Wednesday, November 13, 2013

सचिन - खेल से सन्यास परंतु भारतीय जनमानस के चिरआदर्श और अमर प्रेरणा श्रोत

हमारे जीवन में  कुछ आदर्श व प्रेरणादायी व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनकी व्यक्तिगत  उपलब्धियों व महानता के  बारे में हमारी  विस्त्रित  जानकारी होना  उतना मायने नहीं रखता, जितना कि उन व्यक्तियों का हमारे जीवनकाल में उपस्थित  होना मात्र ही ।सचिन तेंदुलकर ऐसे ही हमारे  भारतीय जीवन आदर्श पुरुष  हैं, उनकी हमारे जीवन काल में  उपस्थिति मात्र ही हमारी सोच, हमारी उम्मीदों, हमारी जीवन संघर्ष क्षमता को बढ़ाती और  सकारात्मक कर देती है ।

विगत लगभग पच्चीस वर्षों से  वे न मात्र अपनी समकालीन पीढ़ी हेतु आदर्श व प्रेरणाश्रोत रहे हैं, बल्कि वे अपने से  पहले की पीढ़ी और वर्तमान युवा  पीढ़ी हेतु भी बराबर रूप में आदर्श व प्रेरणाश्रोत हैं ।मेरे पिताजी, जिनकी आयु पचहत्तर वर्ष है और उनकी क्रिकेट से संबंधित जानकारी लगभग न के बराबर है, परंतु टीवी पर क्रिकेट मैच आने और यह जानते कि इसमें सचिन खेल रहे हैं, बड़ी तन्यमयता और उत्साह से ,अपना सारा महत्वपूर्ण काम भूलते , जरूर देखते हैं, सचिन के रन बनाते, अच्छे शॉट, चौके देखकर उनके गंभीर चेहरे पर विशेष खुशी व बच्चों जैसी  प्रफुल्लता दिखती है, इसी प्रकार सचिन के आउट होने से उन्हें बहुत दुःख और निराशा होती है, और वे वैसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं जैसे उनके अपने बच्चे ने अपनी  छोटी सी गलती से असफल या आउट हुआ हो।

सचिन तेंदुलकर न सिर्फ़ भारत बल्कि संपूर्ण   विश्व के  एक  महान खिलाड़ी और अपने अनगिनत चाहनेवालों,समकालीन और भावी,दोनों, खिलाड़ियों हेतु निरंतर  प्रेरणाश्रोत रहे  हैं ,बल्कि  वे हमारे भारतीय जनमानस, विशेष कर मध्यमवर्ग, के लिए तो एक महान खिलाड़ी से भी  कहीं अधिक बल्कि सचिन उनके  कार्मिक, बौद्धिक और  आध्यात्मिक जीवन दर्शन और आदर्श और इनके प्रति भारतीय जनमानस की गहरी आस्था के स्वरूप और   प्रतिबिम्ब हैं ।

हमारे भारतीय  मध्यमवर्गीय  परिवार में  मातापिता अपने संतान की उचित शिक्षा दीक्षा, उनकी  मर्यादित  और जीवन मूल्यों से पूर्ण परवरिश  जिसप्रकार  अपने तन, मन, धन से   समर्पित होकर   व निष्ठाभाव से  करते हैं , और अपने संतान में जिस प्रकार के व्यक्तित्व, आचरण, जीवनमूल्य और उपलब्धियों की अपेक्षा और कामना करते हैं, सचिन उसके साकार प्रतीक और  उदाहरण हैं ।यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सचिन का जीवन एक  मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार को उसी प्रकार प्रेरणा और शक्ति देता है जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम का आदर्श चरित्र और जीवन हमारे भारतीय समाज  हेतु  चिर प्रेरणा और शक्ति है ।

सचिन का संपूर्ण  जीवन, उनका कर्म, आचरण व व्यवहार हमारे भारतीय जनमानस में  निहित जीवन मूल्यों, आदर्शों और इनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरता है और हम सभी के लिए अनुकरणीय व प्रेरणादायक अनुभव होता  है ।वे न सिर्फ एक महान व आदर्श खिलाड़ी, बल्कि उतने ही आदर्श इंसान भी हैं ।वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श टीममेट और आदर्श व्यक्ति और  नागरिक भी हैं ।

अपने खेल  और एक खिलाड़ी के रूप में उनके पराकाष्ठा के स्तर पर समर्पण व निष्ठा,निजी व व्यावसायिक  दोनों, जीवन के निहित मूल्यों  के सदैव सहज  निर्वहन ,अपने   मातापिता के प्रति अगाध प्रेम और सम्मान ,अपने परिवार, पत्नी और बच्चों के प्रति प्रेम, दायित्व और निष्ठा,अपने मित्रों, चाहने वालों और अन्य सभी के प्रति सहिष्णुता व मर्यादित आचरण और व्यवहार निश्चय ही सभी के लिए प्रेरणा और  उत्प्रेरक का कार्य करता है ।

इन सबके अतिरिक्त सचिन का   विलक्षण प्रेरणादायक   गुण है उनका आत्मविश्वास, ईश्वर के प्रति गहरी  आस्था और भविष्य हेतु सदैव  आशावादिता ।अपने खेल जीवन में उन्हें प्रायः कई गंभीर चोटों व शारीरिक समस्याओं  का सामना करना पड़ा, जिस कठिन  परिस्थिति में सामान्य मनोबल का व्यक्ति निराश और परास्त होकर आगे  खेलने का हौसला खो देता, परंतु सचिन इन सबका अपने मजबूत मनोबल और धीरज,समुचित उपचार व अनुशासित जीवन चर्या की सहायता से,  सामना करते सफल वापसी करते रहे और अपना उत्कृष्ट खेल जारी रखा ।

इसी प्रकार खेल में मिलने वाली असफलताओं व हार से भी हतोत्साहित और निराश होने के बजाय सचिव ने सदैव स्वयं और अपने टीममेट्स को पिछले हार को भूलते और अपना  आत्मविश्वास कायम रख फिर से जूझने और जीतने का सदैव मनोबल और हौसलाफजाई किया ।सन् 1996 में कोलकाता में विश्वकप सेमीफाइनल में श्रीलंका के हाथों भारत की दुर्भाग्यपूर्ण हार से भारतीय टीम के तमाम और मुख्य खिलाड़ी बड़े निराश हो गये  और फूट फूट कर रोने लगे ।परंतु सचिन ने अपने साथी खिलाड़ियों को संयत होने का आह्वान करते कहा कि इस हार का यह मतलब नहीं कि हमारा  सबकुछ यहीं समाप्त हो गया, हमें भविष्य के अवसरों को पाना है और यह विश्वकप निश्चित रूप से जीतना है ।उनके इसी आत्मविश्वास और दृढ़संकल्प का नतीजा रहा कि उन्होंने न सिर्फ अपनी  हर विश्वकप भागीदारी में जबर्दस्त खेल दिखाया, बल्कि अपने खेल जीवन के मुख्य  सपने को साकार करते  सन् 2011 के विश्वकप की विजेता भारतीय टीम के अग्रिम खिलाड़ी बने रहे ।

इसके अतिरिक्त अपने दीर्घ खेल कैरियर में, क्रिकेट ग्राउंड में  अथवा इसके  बाहर , अपने किसी भी  बरताव ,आचरण अथवा कथन से सचिव तेंदुलकर किसी भी प्रकार के विवाद या पचड़े में नहीं पड़े ।यदि उनके  खराब खेल या खेल से संबंधित किसी  गलत निर्णय  अथवा उनके खेल के खराब दौर से गुजरने  पर  किसी ने टिप्पणी अथवा आलोचना भी की तो वे अपनी सीधी  प्रतिक्रिया अथवा विवाद में पड़ने के बजाय अपनी आलोचना का उत्तर अपने बल्ले और उत्कृष्ट खेल से देना बेहतर समझते ।इस प्रकार उनके व्यक्तित्व का यह अति संयत, संतुलित और मर्यादित पक्ष सबके लिए  अति प्रेरणादायक और अनुकरणीय है ।
   
जीवन की अक्ष्क्षुणता व निर्धारित समयसीमा के मद्देनजर हम सभी की अपने जीवन में निर्धारित भूमिका सीमित और  समयबद्ध है, अतः सचिन के भी सक्रिय खेल जीवन पर पटाक्षेप होने जा रहा है, परंतु सबके लिए अपनी आस्था, विश्वास और प्रेरणा के प्रतीक बन चुके सचिन भारतीय जनमानस हेतु सदैव आदर्श व प्रेरणा श्रोत्र बने रहेंगे ।

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