दो दिनों पूर्व मुझे किसी उच्च तकनीकि मसीनी उपकरण बनाने वाली कम्पनी ने अपने विभिन्न आधुनिक उपकरणों के डेमो की वीडियो फिल्म्स की सीडी भेजा। शक्तिशाली पेट्रोल इंजिन से लैस, ये पोर्टेबल आधुनिक उपकरण बडे ही हैंडी, फुर्तीले व दक्ष हैं। इनमें ग्रास व बुश कटिंग मसीन है जिसकी मदद से अकेला आदमी एक घंटे में ही एक एकड खेत में घास और झाडी का सफाया कर सकता है, ऑगर मसीन है जिसकी मदद से अकेला आदमी चटपट मिनटों में ही दो फीट से ज्यादा व्यास और छः फीट गहरा गड्ढा खोद सकता है, ट्री-ब्रांच-ट्रिमिंग मसीन है जिसके द्वारा एक अकेला ही व्यक्ति पन्द्रह-बीस फीट ऊँची टहनी-डाली को सेकेन्डों में काट और साफ कर सकता है।
पर सबसे दिल दहलाने वाला पोर्टेबल आधुनिक उपकरण है ट्री-कटिंग-सॉ मसीन, जिसकी मदद से अकेला ही व्यक्ति दो-तीन फीट से भी ज्यादा व्यास के तने वाले सीधे खडे पेड़ को कुछ सेकेन्डों में ही जमींदोज कर देता है । जो वृक्ष भयंकर आँधी-तूफान में भी मदमस्त लहराते हुए शान से खड़ा रह जाता है, उसी अति बलशाली और भीमकाय वृक्ष को ये अदना सी दिखने वाली मसीन कुछ ही पल में गाजर-मूली की तरह काट कर गिरा देती है।यह विडियो एक पल के लिए तो आपको बेचैन ही कर देता है। मेरी बेटी इस विडियो को देख इतनी अपसेट हुई कि उसने अपनी बाल-सुलभ नाराजगी जताते हुए मुझसे पूछा कि सरकार ऐसी मसीन बनाने वालों को जेल में क्यों नहीं डाल देती।मैं उसके इस अजीब से प्रश्न का कोई संतोष-जनक उत्तर नहीं दे पाया।
कुछ वर्षों पूर्व , कुछ सरकारी काम के ही सिलसिले में मुझे छत्तीसगढ राज्य में एक ओपेन कोल माइन का साइट देखने का मौका मिला। वह दृश्य तो और स्तम्भकारी था। बडे-बडे भीमकाय अर्थ-मूवर मसीनें हरे-भरे पहाड़ को ऐसे द्रुति व तत्परता से काट रही थीं, मानो कोई बडी उत्फुल्लता व चाव से अपने जन्म-दिन की केक काट रहा हो ।
आज मानव ने ऐसे ही न जाने कितने आयुध और आधुनिक उपकरणों की ईजाद कर ली है और वह बडे ही गर्व व अहंकार पूर्वक प्रकृति पर अपनी धाक जमाने व अपने शक्ति प्रदर्शन में मशगूल है । किन्तु मानव अपने अंतर्हृदय और अंतर्मन में स्थित कोमल भाव की एक दृष्टि-मात्र ही इस प्रकृति की सुन्दर, सुकोमल व सुव्यवस्थित रचना पर डाले तो सहज ही यह अनुभूति अवश्य जगती है कि प्रकृति की सुन्दर चित्रकला को नष्ट कर हम अपनी पृथ्वी के आँचल को उजाड और इस जगत को कितना कुरूप कर रहे हैं।
धरती के कैनवॉस पर इन हरे भरे वृक्षों से सजे वन और पहाड़, इनके बीच प्रवाहित मीठे जल वाली हमारी जीवन-आधार नदियों का अद्भुत व रंगरचित चित्र, प्रकृति ने अपनी समय-तूलिका से लाखों करोडो वर्षों के अथक श्रम व साधना से निरंतर रंगा व सजाया है। किन्तु हम अपने जाने-अनजाने में किये जा रहे प्रकृति विरोधी कृत्यों व उस पर अपने शक्ति प्रदर्शन से प्रकृति के अथक प्रयास से बनी इन सुन्दर पेंटिंग्स को हम कुरूप और नष्ट कर रहे हैं।
प्रकृति से खिलवाड़ हम करी
ReplyDeleteनदियन के लाचार हम करी
धरती के दूहीला चौचक
सूरज कs व्यौपार हम करी
खड़मंडल होना हौ पक्का
काहे हौवा हक्का-बक्का
...अपनी एक कविता ..काहे हौआ हक्का-बक्का... से।
हमने विध्वंस निश्चय कर लिया है और उसकी तैयारी में ऐसी मशीनें भी बना लीं हैं।
ReplyDeleteजिस विकास के सपने हम अक्सर देखते रहते हैं, वह इन्हीं मशीनों से संभव हो रहा है.
ReplyDeleteविकास होना अच्छी बात है लेकिन मानवता को बचाना उससे भी बड़ी बात है ..हम आने वाली पीढ़ियों को क्या दे रहे हैं ..यह सोचने वाली बात है ...आपकी पोस्ट की अंतिम पंक्तियाँ विचारणीय हैं ...आपका आभार
ReplyDeleteप्रकृति से छेड़छाड़ का असर सामने आने लगा है.
ReplyDeleteइन मशीनों का प्रयोग एक तरफ बीमारियों का भी जन्मदाता बन गया है, क्योंकि मेहनत करना शरीरिक श्रम सब खत्म होता जा रहा है. सुबह की सैर के वजाय ट्रेडमिल जाता भाती है वोह भी ठन्डे वातावरण में.
जो विकास विनाश की ओर ले जाये ऐसे विकास से क्या फायदा.
आज विकाश का अर्थ असली सुन्दरता को शर्मनाक कुरूपता से ढकना ही रह गया है....? बांकी खतरे की घंटी प्रवीन पाण्डेय साहब ने अपनी टिपण्णी से बजा ही दी है.....सचमुच मानवता के लिए आपातकाल का समय है हमसब को मिल बैठकर इससे निपटने के बारे में सोचने और कुछ करने की भी जरूरत है आपसी साधन व संसाधन के सहयोग से.......क्योकि सरकारी शोध इस दिशा में सिर्फ खाना पूर्ति भर रह गया है...वैसे आप जैसे लोग जिनके हाथ में नीतिगत फैसले करने की भी शक्तियाँ है इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण पहल कर सकते हैं...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
आज हमारी शिक्षा में महत्व इस बात का है कि हम कैसे बहुत तेजी से विकास करें. इस तेजी को बनाये रखने में हम यह सीखना भूल जाते हैं कि विकास के लिए हमेशा जटिल मशीने ही जरूरी नहीं है, अपितु हमारे पास जो प्राकृतिक संसाधन हैं, उनका प्राकृतिक संतुलन बनाये रखते हुए रचनात्मक उपयोग ही मानव जाति का विकास कर सकता है. पेड़ काटने की मशीने बनाने से बजाय हमे वह तकनीक विकसित करनी चाहिए जिससे एक वयस्क वृक्ष को बिना काटे एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रत्यारोपित किया जा सके.
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