धारणा है दृश्य इतना बन चुका
कि सत्य ही है बनगया अदृश्य है।
तलाशते थे प्रश्न जिनको युगयुगों से,
बन गये उत्तर वहीं अब पृक्ष्य हैं।1।
तलाशते थे प्रश्न जिनको युगयुगों से,
बन गये उत्तर वहीं अब पृक्ष्य हैं।1।
भाव जो अभिव्यक्त थे अतिमुखर होकर,
शब्द एकांगी बने और अर्थ उनके मौन हैं।
कल बुलंदी पर चढ़ी जिनकी जवानी
आज बनते वे कहीं छिन्नमय अबशेष हैं ।2।
निज करों से प्रकृति का , है मनुज संहार करता,
करते धरा की माँग उजड़ी क्या यही उत्सर्ग है?
विभाज्य अनदेखा हुआ बस भाग्यफल की फिक्र है,
इस विभाजन के अनंतर क्या बचा अवशेष है ?3।
विभाज्य अनदेखा हुआ बस भाग्यफल की फिक्र है,
इस विभाजन के अनंतर क्या बचा अवशेष है ?3।
अमृत कलस मिल बाँट पीते देव-दानव हिलमिले।
होता रहा है धरा का बस गरल से अभिषेक है।
आइने में ढूढ़ता था वजूद दिखता हमशक्ल सा,
समझता था जिसे अपना वह अक्स भी अब गैर है।4।
हवा भी खामोश दिखती,शांत सब तरुवर खड़े,
खग दिखे विचलित, क्या यह तूफान का संदेश है?
मित्र उनको समझते हम शांति-पद रचते रहे ,
लूटे गये अनजान रहते कि युद्ध का छलभेष है।5।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteपता नहीं, मन सधा रहे, बस यही प्रार्थना है..
ReplyDeleteहवा भी खामोश दिखती,शांत सब तरुवर खड़े,
ReplyDeleteखग दिखे विचलित, क्या यह तूफान का संदेश है?
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर,अनुपम.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.
कहाँ हैं देवेन्द्र भाई आजकल?
ReplyDeleteबहुत दिनों से कोई पोस्ट नही है आपकी.