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'टीम की जीत का उत्सव |
इस जीत पर दुनिया भर से फुटबाल खेल विशेषज्ञों व
खेल-प्रेमियों ने अपनी खास टिप्पड़ी दीं किंतु मुझे सबसे प्रभावित करने वाली
टिप्पड़ी लगी अमरीकी नेशनल
फुटबाल टीम के प्रधान कोच व जर्मनी के भूतपूर्व प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी जुर्गान
क्लिंसमान की, जिन्होंने स्पेन की इस अद्भुत जीत पर इन शब्दों
में प्रतिक्रिया व्यक्त की-
'यह (जीत)
एक उत्कृष्ट दर्जे की व जीत के प्रति भूख व तीव्र इच्छाशक्ति के संगम का बेजोड़
नजीर है। जीत के लिये(प्रत्येक
खिलाड़ी की) टीम के प्रति पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है।कठिन क्षणों में जज्बे
को बनाये रखना व व्यक्तिगत अहंभाव को किनारे रख लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण की
आवश्यकता होती है।विगत कुछ वर्षों में जिस तरह का प्रदर्शन उनका ( स्पेन की टीम)
रहा है,जैसे कि बिना रेगुलर स्ट्राइकर के इस कप में
खेलना,जो विरोधी टीमों में भ्रम की स्थिति,स्वयं के लिये नये अवसर और इस प्रकार विरोधी को एक प्रकार से असहाय बना
देता है।मेरे विचार से यह शताब्दी की फुटबाल टीम है।'
एक
महान खिलाड़ी की इस टीम की जीत पर ऐसी सटीक
प्रक्रिया जीत के किसी मंत्र से कम नहीं ।
विचार
करें तो यह सिर्फ फुटबाल के मैच में ही नहीं अपितु जीवन के हर क्षेत्र- चाहे
व्यावसायिक क्षेत्र हो अथवा प्रशासनिक क्षेत्र, चाहे अनुसंधान का क्षेत्र हो या जन सेवा का क्षेत्र, में सटीक लागू होती है।
हालाँकि
किसी भी टीम की जीत में उसके कुशल नेतृत्व ,सदस्यों के व्यक्तिगत कौशल व
प्रेरणादायी प्रदर्शन के महत्व को कमतर कर आँका नहीं जा सकता,किंतु इसमें कोई दो मत नहीं कि अंतत: तो एक टीम ही जीतती है।एक टीम में भले ही
व्यक्ति विशेष का प्रदर्शन उत्कृष्ट व लाजबाब हो परंतु यदि टीम एक टीम की तरह नहीं खेल पायी, तो जीत प्राय: हाथ से खिसक जाती है। इस बात को स्पष्ट करने हेतु भारतीय क्रिकेट टीम से अच्छा उदाहरण भला और
क्या हो सकता है? चाहे 1983 का लॉर्ड्स
के मैदान में वेस्टइंडीज के विरुद्ध कपिलदेव के कप्तानी में भारतीय टीम की प्रुडेंसियल विश्वकप की जीत हो अथवा सन् 2011 में वानखेड़े ग्राउंड पर
श्रीलंका की जबरदस्त टीम के विरुद्ध धोनी की अगुआई में आई सी सी वर्ल्डकप की जीत,यह टीम की ही तो जीत थी। वरना तो
ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब कुछ एक खिलाड़ियोंके
जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद भी, टीम की विफलता के कारण भारतीय
क्रिकेट टीम के हाथ से जीत के अनेकों सुनहरे अवसर निकल गये व टीम फिसड्डी साबित हुई ।
हमारे
व्यावसायिक जीवन व कार्यक्षेत्र में भी ऐसे उदाहरण प्रायः ही हमें देखने व अनुभव
करने को मिल जाते हैं कि व्यक्तिगत कौशल व प्रतिभा की भरमार होने के बावजूद
टीम-भावना की कमी व परस्पर बिखराव के कारण कितने ही संस्थान या व्यावसायिक कंपनियाँ बुरी तरह से असफलता के शिकार होते हैं, और अंततः इतिहास के अंधेरे में कहीं गुमनाम
हो जाते हैं।कितने ही सफल संस्थान व कंपनी जो कभी सफलता की पराकाष्ठा पर रहे,
किंतु जैसे ही उनकी टीम बिखरी, पूरा संस्थान ही बिखर कर धूल में मिल गया।
हमारे
सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली में भी दुर्भाग्य से टीम भावना का प्रायः भारी
अभाव होता है, जिस कारण सारे संसाधनों व सुअवसरों की मौजूदगी के बावजूद वे उन
उपलब्धियों व लक्ष्यों को प्राप्त कर सकने से प्रायः चूक जाते हैं, जो उन्हें
सहजता से उपलब्ध करना चाहिये था।शहरी व्यवस्था व रखरखाव हेतु जिम्मेदार विभिन्न
संस्थानों व विभागों में परस्पर समन्वय व टीमभावना की भारी कमी स्पष्ट दिखाई देती
है, नतीजतन हमारा शहरी प्रबंधन हर मोर्चे पर बुरी तरह फेल रहा है और हमारे शहर
प्रायः भारी दुर्दशा व कुव्यवस्था के शिकार हैं। यही हाल अन्य जन सेवा सुविधा
प्रदान करने वाले विभागों व संस्थानो – वह चाहे जनपरिवहन हो अथवा कोई अन्य
महत्वपूर्ण जनसुविधा, का भी है, जहाँ विभिन्न विभाग व संस्थान परस्पर समन्वय व
टीमवर्क से कोसों दूर एकांगी सिलो में
कार्य करते हैं, और नतीजतन अपने उद्देश्य की पूर्ति में बुरी तरह फेल होते हैं।
टीम
के महत्व व इसकी बेजोड़ ताकत को इसी कहावत से अच्छी तरह समझा जा सकता हैं कि एक और
एक मिलकर ग्यारह हो जाते हैं, जबकि एक बिखरी हुई हजारों की सेना की वास्तविक ताकत
मात्र एक सिपाही की निजी ताकत होती है। इतनी छोटी सी चींटी किंतु वह समूह बनाकर व
अपने सामूहिक प्रयास से एक अप्रत्यासित ऊँचे टीले का निर्माण कर सकने में
सक्षम होती हैं, वहीं आपसी बिखराव व असहमति के कारण शेर जैसा विशाल व शक्तिशाली
जानवर बुढ़ापे अथवा घायल अवस्था में होने पर अपने समुदाय में पारस्परिक सहयोग के
अभाव के कारण भूखा-प्यासा दम तोड़ देता है।इसी तरह की असहमति व बिखराव मनुष्य को भी
शारीरिक व आर्थिक असमर्थता की स्थिति में प्रायः कतई कमजोर ,लाचार व दीनहीन बना देती है।
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अंडा सेता व्हूपिंग क्रेन पक्षी |
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घोसले में स्वयं का सील कर अंडा सेती मादा को भोजन कराता नर हॉर्नबिल पक्षी |
इसी
प्रकार युगल जोड़े में रहने वाले अन्य पक्षी, विशेष तौर से क्रेन प्रजाति के पक्षी,
में दोनों ही घोसले बनाने, अंडे सेने में बराबरी का सहयोग करने, व एक की शारीरिक
असमर्थता में दूसरे द्वारा भोजन की व्यवस्था करने व अपने साथी का बराबर खयाल रखने
का उदाहरण प्रायः देखने को मिलता है। व्यवसायिक परिपेक्ष्य में इस उदाहरण का यह
महत्व है कि टीम के सभी सदस्य समान महत्व रखते हैं और प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक पूर्ण होने में सबकी भागीदारी बराबर महत्व की
होती हैं।
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भेद-भाव रहित वात्सल्य |
इस
प्रकार टीम का महत्व सर्वोपरि है और अंततः टीम की ही जीत होती है।
किसी एक स्ट्राइकर के सहारे जीतने का प्रयास करने वाली टीम बहुधा असफल रहती है, विरोधी टीम उसे मार्क करने के लिये अपना एक खिलाड़ी लगा देती है। वहीं टीम के रूप में खेलने से कहीं अधिक पैनापन आता है खेल में। हर महत्वपूर्ण चीज को दूसरे का कार्य मानकर छोड़ देंगे तो वह कार्य कोई नहीं करेगा।
ReplyDeleteटीम की भावना और सामंजस्य टीम में अपने कर्त्तव्य के साथ साथ दूसरों के कार्य को भी एक तालमेल के साथ पूरा करने की लगन सदैव जीत दिलाने में सक्षम होगी.
ReplyDeleteसुंदर आलेख.
शायद पहली बार प्रवीण जी की इतनी लंबी टिपण्णी पढ़ी.
ReplyDeleteयह आपके रोचक सार्थक लेखन का ही परिणाम है.
आभार.