत व सम्मानित हो पाते हैं, जीवन मेंं मिले अतिरिक्त अवसरों व स् ंरक्षणों के एवज में कुछ लोग प्रतिभाशील होने का तमगा हासिल कर लेते हैं। इस प्रकार दीक्षित छात्रों को संबोधन में उन्हे एक प्रकार  की हिदायत व सच का आईना दिखाते हुये बेन का कहना है कि प्रतिभा का सफलता व हासिल सामाजिक स्तर से कोई खास लेनादेना नहीं है।

बर्नांके का यह भी कथन था कि गरीब व्यक्ति धनी व्यक्ति की बनिस्बत ज्यादा योग्य व सम्माननीय है। उनका कहना है-मेरी समझ में जो व्यक्ति बहुत ही कम औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त कर पाये किंतु अपने व अपने परिवार के जीविकोपार्जन व परवरिस हेतु पूरी ईमानदारी , लगन व उत्साह से अथक श्रम करते हैं , वे एक अति धनी , उच्च सामाजिक स्तर व सफल समझे जाने व्यक्ति की तुलना में कहीं ज्यादा सम्मानयोग्य है।उनके साथ वक्त गुजारना,बीयर पीना ,भोजन करना एक धनी व्यक्ति की तुलना में ज्यादा आनंददायी व संतुष्टिदायक होगा।

आम आदमी की क्षमता से बाहर होती अति महँगीस्कूली व उच्च औपचारिक शिक्षा व इसकी उद्देश्यहीनता व खोखलेपन पर टिप्पड़ी करते हुये उन्होंने कहा- आर्थिक दृष्टिकोण से हमारे कालेज व युनिवरसीटी की शिक्षा का अनुभव इसी प्रकार का है जैसे हर वर्ष एक नयी कैडिलक कार खरीदें फिर उसे किसी  पहाड़की चोटी से गहरी खाईं में ड्राइव करके गिरने व तहस-नहस होने दें।


बेन बर्नांके के उपरोक्त कथन न सिर्फ अमरीका परंतु संपूर्ण विश्व,विशेषकर हमारे देश भारत के संदर्भ में अति सटीक बैठते है।हमारे देश में कई करोड़ों की तादाद उपयुक्त साधन , अवसर व प्रोत्साहन की अनुपलब्धता के कारण न सिर्फ अपनी नैसर्गिक प्रतिभा व योग्यता से देश व समाज को योगदान देने व इसकी सफलता में भागीदार बनने से वंचित रह जाती है, अपितु स्वयं का जीवन भी अति कठिनाई,गरीबी,संघर्ष व कुंठा युक्त हासिये पर जीती है।इससे बडा दुर्भाग्य व बदनसीबी किसी देश के लिये भला क्या हो सकता है।

इस संदर्भ में मेरे निजी अनुभव भी बेन के कथन की शतप्रतिशत पुष्टि करते हैं।मेरी स्कूली शिक्षा गाँव में हुई।मेरे पिता एक मामूली किसान हैं,अपने सात बच्चों की शिक्षा-दीक्षा उनके लिये जीवन की सबसे बड़ी व कठिनतम चुनौती थी।मेरी बड़ी बहन स्कूल में मेरे साथ पढ़ती थीं,और वे पढ़ाई में मुझसे ज्यादा प्रतिभावान व योग्य थीं,किंतु गाँव में ऊँची कक्षा की शिक्षा की अनुपलब्धता के कारण उनकी छोटी कक्षा में ही शिक्षा रुक गई,उनके जीवन में निजी सफलता के सपने समय के आकाश में कहीं गुम हो गये,वे एक साधारण गृहिणी का गुमनाम ग्रामीण जीवन बिता रही हैं।यदि मेरे माता पिता मेरी व मेरे भाई की शिक्षा हेतु अपनी क्षमता से बाहर जाकर विशेष प्रयास व प्रोत्साहन न देते तो संभवतया हम दोनों भाई भी अपने गाँव में ही एक गुमनाम कृषक का जीवन जीता होते।मैं जहाँ हूँ उसके पीछे निजी प्रतिभा का मात्र आंशिक योगदान ही है,इसमें मुख्य योगदान तो  मेरे माता-पिता द्वारा मुझे शिक्षा के लिये प्रदान किये गये विशेष अवसर का है।

अपनी बहन की ही तरह, मैं अनेकों व्यक्तियों से निजी तौर पर अवगत हूँ जो नैसर्गिक रूप से प्रतिभावान होते हुये भी जीवन में अवसर व प्रोत्साहन की अनुपलब्धता मे गुमनामी में  कहीं पीछे छूट गये। जब मैं गाँव में अपने पिताजी की पीढ़ी,जैसे मेरे ताऊ,ताई,माँ अन्य रिश्तेदार जिन्हें स्कूली व औपचारिक शिक्षा का जीवन में अवसर नहीं प्राप्त हुआ, परंतु उनका आध्यात्मिक,सामाजिक,जीवनदर्शन का न सिर्फ अनौपचारिक बल्कि औपचारिक ज्ञान उच्च स्तर का है।मेरे दोनों ताऊजी किसी स्कूल व औपचारिक शिक्षा से कतई वंचित रहै, किंतु उनका भाषाई ज्ञान (उनका, हिंदी,संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्चकोटि का है ), किसी विद्वान से कतई कम नहीं, उन्हें संस्कृत की मुख्य आध्यात्मिक पुस्तकें जैसे बाल्मीकि रामायण,गीता,भागवत पुराण लगभग कंठस्थ हैं,और बातचीत में वे इनके श्लोकों का सटीक उद्धरण इतनी सहजता से देते हैं, जो कि युनिवरसीटी में प्रशिक्षित किसी कुशल विद्वान प्रोेफेसर हेतु भी सहजता से संभव नहीं हो सकता।इसी प्रकार दर्शन शास्त्र की अंग्रेजी भाषा में प्रसिद्ध पुस्तकें पढने,उनके गूढ़ अर्थों को समक्षने व उन पर विद्वतापूर्ण चर्चा करते हुये  उन्हे सुनना अचंभित करता है।इसी प्रकार मेरी माँ, जिनकी स्कूली व औपचारिक शिक्षा शून्य है, उन्होंने कभी स्कूल का मुँह तक नहीं देखा,उनकी जीवनदर्शन ,सामाजिकता, व आध्यामिकता की समझ अद्भुत व आश्चर्यचकित करती है।उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को देखकर मन यह सोचने को विवश हो जाता है कि यदि इन्हें जीवन में शिक्षा का कोई अवसर व प्रोत्साहन मिला होता तो वे अवश्य ही विशेष उपलब्धियों के स्वाभाविक हकदार थ् े।

इसी प्रकार गाँव में जब किसी बुजुर्ग किसान जो सर्वथा अशिक्षित हैं व गाँव का साधारण जीवन जी रहे हैे, उनसे बातचीत व चर्चा करने पर उनकी जीवनदर्शन,दुनियादारी व अपने खेतीबारी की व्यावसायिक व तकनीकी समझ अद्भुत व अति प्रभावित करती है।


इस प्रकार बेन बर्नांके का यह कथन गौर करने व चिंतन का विषय है कि प्रतिभा का आकलन मात्र सफलता की कसौटी पर नहीं आँका जा सकता,सफलता हेतु प्रतिभा के आंशिक योगदान के साथ मुख्य योगदान तो प्राप्त अवसरों,प्रोत्साहनों व समुचित संसाधनों का होता है,प्रतिभा का वास्तविक आकलन तो जीवन के संघर्ष में भी सोने व हीरे की तरह अपनी चमक व चरित्र की उत्कृष्टता बनाये रखने ,ईमानदारी,सत्यनिष्ठा,जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में भी ॆस्वाभाविक आनंदित हो सकने की स्वाभाविक क्षमता से है।


प्रतिभा की अंतिम कसौटी है सहज विनोदमयता व स्वयं की कमियोें पर ही सहज रूप से हँस सकने की क्षमता।बेन बर्नांके जो स्वयं विश्व के महानतम अर्थशाल्ियों में एक हैं किंतु वे अपने विशिष्ट ज्ञानक्षेत्र अर्थशास्त्र की भी चुटकी लेने व इसपर परिहास करने से नहीं चूकते- अर्थशास्त्र एक अति उत्कृष्ट ज्ञान व चिंतनक्षेत्र है जो निति निर्धारकों को यह समझने में तो सहायता करता है कि भूतकाल में अपनायी गयी नीतियों में क्या अनुचित था व क्यों असफल रहे, किंतु वर्तमान व भविष्य हेतु इससे कोई सार्थक दिशा-निर्देश नहीं मिलता।


स्वयं की उत्कृष्टता व योग्यता पर किसी प्रकार की श्लाघा व अहंकार करने के बजाय उसकी छोटी-मोटी कमियों पर स्वयं परिहास कर सकने व सहज मनोविनोद की स्वाभाविक क्षमता प्रतिभा की सबसे  अनूठी कसौटी व पहचान है।

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4 comments:

  1. लेकिन एक यह भी सच है कि अनेकों लोग उचित प्रतिभा के बाबजूद सही अवसर के अभाव में अपनी प्रतिभा का उचित उपयोग नहीं कर पाते वहीँ तमाम ऐसे भी मिलेंगे जो अवसर मिलने पर भी उचित प्रतिभा के अभाव में दूसरों के अवसर छीन लेते हैं.

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  2. कई लोग प्रतिभा के बाबजूद सही अवसर न मिलने के अभाव में अपनी प्रतिभा दिखाने से वंचित रह जाते है,,,

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  3. Country is losing out on the raw talents because of deteriorating educational standards in govt schools. Rich and resourceful are mostly moving ahead due to acquired talent. Acquired talent can be good enough in execution but fails to create things with wider impact on humanity.

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  4. हम शिखर पर सजे हैं, हमें बनाने में न जाने कितने लोग अपना जीवन लगा गये हैं।

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