Sunday, December 16, 2018

मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ...

इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन
उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक।
इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना
दरबदर भटकता व्यग्र बावला भटका राह हो राही एक।

मगर बंधा यह संस्कारों से, अंतर्चेतन के कुछ धागों से,
जुड़ा हुआ यह इनसे जितना जाने या अनजाने में ही,
चेताते यह इसको जब भी यह उड़ता, मनमानी करता
समझाते हैं बतलाते हैं इसे सही क्या और गलत क्या।

राह कौन सी इसकी जाती सुख को और खुशहाली को,
शांति और उन्नति का जो पथ सहज सुरक्षित हो सकता है
और कौन सी राह इसे खड्डे में अवनति में ले जाएगी,
कल बन सकती काल, विनाश और अनहोनी का कारण।

मन की मनमानी और अंतर्चेतन के बीच यह संघर्ष निरंतर जारी रहता है मानव मन के अंदर प्रतिपल प्रतिक्षण
मानव का अंतर्चेतन है जब तक विजयी,है लगाम हाथ
तब तक जीवन में सब शुभ होता सुख फलदायी होता है।

वरना मन जो है प्रचंड और चलती उसकी ही मनमानी
अपने अंतर्चेतन ध्वनि की करते हुए अवहेलना उपेक्षा
संतापों का होआमंत्रण अवसादों का होना अपरिहार्य
फिर है विनाश का आमंत्रण, निश्चित अनिष्ट संभावित है।
#देवेंद्र

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