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लेख पढ़कर मुझे अपने एक पूर्व जापनी सहकर्मी श्री सैतो , जो बंगलौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में मेरे कार्यकाल की अवधि में एक जापानी कम्पनी की और से मुख्य संविदा एवं करार विशेषज्ञ के रूप में काम करते थे, का स्मरण हो आया। श्री सैतो की उम्र तो सरसठ वर्ष से ज्यादा थी , किन्तु उनकी कार्य की फुर्ती, तत्परता, तल्लीनता एवं उत्साह किसी भी युवा से कम नहीं था । शांत मुखमंडल, उद्वेगरहित नपी-तुली संतुलित भाषा, एवं सधी हुई चाल-ढाल में उनका व्यक्तित्व अति गरिमापूर्ण लगता था । श्री सैतो प्रोजेक्ट में अति महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी , लगभग पचास से अधिक संविदाओं और करारों का डाकुमेंटेसन, उनकी लीगल और स्टैचुअरी प्रोविजन्स की स्ट्रक्चरिंग, और उनका तयसुदा समय में फाइनलाइजेसन और इम्प्लीमेंटेसन ,में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्बहन करते थे , किन्तु स्वयं उनके कार्य अथवा उनके केबिन में रंचमात्र भी कोई अव्यवस्था कभी भी दिखाई नहीं पड़ती थी । उनके चैम्बर में सभी पत्र, कागजाद्, फाइलें उनकी मेज और आलमारी में करीने से एवं सटीक मार्किंग के साथ सुव्यवस्थित रखे रहते थे, और किसी भी चर्चा के दौरान आवश्यक कागजाद या फाइल वे चटपट बिना कोई वक्त गँवाये और बिना किसी सहाय़क की सहायता के वे तुरत व चमत्कारिक रूप से उपलब्ध कर लेते थे । वे चर्चा के दौरान, दूसरों की बात ध्यान से सुनते, खुद बस जरूरत के मुताबिक और बिलकुल नपा-तुला ही बोलते, और जितना भी बोलते वह सटीक व तथ्यों-जानकारियों पर पूरी तरह आधारित होता ।
मीटिंग्स के प्रति वे बड़े ही समय-पाबन्द थे, खुद ठीक समय से उपस्थित होते, और किसी भी कारण से यदि बड़ा से बड़ा अधिकारी भी, चाहे प्रबंध निदेशक ही क्यों न हों, बिलम्ब से आता, वे मीटिंग में दो मिनट से ज्यादा प्रतीक्षा कतई नहीं करते थे और बिना वक्त जाया किये वापस अपने केबिन में आकर अपने काम में व्यस्त हो जाते ।वे मीटिंग में वापस उस अधिकारी के व्यक्तिगत खेद प्रकट करने और अनुरोध करने पर ही आते। इस तरह वे बडे ही विनम्र और दृढ तरीके से अपनी समय की पाबंदी और अनुशासनप्रियता का संदेश दे देते थे ।
श्री सैतो सचमुच ही शालीनता, अनुशासन-प्रियता,समय की पाबंदी, और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण और गरिमामय व्यवहार के प्रतिमूर्ति थे। श्री सैतो के अलावा भी कुछ अन्य जापानी सहकर्मियों के साथ मुझे दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर मिला, और उन सज्जनों में भी मुझे ये सद्गुण कमोवेश दिखाई पड़ता था । इसलिये यह कहना सर्वथा उचित ही है, और जैसा श्री अमृत ढिल्लन जी ने भी अपने लेख में बताया है, कि जापानी संस्कृति व जीवन-शैली में शालीनता, अनुशासन-प्रियता, समय की पाबंदी, और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण और गरिमामय व्यवहार की स्पष्ट झलक मिलती है ।
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श्री ढिल्लन ने अपने लेख में जापानियों की अनुशासन प्रियता,कर्तव्यपरायणता और सार्वजनिक जीवन में सदाचरण व गरिमामय व्यवहार की कुछ रोचक और प्रभावशाली घटनाओं की चर्चा की है । सार्वजनिक जीवन में शायद ही कोई चीखते, चिल्लाते, थूकते, जम्भाई लेते,अस्तव्यस्त दिखते, भीड़ में धक्का-मुक्की करते, कुहनी मारते,( जो कि हमारे देश में तो आम रूप से दिखायी पड़ जाता है ।) दिखायी पडे । जापानी अपने सार्वजनिक जीवन में सदा ही शान्त, सुव्यवस्थित,सहिष्णु और सदा नियमानुकूल व्यवहार करते हैं। भीड़भाड़ की जगहों में वे बडी ही नम्रता व सावधानी के साथ, दूसरों को बिना अवरोध और असुविधा दिये चलने का प्रयास करते हैं । उनका आम जीवन में नियमानुकूल व संयमित आचरण निश्चय ही अनुकरणीय है ।विश्व के सबसे घनी आबादी में से एक देश होने के बावजूद भी उनके सार्वजनिक स्थान हमेशा शान्तिपूर्ण, बिना किसी हंगामा या झगडा-फसाद से रहित होते हैं। औद्योगिक देशों में जापान न्यूनतम् अपराध दर वाला देश है ।
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सामान्यतया भी जापानी सार्वजनिक स्थानों पर पूरा ध्यान रखने और उनको स्वच्छ व व्यवस्थित रखने में पूरा सहयोग करते हैं।सड़क पर चलते राहगीर एक कागज का टुकड़ा भी इधर-उधर भी फिंका देखते हैं, तो चुपचाप उठाकर उसे पास के कूडेदान में डाल देते हैं।यदि आपने टैक्सीवाले को गलती से ज्यादा रकम दे दी, तो वे उल्टा आपसे क्षमा माँगते हुए, ज्यादा राशि आपको वापस कर देंगे।ट्रेनों, बसों एवं अन्य सार्वजनिक वाहनों में लोग अनुशासन के साथ पंक्तिबद्ध चढते उतरते हैं व पूरी शान्ति से यात्रा करते हैं। इन सार्वजनिक परिवहनों के कर्मचारी भी यात्रियों के साथ पूर्ण शालीनता और विनम्रता से पेश आते हैं।
जापानियों का सार्वजनिक स्थानों में सदाचरण का एक अच्छा उदाहरण श्री ढिल्लन ने भूकम्प वाले दिन हुई एक रोचक घटना से दिया है। उस दिन टोक्यो के एक भीड-भाड वाले रेस्तरॉ में काफी लोग अच्छे भोजन का आनन्द ले रहे थे जब अचानक भूकम्प आया। सभी लोग सुरक्षा के लिए बाहर सड़क पर निकल आये। किन्तु जैसे ही भूकम्प शान्त हुआ सभी लोग शान्तिपूर्वक रेस्तरॉ में वापस आ गये और वाकायदा लाइन में लगकर अपने भोजन की बिल का भुगतान करने लगे । भला ऐसा सदाचरण कहाँ देखने को मिलेगा ?
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हम सब यही प्रार्थना ईश्वर से करें कि जापानी लोगों की यह विनम्रता,सहिष्णुता,सज्जनता,शांतिप्रियता,सार्वजनिक जीवन में अनुशासन व सदाचरण एवम् उनका धीरज व संयम उन्हे इस आपदापूर्ण प्राकृतिक प्रकोप के विषम काल से गरिमापूर्ण ढंग से सामना करने हेतु शक्ति व आत्मबल प्रदान करे।
आपतकाल परखिए चारी, धीरज ... और बौद्ध दर्शन का क्षणवाद इस तरह आचरण में हो, तो मुश्किलें आसान होने में वक्त नहीं लगे.
ReplyDeleteविपत्ति में धैर्य बनाये रखने का गुण, वर्षों की अनुशासनप्रियता और जीवन के प्रति सहजता से आता है।
ReplyDeleteसही कहा है आपने विनम्रता,सहिष्णुता,सज्जनता,शांतिप्रियता,सार्वजनिक जीवन में अनुशासन व सदाचरण एवम् उनका धीरज व संयम उन्हे इस आपदापूर्ण प्राकृतिक प्रकोप के विषम काल से गरिमापूर्ण ढंग से सामना करने हेतु अवश्य ही शक्ति व आत्मबल प्रदान करेगा. विपदाओं का हिम्मत से सामना करने का उनका इतिहास भी पुराना है. हम सबकी कामना भी यही है की शीघ्रातिशीघ्र उनका जीवन सामान्य हो.
ReplyDeleteप्रकृति का यह क्रूर मजाक सोचने के लिए विवश कर देता है कि आखिर क्यों ?
ReplyDelete..प्रेरक आलेख अच्छा लगा।
आपके इस लेख से मैं पुर्णतः सहमत हूँ क्योकि मैं बिद्यार्थी जीवन में रेडियो जापान(NHK ) से जुड़ा रहा हूँ जिसके वजह से जापान के बारे में जानने का काफी कुछ मौका मिला और संयोग ही है की दिल्ली में TAJIMA जो की एक जापानी ब्रांड नाम की उन्नत कंपनी है के मशीनों के साथ एक टेक्सटाइल प्रोजेक्ट को सँभालने का मौका भी मिला अपने प्रोफेसनल जीवन में जिसमे कई जापानी इंजीनियरों के साथ समय बिताने का मौका मिला ..वास्तव में इनके कार्य करने का ढंग,ईमानदारी और समय पालन सराहनीय व अनुकरणीय होता है.....हालाँकि अनुशासन को तो मैं भी दृढ़ता से पालन करने व कराने पर जोड़ देता हूँ लेकिन शालीनता जबसे सामाजिक आन्दोलनों से जुड़ा हूँ लोगों के दुखों को देखकर कहीं खोता जा रहा है...क्योकि शालीनता,सत्य,न्याय व ईमानदारी की कद्र इस देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के पदों पर बैठे व्यक्ति भी नहीं कर पा रहे हैं.......जापान के इस वक्त के हालात बेहद दुखद और गंभीर चिंता का विषय है...लेकिन जापानी बहुत जल्द इस संकट से अपने आपको निकाल लेंगे ऐसा जापानियों को जानने वाले पूरे विश्वास के साथ तो कह ही सकते हैं....
ReplyDeleteआपके द्वारा किया गया जापानी संस्कृति का विश्लेषण अत्यंत प्रभावशाली है. उनकी इस मजबूत संस्कृति और उच्च मूल्यों के कारण ही आज जापान विश्व का प्रमुख प्रगतिशील देश है. मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की जापान को इस प्राकृतिक आपदा से उभरने में अधिक समय नहीं लगेगा. पूरा विश्व इस कठिन परिस्थिति में जापान की जनता के साथ है.
ReplyDeleteपढकर अच्छा लगा। मैं भी जापानियों की अनुशासनप्रियता का क़ायल हूँ। वे इस कठिनाई को भी अपने दृढनिश्चय से जीत ही लेंगे।
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