Sunday, March 13, 2011

………नारी तुम केवल श्रद्धा हो ?



विगत सप्ताह, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में कुछ आयोजनों व संगोष्ठियों में उपस्थित होने और वहाँ विदुषी ( एवं कुछ विद्वान भी ) वक्ताओं को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ । इस दिवस को मनाने की पृष्ठभूमि , इसकी वर्तमान समय में मनाने, विशेष तौर से भारत जैसे देश आर्थिक रूप से उभरते विकासशील देश में,की प्रासंगिकता के परिपेक्ष्य में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलीं । 

यह जानकारी अवश्य ही एक सुखद अनुभूति देती है कि अब भारत जैसे देश में भी, जहाँ अबतक सामान्यतया सामान्य-वर्गीय सोच के अनुरूप ही महिलाओं की कमोवेश भूमिका मात्र पारिवारिक जिम्मेदारी- कुशल गृहिणी, समर्पित पत्नी और माँ तक सीमित रही है, वहाँ पर अब शिक्षा के विस्तार , उदार आर्थिक-व्यवस्था में नये-नये रोजगार के अवसरों  के फलस्वरूप, महिलाओं की देश की सामाजिक व साथ ही साथ आर्थिक व्यवस्था में बहु-आयामी भूमिका को बल व प्रोत्साहन मिल रहा है ।बैंकिंग सेक्टर,हॉस्पिटैलिटी सेक्टर, शिक्षा क्षेत्र, मानव विकाश व प्रबंधन, एवं अन्य सेवा क्षेत्रों में आज महिलाएँ यहाँ अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। साथ ही साथ उद्योग व कारपोरेट क्षेत्र , मेडिकल और यहाँ तक कि प्रतिरक्षा क्षेत्र में भी महिलाएँ अग्रणी भूमिका की दिशा में अग्रसित हो रही हैं। पंचायतराज और इसके अंतर्गत महिलाओं को मिले स्थान आरक्षण से स्थानिक प्रशासन इकाइयों में भी महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भागीदारी बढी है । यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सुखद अनुभूति, और साथ ही साथ देश की द्रुत आर्थिक उन्नति हेतु बडा ही शुभ संकेत है ।

किन्तु पूरे परिदृश्य का आकलन  एवं महिला पारिस्थितिक मूल्यांकन आँकडों जैसे महिला शिक्षा दर, महिला-पुरुष जनसंख्या अनुपात, मातृ मृत्यु दर, बालिका शिशु मृत्यु दर, महिला पर कैपिटा इंकम , इत्यादि आँकडे न सिर्फ महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक निराशाजनक तस्वीर देते हैं , बल्कि एक चिन्ताजनक स्थिति की ओर संकेत करते हैं । वैसे तो आज से पैंतालीस वर्ष पूर्व ही इस देश का मुख्य प्रशासनिक पद – प्रधानमंत्री को एक महिला ने सुशोभित किया, और अन्य महत्त्वपूर्ण पदों को भी महिलाओं ने सुशोभित किया है और कर रही हैं, किन्तु सामान्यतौर पर तो उनकी भागीदारी व हिस्सेदारी सोचनीय व चिंताजनक ही है । 

विगत वर्ष IIM Bangalore में मेरी प्रबंधन की पढाई के सिलसिले में मेरे कुछ माह के संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में प्रवास के दौरान,  मुझे वहाँ के सामाजिक व आर्थिक ढाँचे को नजदीक से देखने व इसपर कुछ महत्त्वपूर्ण अध्ययन का अवसर मिला । इसमें सबसे सुखद , व विश्मयकारी भी,अनुभव व जानकारी यह रही कि वहाँ के दैनन्दिन के अधिकांश कार्यकलाप, जैसे स्कूल बस के ड्राइवर,रेस्तरा के कर्मचारी, ट्रैफिक पोलिस, हाईवे की नाइट पोलिस पैट्रोलिंग, हाईवे के रिमोट वे-साइड रेस्ट सेंटर्स के कर्मचारी व केयर-टेकर्स , गैस स्टेशन के नाइट सिफ्ट स्टाफ , जोकि हमारे देश में अधिकांशतः पुरुषों द्वारा ही सँभाला जाता है, वहाँपर अधिकांशतः या सच पूछिये तो कहीं कहीं तो केवल महिलाएँ ही सँभालती नजर आयीं। वहाँ पर कमोवेस हर कार्यक्षेत्र- परिवेश में ही महिलाएँ अग्रणी भूमिका में नजर आयीं। यह बात महिलाओं की समाज में वास्तविक अर्थों में पुरुषों के बराबर की भागीदारी को दर्शाता है।मेरे विचार से, हमारे देश में भी जब तक महिलाओं की हर पक्ष- सामाजिक,आर्थिक व राजनीतिक , में इस तरह की वास्तविक अर्थों में बराबर की भागीदारी की स्थिति नहीं बन जाती, महिलाओं के सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की बात अधूरी ही लगती है ।

वर्तमान स्थिति के संदर्भ में तो मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि मैं उसी दिन और स्थिति में यह मानने को तैयार हूँ कि हमारे देश में महिलाएँ वास्तविक अर्थों में सशक्त व आत्मनिर्भर हैं जबकि मैं एक पिता के रूप में अपनी बेटी को अकेले ( बिना किसी इस्कोर्ट के ) उसके ट्यूसन जाने,कॉलेज जाने ,शॉपिंग जाने,अपनी शिक्षा या कार्य के सम्बंध में किसी दूसरे शहर या स्थान बस या ट्रेन से जाने या देर रात में उसे अपने ऑफिस से वापस घर लौटने के प्रति निश्चिंत और बेफिक्र रह सकूँ । जब तक ये बातें मुझे,एक पिता को, रंचमात्र भी किसी फिक्र में डालती हैं, मुझे तो यह तसल्ली नहीं हो पाती कि अभी भी हमारा देश व समाज महिला सशक्तिकरण और आत्म-निर्भरता की सही दिशा में अग्रसर है ।  

15 comments:

  1. नारी सशक्तिकरण और उसकी समर्थक सामाजिक स्थितियां पुरुषों को भी आश्‍वस्‍त करें, यह नजरिया पहली बार पढ़ रहा हूं, सचमुच यह इसी तरह से देखा जाना चाहिए और यह नारी-आरक्षण तक सीमित न रहे.

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  2. हमने तो अभी इस विषय पर सोचना शुरू किया है. वास्तविकता में तो इसमें सदियाँ बीत जाएँगी.

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  3. देखिये मेरा मानना है की जबतक देश व समाज में भयंकर सामाजिक असमानता व्याप्त है महिलाओं का सशक्तिकरण हो ही नहीं सकता....महिलाओं के सशक्तिकरण को तब तक जमीनी स्तर पे नहीं पहुँचाया जा सकता है जब तक कानून व्यवस्था का आधार सत्यमेव जयते पे ईमानदारी से ना टिका हो ....आज हमारे देश में महिलाओं की स्वतंत्रता का यह हाल है की हर कोई महिलाओं को उत्पाद की तरह बेचने के प्रयास में लगा है इसमें न्यूज़ चेनल से लेकर बरे ओद्योगिक घराने तक शामिल हैं ,नारी देह को दौलत का दर्जा दिया जा चुका है ...जबकि नारी का अस्तित्व इन सबसे कहीं मेल नहीं खाता क्योकि नारी इंसानियत को पैदा करने के साथ-साथ इंसानियत को सजाने और सवारने का नाम है ...लेकिन नारी का ये रोल समाप्त करने की साजिश हो रही है....आज इस बात की जरूरत है की नारी के लिए श्रधा हर दिल में व्याप्त हो तथा नारी का इस समाज में सही मायने में सम्मान हो व कानून में नारी की रक्षा करने की श्रधा भी हो........

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  4. नारी सशक्तीकरण के मानक तो आपने अमेरिका का उदाहरण देकर स्पष्ट ही कर दिया। काश यह दिन भारत के भाग्य में भी हो।

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  5. चिन्ता हालातों को देखते हुए स्वभाविक है किन्तु स्थितियाँ बेहतरी की ओर हैं, यह भी तय हैं. शुभकामनाएँ.

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  6. @राहुल सिंह , जी, ज्यादा आवश्यकता माइन्डसेट की ही है । पर न्याय व समता परक शासन,विश्वसनीय न्यायव्यवस्था प्रणाली ,एवं सामाजिक अनुशासन इस दिशा में प्रगति हेतु नितांत अपेक्षित है ।
    @रचना दिक्षित, रचना जी इसी सोच व विश्वास की प्रथम पहल ही तो कल की वास्तविकता में परिणीत होगी ।

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  7. @प्रवीण पाण्डेय , जी हम तो यही विश्वास रख सकते हैं कि देश की उच्च श्रेणी की आर्थिक प्रगति, शिक्षा का चहुँओर व व्यापक प्रसार,और जैसा मेरा पहले से मत है कि
    न्याय व समता परक शासन,विश्वसनीय न्यायव्यवस्था प्रणाली ,एवं सामाजिक अनुशासन की स्थापना, निश्चित ही उस सार्थक स्थिति को साकार कर सकते हैं।
    @Udan Tastari , जी आपका कथन व सकारातमक विचार सराहनीय है ।

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  8. गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख....

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  9. @ Dr Varsha Singh- प्रोत्साहन हेतु आभार व सहृदय धन्यवाद वर्षा जी ।

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  10. Recent Visitors और You might also like यानी linkwithin ये दो विजेट अपने ब्लाग पर लगाने के लिये इसी टिप्पणी के प्रोफ़ायल द्वारा "blogger problem " ब्लाग पर जाकर " आपके ब्लाग के लिये दो बेहद महत्वपूर्ण विजेट " लेख Monday, 7 March 2011 को प्रकाशित देखें । आने ब्लाग को सजाने के लिये अन्य कोई जानकारी । या कोई अन्य समस्या आपको है । तो "blogger problem " पर टिप्पणी द्वारा बतायें । धन्यवाद । happy bloging and happy blogger

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  11. मैंने नारी सशक्तिकरण के बारे में सभी को समर्थन देते देखा है ..चाहे ब्लोग्ग की दुनिया हो या सामाजिक या राजनीतिक ....सबने हालत के ऊपर अपने -अपने आंसू ही बहाए है ,किन्तु इस दिशा में होने वाले उपयुक्त सुझाव बराबर प्रगट नहीं किये ! इन होने वाली घटनाओं के परिप्रेक्ष में भी चर्चा होनी चाहिए.जैसे आग लगाने पर दमकल की ब्यवस्था ..वगैरह-वगैरह ! अगर हम इन समस्याओ से निदान नहीं पाते तो सिवाय सजग और होसियार रहने के अलावा कोई बिकल्प है क्या ? आज के प्रश्न दिवस के उपलक्ष में मेरा प्रश्न ब्लोग्ग जगत के सामने ! कोई जरुरी नहीं सभी इससे सहमत हो !यह मेरा एक बिचार मात्र ! इस मसाले पर ब्लोग्ग जगत में खुली चर्चा होनी चाहिए ! मंथन से ही अमृत निकलेगा !मेरी भावनाओ से बहुतो को गुस्सा भी आता है पर सच्छ्यी छुपाना समाज के लिए ...हितकर नहीं होगा ! आशा है ...इसके निदान पर खुली चर्चा हो ! आपके ब्लॉग पर यह मेरी दूसरी टिपण्णी है !अगर कोई गलती हो तो क्षमाप्राथी हूँ ! बाकि सब बेहद सुन्दर ! धन्यवाद सर !

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  12. गहन भावों के साथ विचारणीय प्रस्‍तुति ।

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  13. @G.N.Shaw, मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ । हमारे विचार इस बिन्दु पर अवश्य मिलते हैं कि सिवाय आयोजनों, गोष्ठियों व मात्र कुछ प्रतीकात्मक प्रयाशों के बजाय वास्तविक परिस्थिति व परिवेश में बदलाव की आवश्यकता है ।

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