Friday, July 15, 2011

गुलमोहर,काली घटा,आधी जुलाई..

आज सुबह की सैर पर निकला तो इत्तफाकन इन तीनों पर साथ साथ ही दृष्टि और ध्यान गया- पार्क में पीत-रक्ताभवर्ण फूलों से लकदक गुलमोहर का पेड, आसमान मे छायी काली घटा , मानों अल्लढ आलसी व अर्धनिद्रित सूरज ने इनकी रजाई ओढ रखी हो, और हाँ आज पन्द्रह जुलाई यानी आधी जुलाई, । इस ध्यानसंगम में कैलास गौतम जी की कविता की निम्न पंक्तियाँ अचानक मनसतह पर उभरकर तैरने लगी है-  
 
गुलमोहर,काली घटा,आधी जुलाई क्या करूँ!
खींच कर मारी है राई फिर किसी ने क्या करूँ!

जी हाँ , यह दृश्य तो मन और हृदय दोनों के अति कोमल तंतुओं पर राई की सिटकी मार  उन्हें झंकृत सा कर दिया है।पता नहीं आपने राई की सिटकी की चोट खायी है या नहीँ और शायद यह भी सोच रहे हों कि भला एक रत्तीभर से भी छोटी राई की सिटकी की भी कोई चोट होती होगी पर यकीन मानें यह चोट होती है बडी कसकदार- ठीक वैसी ही जैसी फुलगेंदवा की मार, सीधे कलेजवा पर ठेस लगाती है।कैलास गौतम जी तो बडे कवि हैं, और इस अनूठे दृश्य को देखकर अपनें मन में उपजी खास मीठी कुलबुलाहट को अपने सहज चटपटी कविता के अंदाज में बयाँ कर दिये, पर हमारे जैसे सामान्य बुद्धि-विवेक व अभिव्यक्ति क्षमता वाले व्यक्ति के लिये यह इतना सहज नहीं। मैं तो इस अंतर्आनंद को बस यही अभिव्यक्ति दे सकता हूँ कि – ज्यों गूँगे मीठे फल को रस अंतर्मन ही भावे । 

वैसे आधी जुलाई मेरे लिये बचपन से ही खास रही है ( शायद इस पक्षपात का एक कारण यह  भी हो कि मेरा जन्मदिन उन्नीस जुलाई है - जिसे आप आधा जुलाई ही मान सकते है ) । गरमियों की भयंकर तपन व लम्बे गृष्मावकाश के उपरांत जब जुलाई के दूसरे हफ्ते में स्कूल खुलता, काली घटाएं पूरे आसमान को ढक देंती और झमाझम बारिस शुरु हो चुकी होती।बिना छाता और जूते के ( एक पाँलिथीन की बरसाती होती भी तो उसमें अपने स्कूल बैग को लपेट लेते ताकि किताबें व नोटबुक्स को भीगने से बचा सकें। ), दौडते हुये, पानी से भरे खेतों-क्यारियों के बीच पैर से छपाछप खेलते , झमाझम बारिस में भीगते स्कूल पहुँच जाते। अगर किसी दिन घनघोर बारिस हो जाती और पास की नदी में आचानक बाढ आ जाती और गुरुजी लोगों के अनुपस्थित होने से स्कूल का चपरासी रेनी-डे की छुट्टी घोषित कर देता, तो उदास मन से घर लौटना पडता ( उदास इसलिये नहीं कि हम बडे पढाकू थे बल्कि इसलिये कि स्कूल में छुट्टी होने से घर जाकर खेतों में छोटा-मोटा काम करना पडता था।) 

वैसे युवा होने पर और अब इस प्रौढावस्था में भी मुझे यह आघी जुलाई उतनी ही रोमांचित ( और इस रोमांच का आप क्या अर्थ निकालना चाहते हौं यह मैं आप पर ही छोडता हूँ ।) करती आयी है क्योंकि मेरी मौरिज-एनिवर्सरी भी दस जुलाई को पडती है।

बचपन के उन रोमांचक यादों में मन को उत्फुल्ल करने वाला एक और दृश्य था - विद्यालय प्रांगण में फैले अनेक गुलमोहर के पेड सुन्दर लाल-पीले रंगीले फूलों से लक-दक हो जाते थे, और कुछ ऐसा दृश्य हो जाता मानों सुहागन स्त्रियाँ हरी साडियों में सजी, व रंग-बिरंगे फूलों की थाल सिर पर श्रद्धा से रखे , माँ शीतला की पूजा हेतु शांतभाव से खडी हैं।

तो गुलमोहर,काली घटा,आधी जुलाई की इस तिकडी ने हर साल की तरह  ही फिर आज मेरे मन और हृदय के कोमल धरातल पर खींच कर जोर से राई की सिटकी मारी है और इसकी मीठी टीस से अनेक सुखद अनुभूतियाँ मन में झंकृत हो उठी हैं।

6 comments:

  1. shabd चित्र जो आपने खींचे हैं, वह किसी कविता से कम है क्या ???

    सीधे मन तक तो पहुंचा देते हैं सभी दृश्य और प्रभाव...

    दोनों अवसरों के लिए ढेर ढेर बधाई...

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  2. प्रोत्साहन के लिये बहुत-बहुत आभार रंजना जी। सादर - देवेन्द्र

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  3. जन्मदिन और विवाह की वर्षगाँठ, दोनो ही जुलई में पड़ती है तो पूरी जुलाई आपकी है। बहुत बहुत बधाई, गुलमोहर की छटा सा खिला रहे आपका जीवन।

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  4. 10 july to beet gayi, 19 ko mai bangalore aa hi jata hu. Mujhe kavya ke bare me gyan bhale hi kam hi, lekin parties ka to mai hamesha dhyan rakhta hu. Belated and advanced congrats sir.

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  5. @प्रवीण पाण्डेय - बहुत-बहुत धन्यवाद प्रवीण ।
    @Anonymous - बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  6. जुलाई का ऐसा जीवन्त वर्णन कभी नहीं पढ़ा था।
    बिलेटेड हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी!
    और जन्म दिन की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं।

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