Saturday, November 16, 2013

अहंकार के होते हैं भाँति भाँति के रूप....

यह दृश्य यथार्थ है कि अहंकार  मानव और मानवता के घोर शत्रुओं में से एक है ।इतिहास इस बात का साक्षी है कि अहंकार न सिर्फ कितने ही महान और गुणवान व्यक्तियों के पतन का कारण बना, अपितु उनके अहंकार का खामियाजा उनके परिवार, संबंधित जनों और उनके समाज और देश को भी भुगतना और उनके विनाश का कारण बना ।

रावण और दुर्योधन जैसे महान योद्घा अपने अहंकार के कारण न सिर्फ अपने राजसिंहासन और कुल के विनाश के कारण बने, बल्कि इसका खामियाजा पूरे समाज और देश को भुगतना पड़ा ।वर्तमान विश्व को भी कुछ व्यक्तियों व शासकों के अहंकार के कारण ही विश्व युद्ध जैसी आपदाओं, जिनसे पूरे विश्व को अपार जनधन की हानि हुई, का सामना करना पड़ा।

अहंकार व्यक्ति के गुण और प्रतिष्ठा को उसी प्रकार नष्ट कर देता है, जैसे मदमस्त हाथी किसी हरेभरे लहलहाती गन्ने की फसल को।अहंकार के वशीभूत व्यक्ति न सिर्फ स्वयं का बल्कि अपने साथ साथ अपने पूरे परिवेश के ही विनाश का कारण बनता है ।

अहंकार कई प्रकार से हो सकता है, रूप का अहंकार, पद का अहंकार, प्रतिष्ठा का अहंकार,  धनसमृद्धि  का अधंकार ,बल का अहंकार ,ज्ञान का अहंकार, अपनी अच्छाई और  योग्यता का अहंकार ,जातिगत अहंकार, धार्मिक और सांप्रदायिक  अहंकार, और भी अन्य कई प्रकार के अहंकार  ।

अहंकार का  सबसे पहला आक्रमण अहंकारी व्यक्ति के विवेक पर होता है, क्योंकि विवेक ही वह दर्पण है जो व्यक्ति को उसके अहंकार को स्पष्ट दिखाता है, साथ ही साथ वह व्यक्ति के तर्कशक्ति  को बढ़ावा देता है, क्योंकि तर्क ही व्यक्ति के बुद्धि रूपी तरकस का वह सबसे प्रभावी तीर है जो व्यक्ति के गलत पथ पर चलने अथवा गलत कार्य करने के विरुद्ध उसके जागृत विवेक को मारने ,नष्ट करने की  शक्ति रखता है ।व्यक्ति के अंदर विवेक रूपी प्रकाशदीप के बुझते ही उसके बुद्धि रूपी महल में घोर अंधकार का साम्राज्य , जिसका स्वामी अहंकार होता  है, छा जाता है,और इस अँधेरे महल में निवास करने तर्कशक्ति अपने सम्राट की मुख्य सहचरी और सलाहकार बनकर उसे अपनी मनमानी करने को प्रोत्साहित करती है और इस प्रकार विवेक की अनुपस्थिति में  व्यक्ति का अहंकार उसके पतन और विनाश का कारण बनता है ।इस प्रकार कह सकते हैं कि अहंकार ग्रस्त व्यक्ति अपने मन मस्तिष्क से पूरी तरह अंधा और अपने ही सामने खड़े अपने विनाश को देखने में असमर्थ हो जाता है ।

इस विषय पर चर्चा करते मेरे एक विचारशील मित्र ने एक बड़ी महत्वपूर्ण बात कहीं कि कई बार किसी का आत्मविश्वास पूर्ण व्यवहार भी सामने वाले व्यक्ति को उसका अहंकार प्रतीत  हो सकता है ।उनकी यह बात तो तर्क संगत है परंतु जैसा पहले चर्चा किया कि अहंकार और तर्क का बड़ा अंतरंग साथ होता है, और तर्क की सहायता से अहंकार भांतिभांति के आवरण ओढ़कर मनुष्य के मन और बुद्धि पर आधिपत्य जमा लेता है, अतः व्यक्ति को आत्मविश्वास रखते यह समझ और सावधानी रखना आवश्यक होता है कि उसके आत्मविश्वास के आवरण में कहीं उसके अंदर अहंकार तो नहीं अपना आधिपत्य जमा रहा  है ।

विनम्रता ,बड़ो के प्रति आदरभाव, ईश्वर के प्रति आस्था और समर्पण कुछ ऐसे सद्गुण हैं जो अहंकार से बचने में सहायता करते हैं ।परंतु यहाँ पर भी  मेरे विचार से एक सावधानी बरतने की आवश्यकता है कि ईश्वर के प्रति आस्था और समर्पण का तात्पर्य व्यक्ति के धार्मिक होने और किसी धार्मिक आस्था से कदापि नहीं है, बल्कि मेरे अनुभव में तो कई बार ज्यादा  धार्मिक और धर्म में आस्थावान व्यक्तियों में  ही  ज्यादा असहिष्णुता, अहंकार और कट्टर वादी  प्रवृत्ति दिखती है ।ईश्वर के प्रति आस्था और समर्पण व्यक्ति को सहिष्णु, उदार व मानव जाति के प्रति सद्भावना युक्त बनाती है, जबकि हमारे धर्म और धर्मावलंबियों का आचरण इन मानव मूल्यों के सर्वथा विपरीत दृष्टिगोचर होता है ।इस दुर्भाग्य पूर्ण सत्य की  पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि मानवता के इतिहास में आजतक जितनी हिंसा  व हत्याएं राजनीतिक और सामरिक युद्ध और झगड़ों के कारण हुई हैं , उनसे कई गुना  ज्यादा नरसंहार और हत्याएं धार्मिक घृणा,  झगड़े ,उन्माद के कारण हुई हैं,और देखें तो इनके मूल में कहीं न कहीं व्यक्ति के अंदर अपने धर्म के कारण जनित अहंकार ही होता है ।

इस प्रकार धर्म, जाति, संप्रदाय, कुलीनता इत्यादि जैसे पूर्वाग्रहों से रहित निश्छल मानवप्रेम और सार्वभौमिक प्रेम और आस्था शायद हमारे अंदर अहंकार जैसे स्वाभाविक प्रकृतिजन्य मनोविकार पर नियंत्रण रखने में सहायता कर सकती है,जिसमें न व्यक्तिगत बल्कि सामूहिक मानवता का कल्याण सन्निहित है   । 
    

2 comments:

  1. आपके तीन और पुराने ब्लॉग पोस्टें पढे।
    मन्ना दे को श्रद्धांजलि और सचिन के सम्मान मे लिखे गए पोस्टें पढकर अच्चा लगा।
    दोनों महान थे पर अहंकार बिल्कुल नहीं था इनमे।

    एक और टाईप का अहंकार देशप्रेम के वेश में छिपा होता है।
    कुछ अमरीकी लोगों में मैंने यह पाया है।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  2. अहंकार व्यक्ति को समष्टि से दूर कर देता है, यही पतन का कारण है।

    ReplyDelete