Sunday, June 16, 2013

अलविदा टेलीग्राम

अलविदा टेलीग्राम

दो दिन पहले खबर पढ़ा कि भारतीय पोष्ट विभाग ने अपनी 163 वर्ष पुरानी टेलाग्राम सेवा को हमेशा के लिये बंद करने का निर्णय लिया है।इस समाचार को पढ़कर एक अजीबोगरीब उदासी के अतिरिक्त मन में कितनी ही पुरानी यादों दृश्यों की श्रृंखला चलचित्र की भाँति गतिमान हो गयी।

बचपन की स्मृतियाँ ताजा हो गयीं कि  गाँव  में देखता था कि किसी के घर  टेलीग्राम का आना किसी जलजले  के आने से कम नहीं होता था, विशेषकर उनके लिये जिनके घर के सदस्य नौकरी अथवा पढ़ाई के सिलसिले में कहीं दूरदराज शहर में निवास करते थे अथवा किसी  घर  का  सदस्य अरसे से गुमशुदा हो या कोई बुजुर्ग सदस्य तिर्थाटन हेतु निकला हो।मेरा अनुभव है किगाँववालों हेतु टेलीग्राम  के आने का बस दो ही अर्थ होता था या तो कोई दुर्घटना हादसा अथवा कोई सरकारी -पुलिसिया झंझट।जिसके घर टेलीग्राम आता उस घर मानों सबको बिजली का झटका लग जाता और सारे गाँव में टेलीग्राम के आने की खबर सनसनी की तरह फैल जाती ।सब सभी यही चर्चा करते होते कि लाँ के घर तो टेलीग्राम आ गया है व अपने अनुमान व जानकारी के हिसाब से खबर बनाते व दूसरों से चर्चा करते टेलीग्राम द्वारा यदा कदा कोई अच्छा समाचार भी जाता जैसे किसी की सरकारी सेवा में नियुक्ति अथवा किसी के प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने का नतीजा व नौकरी हेतु ईंटरव्यू काल,तो यह उस घर में खुशी व उत्साह व पड़ोसी के घर में ईर्ष्या व उदासी का कारण बन जाता

मेरे गाँव के पड़ोस के गाँव में जहाँ हमारा स्कूल स्थित था , वहाँ एक छोटे बाज़ार जैसी मौलिक मामूली सुविधा उपलब्ध  थी, वही एक पोष्ट ऑफिस भी था जो कि पोष्ट मास्टर के कच्चे मकान से ही संचालित होता था ।चूँकि गाँव में तब टेलीफोन बिजली की सुविधा  नही थी. अत:टेलीग्राम की सीधी सुविधा संभव नहीं थी, अपितु किसी का टेलीग्रा शहर के मुख्य डाकघर में ही आता जहां से सामान्य डेली डाक से गाँव के डाकघर पहुँचता ,फिर स्थानीय  डाकिया महोदय उसे प्रापक के घर पहुँचाते।

चूँकि पड़ोस के गाँव थोड़े दूदराज पर स्थित थे डाकिया महोदय को प्रत्येक गाँव में स्वयं जाकर डाक सुपुर्द करने में कठिनाई होती अत: वे प्राय:हमारे स्कूल आकर संबंधित गाँव के किसी  बच्चे को उस गाँव की डाक सुपुर्द कर देते बच्चे की जिम्मेदारी होती कि वह पत्र संबंधित घर जाकर सुपुर्द करे । इस प्रकार हमारा स्कूल व इसके छात्र भारतीय डाकविभाग की निःशुल्क किंतु महत्वपूर्ण सेवा करते थे जिसकी शायद ही भारतीय डाक विभाग प्रशासन को कोई इल्म व अहमियत रही होगी ।

परंतु रजिस्ट्री अथवा टेलीग्राफ आने पर डाकिया महोदय स्वयं ही प्रापक के घर जाते उससे प्राप्ति का हस्ताक्षर लेते ।टेलीग्रा लाने पर उनके चेहरे की मुद्रा  खास गंभीर होती गाँव में घुसने पर हर मिलने वाले को इस बात का आभास हो जाता कि कोई गंभीर बात है,व डाकिया महोदय यह खबर देते कि  फलाँ का टेलीग्रा आया है जल्दी कदमों से अपने लक्ष्य पते  की ओर बढ़ जाते ।जब तक वे प्रापक तक टेलीग्रा की प्रति सुपुर्द करते , तबतक लगभग पूरे गांव में यह समाचार सनसनी की तरह फैल चुका होता कि फलों का टेलीग्रा आया है और उस व्यक्ति के खास शुभचिंतक,साथ ही साथ डाह रखने वाले भी,उसके घर नये समाचार की तहकीकात में मँडराने लगते

गाँव में अमूनन लोगों की अंग्रेजी भाषा की अनभिज्ञता डाकिया महोदय का भी अंग्रेजी भाषा के अति अल्प समझ के कारण टेलीग्रा के संदेश को सही सही समझने हेतु गाँव के कुछ शिक्षित व्यक्ति के पास दौड़े घबराये से जाते संदेश की गंभीरता के समझते ।मैं अपने पिताजी को प्रायः यह जिम्मेदारी गंभीर मुद्रा में निभाते देखता ।किसी के घर का कोई सदस्य जो कई वर्ष पूर्व नाराजगी वश अथवा बेरोजगारी की निराशा वश या तीर्थाटन या यायावरी हेतु घरबार छोड़ लापता होता उसके कहीं दूर दराज के शहर में बीमारी अथवा किसी हादसा का समाचार टेलीग्रा द्वारा आता  तो उस परिवार में दुख वेदना छा जाती।इसी प्रकार जिनके घर के सदस्य रोजगार वश कहीं दूर शहर  कलकत्ता या. मुंबई में अस्थाई रूप से निवास करते रहते तो उनकी बीमारी अथवा किसी दुर्घटना के समाचार के टेलीग्रा से सिर्फ उस घर में बल्कि पास पड़ोस के घर भी जिनके भी सदस्य दूर शहर में गुजरवसर हेतु सालों से घरवालों  से बिछड़े रह रहे होते उनके समाचार का माध्यम मात्र पत्र होता ,वे भी अति उदास घबरा जाते जब यदाकदा टेलीग्रा किसी की नौकरी लगने अथवा किसी परीक्षा के नतीजा में पास होने इंटरव्यू की काल का समाचार लाता तो उस घर के लोग बड़े प्रफुल्लित हो उठते उस घर के लोग उत्साहित होकर गाँवभर में टेलीग्रा का कागज दिखाते, इस खुशी में गाँव के मंदिर में पूजा किर्तन करते

पिछले बाईस सालों से रेलवे की नौकरी के सिलसिले में दूर शहरों में निवास इधर-उधर स्थानांतरण के क्रम में गाँव से मेरा संपर्क वहाँ  आना-जाना लगभग के बराबर रह गया अत: वहाँ के अपने परिजनों ,गाँववालों के सुख दुःख की सजीवता से बचपन की भाँति साक्षात्कार तो  अब नहीं रहा।किंतु विगत दो दसकों में सूचना क्रांति  ने हमारे परिवेश व जीवनशैली में बहुत कुछ बदलाव लाया है जिससे मात्र शहर ही नहीं अपितु गाँव भी बराबर तौर पर बदले प्रभावित हुये हैं ।गाँव में भी अब घर-घर में मोबाइल फोन की सुविधा दूर दराज शहरों में रहने वाले परिजनों से सुगम संवाद की सुविधा से इस दिशा में उल्लेखनीय राहत सहूलियत आयी है ।नतीजतन पुराने तौरतरीकों में बदलाव उनकी विदाई अपरिहार्य ही है



किंतु विगत की विशिष्टता सदैव जीवन में विशेष अहमियत रखती है ।टेलीग्राम को अलविदा कहने का समय तो आ गया है  परंतु इसकी विशिष्टता हमारे विगत की स्मृतियों में विशेष व महत्वपूर्ण स्थान सदैव रखेगी।

2 comments:

  1. पुरानी व्यवस्थायें धीरे धीरे अतीत में गुम होती जा रहीं हैं. इस खबर से भी कुछ अजीव सा ही लगा.

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  2. एक अध्याय समाप्त हो गया, स्मृतियों का...

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