मौन में दो प्रेमी हृदय
के मिलन होते,
मौन में ही शशिकिरण से अमृत झरते,
मौन रहकर शून्य में हैं
मेघ सजते,
मौन में अस्तित्व की
अभिव्यक्ति है ।1।
शांत उर के कोट में ही
प्रेमकरुणा द्रवित बहते,
शांत पर्वतघाटियों में
स्वंछद झरने नाद करते,
शांत वनगह्वर सघन में
योगीजन हैं ध्यान करते,
शांति में ही बुद्ध की
अभिव्यक्ति है।2।
वृत्ति स्थिर है वहीं
सद्कृति होती,
पश्यना स्थिर जो हो
युगदृष्टि बनती
विरंचना स्थिर बने तो
सृष्टि सजती,
गति में अंतर्निहित
स्थिरता ही शक्ति है।3।
है समर्पण भाव ही
प्राप्ति पथ प्रशस्त करता,
सब समर्पण कर दिये तब ही
है यह कोश भरता,
इति समर्पण मात्र से ही
है सहस्रदलकमल खिलता,
सर्वसमर्पण पथ ही
ब्रह्मत्व का सुरूह मार्ग है।4।
सार्थक और अंतराष्ट्रीय सत्य विचार को उजागर करती पोस्ट....
ReplyDeleteबस, अब मौन हैं..
ReplyDeleteबीते दिनों की यादें जब भी गहराती हैं
ReplyDeleteअंतर्मन में कोलाहल सा मचाती हैं
man ko aanandit karti rachna .aabhar
ReplyDeleteधन्यवाद शिखा जी।
Deleteआजकल ऐसी रचना देखने को भी नहीं मिलतीं।
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी।
Deleteस्निग्ध भावों को बिखेरती सुन्दर रचना ह्रदय में उतड रही है..
ReplyDeleteसुन्दर अनुपम गहन प्रस्तुति.
ReplyDeleteस्थिर और मौन होने की प्रेरणा देती हुई.
'आत्मानंद' का अहसास करने की.
तम,रज और सत् के बंधन से मुक्त हो
आत्म भाव में रहने की.
वाह! देवेन्द्र जी.
हार्दिक आभार आपका.
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteActive Life Blog
मित्रवर
ReplyDeleteआप से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
bahut achchi lagi.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
ReplyDeleteआपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी
मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है ....
NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...