दिन तो हमने
साथ गुजारे
रहे अपरिचित
हृदय हमारे
यदि मेरा परिचय
पाना हो
गीत कभी पढ़
लेना मेरे।1।
कह न सका मैं
जो तुमसे
अव्यक्त भाव वे
गीत बने।
गुजरे जो पल
बिन संग तेरे
वे लमहे आँसू-
शब्द बने।2।
तिनकों में मैं
ढ़ूँढ़ रहा था,
खोये दाने
मुक्तामणि के।
हाथ न आयी
जीवनमोती
सौगात मिले कुछ
कंकण के।3।
भरी थाल में
डूब हथेली,
चुपके से मिल
कीँ कुछ बातें
मीठी कितनी
हारी बाजी
देकर तुम्हें
जीत सौगातें।4।
हृदय प्रेम से
रहा छलकता
प्रिय था तब
प्रत्येक समर्पण।
प्रेमशून्यता प्रश्नपूर्ण बन,
बिम्ब भ्रमित
शंका का दर्पण।5।
कल जो मेरी
चर्चा भर से
लालकपोलित शरमा
जाते ।
पीड़ा आज
पहुँचती भारी,
मेरा नाम लबों
पर लेते।6।
अब तो क्या मैं
मिल पाऊँगा,
जब खुद को ही
ढूढा करता हूँ।
जो न मिली तेरी
चौखट तो,
मैं गीतों में
अब रहता हूँ।7।
दिन तो हमने साथ गुजारे
ReplyDeleteरहे अपरिचित हृदय हमारे
यदि मेरा परिचय पाना हो
गीत कभी पढ़ लेना मेरे।1।
वाह, हृदय के गहन भावों को बड़ी ही खूबसूरती से शब्दों में उकेरा है ! गीत की पंक्तियाँ मन के तार को झंकृत कर गयीं !
आभार !
मर्मस्पर्शी भाव....
ReplyDeleteसुन्दर प्रवाह...
अतिसुन्दर रचना....
आह कहूँ या वाह ,बस यही नहीं समझ पड़ रहा..
गीत हमारे अपना जीवन कह देने में सक्षम थे,
ReplyDeleteनहीं कल्पना तनिक बसी थी, सारे सारे खालिस थे।
मर्मज्ञ जी, रंजना जी एवं प्रवीण जी, आपका हार्दिक आभार।
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