Sunday, June 23, 2013

जब तक पथ,यात्रा है तबतक……

पथिक अंतगति राह समाहित

पथिक मिलेगा पथ पर अपने 
और भला क्या उसका ठौर ?
चलना ही उसका जीवन है ,
दिवस, रात्रि, संध्या क्या भोर।1

पथिक नियति है बँधी राह से
साझा पदचापों का जोर 
साक्षी बन पथ स्थिर रहता ,
पथिक पग बढ़े मंजिल ओर ।2

---------------------------------

जीवन बहता नदी सदृश है 
धारा मध्य किनारे छोर ।
कर्म गति बन बहे निरंतर,
बंधन बाँधे रिश्तों की डोर3

जीवन प्राण,हृदय स्पंदित 
रंध्र नासिका श्वास की डोर ।
दोनों  की गति में  स्थिर है,
परमतत्व परमात्म विहोर4 

-----------------------------------
      
पथ से क्या मैं आँख चुराता
पथिक अंतगति धूल राह की।
पथ व पथिक एकनिष्ठ जब 
पूर्ण ध्येय जीवन  यात्रा की ।5


जीवन लक्ष्य बदलते रहते, 
अपनी राह बदलता कब तक।          
ध्येय सिद्ध यात्रा  क्या संभव 
जब तक पथ , यात्रा है तबतक।6

4 comments:

  1. ये जीवन है पथ, पथिक हम चले है,
    क्या पाना है मुझको ये द्वन्द लिए है।
    कर्तव्य पथ पर तो बढना ही होगा ,
    पर पाना है क्या यहाँ कौन कहेगा ?

    चले हम कहा से अब कहा जा रहे है ?
    उलझते सुलगते बस बड़े जा रहे है।
    जिनको सुना मंजील अब मिल गई है,
    इन्ही राहो पे वो भी टकरा रहे है।
    .......उत्कृष्ट ,सुन्दर ,पंक्तिया ......

    ReplyDelete
  2. शत पग, रत पग, हत पग जीवन,
    थोड़ा और चला चल जीवन।

    ReplyDelete
  3. जीवन बहता नदी सदृश है
    धारा मध्य किनारे छोर ।
    कर्म गति बन बहे निरंतर,
    बंधन बाँधे रिश्तों की डोर । 3।

    सुंदर...

    ReplyDelete