मुझे अपने बचपन का एक दृश्य याद आता है-गाँव में
रामलीला का धनुष-बाण का प्रकरण । यज्ञमंडप में श्रीराम ने धनुष तोड दिया है और
सभास्थल श्रीराम के जयघोष से गूँज उठता है।सीताजी द्वारा वरमाल की तैयारी चल ही रही है कि अचानक स्टेज पर परशुराम
जी क्रोध से भरे अपना फरसा लहराते रौद्र रूप में प्रकट होते हैं और कडकती आवाज में
सवाल करते हैं कि किस दुष्ट ने शिव का महान धनुष तोडने का दुःसाहस किया है, वह
तुरत सामने आये और उनके फरसे से मृत्यु-दंड प्राप्त करे अन्यथा वे सभा में बैठे सारे
राजाओं को मार डालेंगे। मंच पर सन्नाटा छा जाता है और वहाँ पर बैठे राजा जनक सहित
सभी राजाओं के हलक में जान आ जाती है कि अब क्या होगा, कौन बचायेगा उन्हे परशुराम
के कोप व फरसे से ।तभी स्टेज पर लँगडा जोकर प्रकट होता है, और अपनी भचकती टाँगों
से स्टेज पर दुहाई देते यह कहते भागता है- बहुत अच्छा किया मेंने जो धनुष नहीं
तोडा। दर्शक ताली बजाकर जोकर के नाटक न मसखरेपन का मजा लेते थे।
पर अब मैं विचार करता हूँ तो मुझे जोकर के उस
मसखरेपन में एक सधे हुये नौकरशाह की गहरी सोच नजर आती है।हमारी नौकरशाही में जब भी
कोई श्रीराम बनकर धनुष तोडता या तोडने की कोशिश करता है और परिणामस्वरूप उसे
शासनतंत्र में बैठे अनेकों फरसाधारी परसुरामों के कोप का सामना करना पडता है, उस
समय हमारी नौकरशाही में बैठे निकम्मी जमात रूपी जोकरों को स्टेज पर प्रकट होने का
सटीक मौका मिलता है और वे पूरे दमखम व ऊँची आवाज में अपने निकम्मेपन की दुहाई देने
लगते हैं, जैसे- मैंने इसीलिये फलाँ-फलाँ प्रोपोजल में टाँग अडायी थी, मेंने तो पहले
ही कहा था कि दाल में कुछ काला है और इसीलिये फाइल को अपने ड्रार में घुसेड दिया
था और सालों हस्ताक्षर नहीं किया, आदि आदि ।
हमारी नौकरशाही की ढाँचागत व्यवस्था ही ऐसी है कि
किसी तरह की नयी सोच, नई पहल , लीक से हटकर काम करने,अधिक मुस्तेदी या दक्षता
दिखाने के हजारों-हजारों खतरे हैं और कागजी रिकार्ड में किसी न किसी विवादास्पद
आरोपों के भागीदार बनने के चांस बढते हैं, जबकि निकम्मे-नाकारेपन के लिये न सिर्फ किसी
भी प्रकार का दंड के विधान का अभाव है, बल्कि उल्टे कोई भी निर्णय न लेने व न्यूनतम
रिस्क उठाने के कारण ऐसे लोग कागजी रिकार्ड में पूरे पाकसाफ,विवादरहित सिद्ध होते
हैं। यही कारण है कि ज़ब किसी महत्वपूर्ण प्रोन्नति या पुरस्कार देने की बारी आती
तो प्रायः निकम्मे- नाकारे नौकरशाह सूची में उच्चतम पायदान पर होते हैं।क्रिकेट की
भाषा में समझने की कोशिश करें तो कह सकते हैं कि जो बल्लेबाज रिस्क उठाकर शॉँट
मारता है, भले ही टीम के लिये कितने महत्वपूर्ण रन बनाया हो, पर किसी भी छोटी-बडी
गलती के लिये आउट करार दे दिया जायेगा जबकि जो बिना कोई रन बनाये भी बस डिफेन्ड
करता रहे, आउट न हो वही विजयी घोषित होगा।मुझे अपने विभाग के एक वरिष्ठ सहकर्मी का
स्मरण आता है जो दिन में गिनकर फाइलें ( ज्यादा से ज्यादा पाँच या छः) हस्ताक्षर
करते थे और अंततः विभाग के वरिष्ठतम पद को सुशोभित करते हुये मूछों पर ताव देते
हुये नौकरी से रिटायर हुये, बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी अपने अच्छे रसूख के कारण
अभी भी एक सरकारी सम्बंधित विभाग में ही एक उच्च महत्वपूर्ण पद की शोभा बढा रहे
हैं।
इस तरह हमारी नौकरशाही में जहाँ निकम्मे-नाकारेपन
में न तो किसी तरह की झंझट व लफडा, उल्टे पुरस्कार व प्रोन्नति के बेहतर अवसर हें,
वहीं कार्य-पहल व निर्णयशील बनने के हजारों-हजार खतरे और जिसका सीधा मतलब है
भविष्य में मिलने वाले पुरस्कार व प्रोन्नति के अवसरों को सीधे-सीधे दाँव पर
लगाना। शायद यही कारण है कि हमारी नौकरशाही में कार्य-पहल,दक्षता व निर्णय लेने के
प्रति भारी निरुत्साह है।
प्रिय देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपके दर्शन हुए.
ब्लॉग जगत में भावों और विचारों के माध्यम से एक रिश्ता सा बन जाता है,अपनत्व महसूस होने लगता है.
आपके भावों और विचारों से मैं भी आपसे अपनत्व महसूस करता हूँ.
प्रभु ने आपको बहुत सुन्दर दिल और दिमाग से नवाजा है.
आपकी प्रस्तुति हर बार की तरह विश्लेषणात्मक और सटीक है
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आप की टिपण्णी के सार पर ही मैंने 'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-४' जारी की है और इसके बाद 'सीता जन्म' पर भी.
आपने सुविचारों से मुझे कृतार्थ कीजियेगा.
सो बिलगाउ बिहाय समाजा, न तो मारे जइहें सब राजा। अब तो हम भी राम की तरह बाहर खड़े हैं, सबसे अलग। हाँ कई लक्ष्मण हमारी ओर से अब भी बहस कर रहे हैं, हम सुन रहे हैं।
ReplyDeleteनाथ शंभु-धनु भंजनहारा, होइये कोउ एक दास तुम्हारा।
दास ही बने रहिये।
mishra ji ,
ReplyDeletenamskar
mishraji,
ReplyDeletenamaskar
naukarshahi aurnatmak karya dakshta p aapke vichar bahot hi satik lage. vishya koi bhi lakin aapke vichar aur uski vishlash prastuti man ko jaagrit karne wali hoti hai
thanks.
@Rakeshji Heartiest Thanks.
ReplyDelete@Sarita Singh: Namaskaar saritaji
विचारोत्तेजक आलेख।
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ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने....
ReplyDeleteनाकारापन अपराध नहीं यहाँ...
Sir, I prefer to be silent on such issues.
ReplyDeleteamar
DD,now people hesitate to speaks against curruption n currupt people, if any one dare to speaks then after sometime he find himself alone in the office then in the organisation. Abused/demorlise by bureucrates/minister and u can,nt do anything.
ReplyDeleteIt can not happen in private sector, here is "MORE RISK, MORE GAIN". Here we have to take initiative with daring to do something innovative to get recognition.
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