जीवन की यह निरंतर यात्रा,
(चलते
रहना ही तो जीवन है,)
जब भी होता हूँ विश्रांत मैं,
और यह यात्रा अनुभव होती है
दुस्तर और कठिन,
अचानक पहुँचती है दृष्टि
नवकोपलों से सजे वृक्ष पर,
जो अभी कुछ दिनों पहले ही
पतझड़ के थपेड़े से निस्पत्र,
कितना असहाय,निर्बल और लाचार
भविष्यहीन दिखता था,
मानों उसकी यात्रा का
हो अंतिम विश्राम यह,
समय की पूर्णता को
हो गया हो प्राप्त वह।
किंतु तापमान परिवर्तित होता है,
ऋतु बदलती है,
पुनर्संचारित होता है
इस मरणासन्न वृक्ष में नवजीवन,
नयी आशा नया परिवेश बनकर ।
नयी कोपलें जन्म लेती हैं,
और यह वृक्ष पुनर्नवा हो उठता है,
नवविश्वासमयी, नवऊर्जामयी हो
इसकी यात्रा निरंतर रहती है,
इसकी प्रेरणा
मेरे जीवनयात्रा को देती है नवसंबल,
निरंतर यात्रा का है यह अद्भुत संदेश ।
प्रकृति सदैव जीवंत बने रहने की प्रेरणा देती है..
ReplyDeleteआस रह रह जन्म लेती..
ReplyDeleteइसकी प्रेरणा
ReplyDeleteमेरे जीवनयात्रा को देती है नवसंबल,
निरंतर यात्रा का है यह अद्भुत संदेश
सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति...
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
संघर्षों-संग्रामों से
ReplyDeleteजीवन की निर्मिति,
होना निष्क्रिय
ज्ञापक - आसन्न मरण का,
थमना — जीवन की परिणति।
जीवन: केवल गति,
अविरति गति !
क्रमशः विकसित होना,
होना परिवर्तित
जीवन का धारण है !
स्थिरता
प्राण-विहीनों का
स्थापित लक्षण है !
जीवन में कम्पन है, स्पन्दन है,
जीवन्त उरों में अविरल धड़कन है !
रुकना
अस्तित्व - विनाशक
अशुभ मृत्यु को आमंत्रण,