(स्केच नंबर १०)
हे मालती लता!
तुम सुंदर यौवना सदृश,
अपनी कटि को कुछ लचक दिये,
अल्हणपन यौवन को लिए हुए
तनी खड़ी हो थी , मतवाली बाला की जैसी!
तेरी सुंदरता के सम्मोहन से
जो समीप मैं तेरे आऊं, और नजदीक से तुझे निहारूं,
तो हूं पड़ता आश्चर्य बहुत मैं
कि कौन सा जादू तेरी सुंदरता में ऐसा
छिपा हुआ तुझे इतना बल देता
जो तुम खड़ी, तनी अल्हड़ युवती सी
जबकि तना तुम्हारा कोमल, कितना कृषतन!
और डालियाँ तेरी कितनी लतर मुलायम!
और ऊँचाई उनकी है अति लघु,
ऊपर से तेरे मतवाले यौवन के खिलते
फूलों के अति भार से भी यह लदी हुई हैं!
तेरा अपने आप इसकदर तनकर खड़ा यूं रहना,
चमत्कार से यह क्या फिर कोई कम दिखता है?
दरअसल जिस लकड़ी या तार या पेड़ के तने के सहारे
हे मालती लता! तुम खड़ी हो दिखती,
उसको अपने प्रेमपाश में कुछ इस तरह स्वयं के कोमल तन से,
और लदकते अपने गुलाबी फूलों से आगोशित, इस कदर घेर लेती हो
कि तेरा संबल दूर से नहीं अलग कहीं नजर है आता,
दिखती हो सिर्फ तुम और तुम्हारा सौंदर्य, हे मालती लता !
और तेरा संबल तेरे सौंदर्य में ही आत्मसात, छिपा, खोया रहता है।
करता होगा कोई वृक्ष गुमान अपने मजबूत तने पर,
और अपनी नैसर्गिक मजबूती, खड़े होने की ताकत देते अपने तने पर,
शायद करता भी हो उपहास तुम्हारा
कि तुम हो कितनी कमजोर, और तुम्हारे स्वयं खड़ा हो पाने की अक्षमता पर
मगर हे मालती लता! तुममें और एक मजबूत वृक्ष में कुदरती फर्क है !
और यही फर्क ही मालती लता तुम्हारा अद्भुत सौंदर्य है ।
लोग समझते होंगे, कहते होंगे कि तुम कितनी कमजोर और लुंजपुंज हो!
अपने -आप इंच दो इंच भी न ऊपर उठ सकती हो!
मगर सहारे को अपने तुम देकर पूरा मान स्नेह,
उसको अपने तन मन को अर्पित कर, आगोशित कर,
ऊपर चढ़ जाती हो, चढ़ती ही रहती हो, इठलाते तनते
मगर तुम्हारा बलखाना, इठलाना यह
नहीं कोई है दर्प तुम्हारे मन के अंदर,
यह तो बस तेरी प्रेम भावना, है यह तो आभार प्रदर्शन
जो तुम अपने संबल को अपनी कृतज्ञता से
आजीवन, अपनी अंतिम सांसो पर चुकता करती हो |
-देवेंद्र
फोटोग्राफ - श्री दिनेश कुमार सिंह द्वारा