काम से मैं दग्ध हूँ जलता कभी,
तृणमान सा पथहीन मैं उड़ता कभी,
दश दिशायें मुट्ठियों मे भींचता मैं।
करता कभी अति स्थूल अनुभव,
और कभी अति सूक्ष्म हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (1)
उदधि का गह्वर अतल जल मापता मैं,
अनंत का विस्तृत महातल चूमता मैं,
इस क्षितिज से उस क्षितिज विस्तारमय हूँ।
अवसाद की गुरुता हूँ ,
या प्रसन्नता का वितान हूँ मैं
!
कौन हूँ मैं? (2)
सत्य जिनको मानकर जीते सभी,
मृग-पिपासा सा आभाषित जीवन अभी,
कल्पना-आकाशगंगा स्थित मोती
ढ़ूढ़ता हूँ।
पा रहा वरदानपूरीत निधि अनेकों ,
या खो रहा सब अभिशाप मय मैं !
कौन हूँ मैं? (3)
ऊषाक्षितिज पर सूर्य का आह्वान करता,
संध्याझितिज पर रात्रि का यशगान भरता,
राग के रथ पर नियत मैं सारथी हूँ।
ब्रह्म की अभिव्यक्ति बनता शब्द-अनुस्वर,
या शब्द की अभिसाधना परब्रह्म हूँ मैं !
कौन हूँ मैं? (4)
निज आत्मा को व्योम का दर्पण दिखाता,
दिशाओं के अमित विस्तार में उत्कर्ष पाता,
प्रतिबिंब और परछाइयों
के रहस्य का संधान हूँ।
प्रकाश से आलोकित हुआ
यह दृश्य हूँ,
या दृश्य का आभाष-जनित प्रकाश हूँ मैं
!
कौन हूँ मैं? (5)
कल्पना के मंत्र से गीत-सुर आह्वान करता,
छंद सेजों को सजाता,शब्द के पट ओढ़ता,
बाँह भर कविता-अधर रस चूमता हूँ ।
राग से पूरित मधुरमय गीत हूँ,
या गीत से उद्भवमयी राग हूँ मैं!
कौन हूँ मैं
? (6)
हूँ अंतर्क्षितिज की दूरियों को
मापता,
चंद्रमा के कोष से अमि-कलस लाता,
अविरल निरंतर चल रहा जन्मांतरों से।
पथिक को निर्देश करता सहज पथ हूँ,
या पथ की साधना करता एक पथिक हूँ मैं!
कौन हूँ मैं? (7)
ब्रह्मा-सृजन के इष्ट का पर्याय
हूँ,
प्रकृति की पुस्तक का एक अध्याय हूँ,
रचना निरंतर हो रही निर्माण मैं हूँ।
ब्रह्मांडकोश अंतर्निषेचित जीव हूँ,
या जीव का अधिपति यह ब्रह्मांड हूँ मैं
!
कौन हूँ में? (8)
गजब रचना,
ReplyDeleteउर्वशी हम पढ़ रहे हैं, असर आप पर हो गया..
शाश्वत प्रश्नों में अभिव्यक्त मनुज.
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर और लाजबाब प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मन तन्मय हो गया है.
बहुत बहुत आभार देवेन्द्र जी 'कौन हूँ मैं'
की इतनी अनुपम काव्यात्मक व्याख्या और विश्लेषण
करने के लिए.