Friday, September 14, 2012

शिवमहिम्न स्तोत्र की महिमा ।

महान शिव और है उनकी महिमा महान

विगत दो महीनों से ब्लाग पर न तो आना ही हो पाया न तो कुछ लिख ही पाया।वैसे तो कुछ कार्य जिनको आप वास्तव में सार्थक समझते हैं व उन्हें करना आपको हृदय से अच्छा लगता है, उन्हें किसी परिस्थितिवश न कर पाने के लिये कोई कारण देना बहानेबाजी की ही श्रेणी में आता है, फिर भी कहने के लिये कुछ पारिवारिक व पारिस्थितिक कारण रहे जिनके कारण ब्लागदुनिया व लेखनसुख से इतने दिन वंचित रहा।

इस अंतराल में विभिन्न व्यस्तताओं के बीच जो समय मिल जाता , मैं उसका उपयोग अपने पसंद के गाने, विशेषतौर पर संस्कृत के भजन व स्तोत्र सुनने में किया। संस्कृत भजन व स्तोत्र, विशेषकर शिव,विष्णु,सूर्यदेव,राम व कृष्ण के स्तुति स्तोत्र मेरे विशेष प्रिय हैं। मेरे मोबाइल फोन के म्युजिक लाइब्रेरी में इन भजनों व स्तोत्रों की विभिन्न प्रसिद्द शास्त्रीय गायकों जैसे पंडित भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, एम.एस.सुब्बुलक्ष्मी,घंटशाल,पंडित शिवकुमार शर्मा,राजन साजन मिश्र,छन्नूलाल मिश्र इत्यादि की दैवीय आवाज में  Mp3 फाइलें संकलित हैं,जो मैं अपनी सुविधानुसार( और अपने परिवार के सदस्यों को कोई असुविधा होने पर ब्लूटूथ डिवाइस की मदद से) सुन सकता हूँ।आजकल तो घर से आफिस आने व वापस लौटने का समय ज्यादातर इन प्रिय भजनों व स्तोत्रों को ही सुनने के सदुपयोग में लाता हूँ।

इन भजनों व स्तोत्रों का मेरा ज्यादातर संग्रह Youtube से डाउनलोड किया हुआ है । Youtube पर तो इन भजनों व स्तोत्रों के फाइलों का अनुपम संग्रह है, कि जितना भी डाउनलोड करे, मन नहीं भरता। आपके सभी प्रिय व पसंद के गायकों द्वारा हर तरह के गीतों का अपार संग्रह है Youtube पर.

इसी तरह , हाल ही में Youtube पर शिवमहिम्न स्तोत्र से परिचय हुआ।जब Youtube में इसके विडियोक्लिप के लिंक को खोला व एक प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय शास्त्रीय गायक की आवाज में यह स्तोत्र सुना तो बस उसमें खो ही गया। इस स्तोत्र की संगीतमयता,प्रवाह मन पर कुछ ऐसा प्रभाव कर रहा था मानों पवित्र गंगा के शीतल में जल स्नान कर रहे हों व वाह्यांतर पूरा अस्तित्व शांति का अनुभव कर रहा हो। मैंने बिना विलम्ब किये इस वीडियो फाइल को डाउनलोड कर , उसे MP3 फाइल में कन्वर्ट कर फौरन अपने मोबाइल फोन के म्युजिक फोल्डर में संग्रहित कर लिया।

अब इस स्तोत्र गायन को सुनने के अतिरिक्त इसके बारे में,इसके रचनाकार व रचना की पृष्ठभूमि जानने की उत्सुकता हुई तो इसमें विकीपीडिया मददगार सिद्ध हुआ।विकीपिडिया ने इस स्तोत्र की पृष्ठभूमि पर बड़ी ही रोचक व महत्वपूर्ण जानकारी दी।

शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना महान शिवभक्त, गंधर्वश्रेष्ठ पुष्पदंत ने की।गंधर्व आकाश में विचरण व निवास करमे वाले इतरलोक जीव होते हैं जो स्वर्ग में इंद्र की सभा में नृत्य व गायन की जिम्मेदारी वहन करते हैं। जैसा बताया कि पुष्पदंत शिव के महान भक्त थे व भगनान शिव की कृपा से उन्हें अनेक दैवीय सिद्दियां अभीष्ट थीं। वे कहीं भी अदृश्य अवस्था में इच्छानुसार उपस्थित हो जाने की भी सिद्धि रखते  थे ।

एक बार जब वे काशीराज चित्ररथ के राजमहल से गुजर रहे तो उनके अति मनोरम अद्भुत सुंदर पुष्पों से सज्जित उपवन को देख अति मोहित हो गये व इतने सुंदर पुंष्पों को भगवान शिव के चरणों में अर्चना हेतु अर्पित करने की लालसा में बाग़ के सारे सुंदर पुष्प चुराकर भगवान शिव की पूजा में अर्पित कर दिये और अदृश्य रहकर उस उपवन से नियमित पुष्प चुराते व भगवान शिव की अर्चना में उनके चरणों में अर्पित करते।

काशीराज चित्ररथ , जो भगवान शिव के स्वयं अनन्य भक्त थे, इन सुंदर पुष्पों के अभाव में भगवान शिव की अपनी पूजा में हो रहे व्यवधान से अति दुःखी थे । उन्होने पुष्प चुराने वाले को पकड़ने का बहुत उपाय किया  किंतु चोर की अदृश्य रहकर चोरी करने की निपुणता के कारण वे उसे पकड़ने में असमर्थ रहे ।

अंततः राजा ने अपने उपवन में शिव की पूजा में उपयोग की शिव-निर्माल्य- बिल्वपत्र, पुष्प इत्यादि अपने उपवन में बिखेर दिया ।अगले प्रातः पुष्पचोर पुष्पदंत जैसे ही राजा के उपवन में पुष्प की चोरी के उद्देश्य से प्रविष्ट हुये,शिव निर्माल्य के जमीन पर बिछे होने की अनभिज्ञता में, उसे अपने पैरों तले भूलवश कुचल दिया । इससे भगवान शिव अति क्रुद्ध होकर पुष्पदंत की सभी सिद्धियों के नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया। इस तरह पुष्पदंत की अदृश्य हो जाने की सिद्दि भी तत्काल प्रभाव से नष्ट हो गयी।

इसतरह शिवभक्त पुष्पदंत ने अपने त्राण व सिद्धियों का पुनःप्राप्ति के लिये भगवान शिव की आराधना में एक अति सुंदर व प्रभावकारी स्तोत्र की रचना की जिसे शिव महिम्न स्तोत्र के नाम से जानते हैं।भगवान शिव अपनी इस सुंदर आराधना ने प्रसन्न होकर पुष्पदंत की सभी सिद्धियों को पुनः वापस किया।

यह स्तोत्र संस्कृत के 43 श्लोकों से सज्जित है, हालाँकि इस पढ़ने से ऐसा अनुभव होता है कि मूलरचना में 32 श्लोक ही हैं, बाकी अन्य श्लोक बाद में टीकाकारों द्वारा जोड़ दिये गये हैं।फिर भी इस स्तोत्र की मौलिकता इस तथ्य से बी पुष्ट होती हैं की स्तोत्र में पुष्पदंत शब्द 38 बार प्रयोग हुआ है।

शिवभक्तों , विशेषकर शैवमतावलम्बियों में, इस स्तोत्र की व इसके द्वारा भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। जैसा कि स्तोत्र के 34वें श्लोक में कहा है कि जो व्यक्ति सच्चे हृदय व सच्ची भक्ति से इस सुंदर स्तोत्र का नि.मित पाठ करता है,वह लोक व परलोक दोनों में भगवान शिव की गति को प्राप्त करता है-इस लोक में धन-धान्य,दीर्घजीवन,सुसंतान व प्रसिद्दि का भागी बनता है वहीं मृत्योपरांत शिवलोक को प्राप्त होता है।

इस स्तोत्र में बड़े ही सुंदर व मनोहर श्लोक हैं।इस स्तोत्र का 32वाँ श्लोक तो हम सबको ही ज्ञात व कंठस्थ होगा क्योंकि इसे हम लोग अपनी छोटी कक्षा में भी अपने हिंदी-संस्कृत कोर्स में पढ़ चुके है-

असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रॆ सुर-तरुवर-शाखा लॆखनी पत्रमुर्वी ।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥ 32

अर्थात् हे प्रभु यदि पूरे कज्जल-पर्वत की स्याही बन जाय, महासागर की दावात बन जाय, स्वयं कल्पद्रुम वृक्ष की साकाओं की लेखनी बन जाय, पृथ्वी को कागज बना दें और स्वयें माँ सरस्वती यह लेखनी लेकर अनंतकाल तक लिखती रहें तब भी आपके गुणों का वर्णन संभव नहीं है।

मुझे स्मरण आता है कि यह श्लोक मेरे प्राथमिक स्कूल में प्रातःप्रार्थना का भी हिस्सा था, किंतु तब यह जानकारी नहीं थी कि यह श्लोक शिवमहिम्नस्तोत्र का अंश है।

इस स्तोत्र में ईश्वर को व उसके स्वरुप को समझने का गूढ़ दर्शन बड़े ही सुंदर व प्रभावकारी शब्दों में वर्णित है। स्तोत्र का द्वितीय श्लोक ईश्वर की परिभाषा व स्वरूप को इस प्रकार वर्णन करता है-

अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयॊः
अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्तॆ श्रुतिरपि ।
स कस्य स्तॊतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदॆ त्वर्वाचीनॆ पतति न मनः कस्य न वचः ॥ 2

अर्थात् – हे ईश्वर, आपकी महिमा का वर्णन कल्पना व शब्द से परे है।जब वेद भी आपकी परिभाषा – नेति नेति इस प्रकार कहकर अपनी असमर्थता व्यक्त कर देते हैं, तो भला किसी अन्य द्वारा आपका वर्णन क्या संभव है।ईंश्वर के क्या गुण हैं, वह किसके द्वारा अनुभव हो सकता है,हमारी कल्पना व शब्द का वह कौन सा रूप है जो वह धारण नहीं कर सकता, अर्थात् ईश्वर की महिमा अपरंपार है।

इसी प्रकार अन्य श्लोक भी ईश्वर की महिमा व उसको समझने हेतु अति प्रभावकारी ज्ञानदर्शन हैं।
इस स्तोत्र की सबसे महत्वपूर्ण व रोचक विशेषता है इसकी संगीतमयता व लयबद्धता।अनुष्टुप छंद में लिखे इसके श्लोक संगीत-लहरी के सदृश संगीतपूर्ण हैं। विशेषकर जब आप किसी सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक के श्रीमुख से इस स्तोत्र का गायन सुनते हैं, तो एक अद्भुत शांति व भक्ति का वातावरण बन जाता है और आप उसमें अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ डूब जाते हैं।

You Tube पर इस स्तोत्र का प्रसिद्ध गायकों द्वारा गायन की फाइल्स मौजूद हैं। वहीं से मैंने डाउनलोड कर इस स्तोत्र को मैंने अपने मोबाइल फोन  की म्यूजिक लाइब्रेरी का हिस्सा बना लिया है, और इसके नियमित सुनने का आनंद उठा रहा हूँ।

पाठकों की सुविधा को लिये मैंने You Tube पर डाउनलोड किये आडियो फाइल का लिंक संलग्न किया है। आशा है आप भी इसे सुनेंगे व सुनकर अवश्य आनंदित होंगे।


13 comments:

  1. बहुत सुन्दर...
    अभिभूत हूँ.....
    हिन्‍दी दिवस की शुभकामनाएं
    सादर
    अनु

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  2. सुन रहे हैं और खो रहे हैं...

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  3. बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर जानकारी के लिए...पूर्णतः अनभिज्ञ थी इससे..

    अभी तो नेट स्लो होने के कारण सुनना संभव नहीं हुआ, पर नेट स्पीड ठीक होते ही शीघ्रातिशीघ्र सुनाने के प्रयास करुँगी...

    हालाँकि शिव के कुपित होने वाली कथा से मन सहमत नहीं हुआ, पर उससे क्या, हमें तो मतलब है मन आनंदित सात्विक कर देने वाले स्तुति से..

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  4. thanks, My Mother had very much trust in Lord Shiv and his worship! thanks for sharing the link with us.

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