मैं बंगलौर में विगत लगभग साढ़े चार वर्षों से, जुलाई 2007 में मेरे बंगलौर मेट्रो प्रोजैक्ट में पोस्टिंग के पश्चात् से, रह रहा हूँ।तब से, और विगत एक वर्ष से मेरे वापस रेलवे में पोस्टिंग के बाद से, प्रतिदिन ही मेरे ऑफिस आने-जाने का रास्ता जयनगर के बीच से गुजरने वाली आर.वी. रोड से है जो साउथ इंड सर्किल पर समाप्त होती है।
शुरु के सालों में आते जाते इस सड़क के दोनों ओर इसकी लम्बाई के साथ फैले हरेभरे गार्डेन बड़े ही सुंदर, मनमोहक व सुखदायक लगते थे।फिर पिछले दो साल से मेट्रो रेल,जिसका अलाइनमेंट आर वी रोड के सेन्टर लाइन के साथ है, का काम शुरू हुआ और धीरे धीरे मेट्रो स्टेशन के निर्माण कार्य हेतु निर्माण सामग्री व बड़ी बड़ी मसीनों के भंडारण के लिये इन गार्डेन का उपयोग व बैरिकेडिंग शुरु हुई, और देखते देखते सड़क के किनारे फैला पूरा हरा-भरा सुंदर स्ट्रेच विलुप्त हो गया व उनकी जगह आ गये बदरूप तितरबितर बिखरे निर्माण-सामग्री के ढेर, लोहालक्क्ड़,मसीन,औजार व बदसूरत बैरिकेडिंग्स।
अभी तक तो सड़क के किनारे फैली गंदगी व बदसूरती बैरीकेडिंग के पीछे कुछ हद तक ढकी हुई थी किंतु इधर कुछ दिनों से हटायी जा रही बैरिकेडिंग के पीछे छुपी विद्रूपता नजर आने लगी है कि इन गार्डेन्स के ज्यादातर पुराने हरे पेड़ कट चुके है और अब उनकी जगह उनकी बोटी-बोटी कटी लाशें जमीन पर ढेर पड़ी हैं।
यह देखकर सचमुच मन में बड़ा क्षोभ होता है और मन में यह प्रश्न हथौड़े की तरह प्रहार करता है कि क्या विकाश कार्य का यही मतलब है कि सर्वप्रथम हम अपनी प्राकृतिक हरियाली व सुंदरता को नष्ट कर दें?
कुछ दिन पूर्व मैं उत्तरप्रदेश के सुदूर दक्षिण-पूर्व कोने पर स्थित एक छोटे से स्थान ओबरा किसी शादी-समारोह में शामिल होने हेतु गया था।"ओबरा" एक महत्त्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है।यह मेरे लिये कई मायनों में विशेष स्थान रहा है कि यहाँ मेरी व मेरी पत्नी दोनों की स्कूलिंग हुई है व हमारे बचपन के सुनहरे वर्ष यहाँ बीते, साथ ही साथ अगर हमारे सामने जब भी प्राकृतिक रूप से सुंदर व हरे-भरे स्थान की चर्चा होती है तो हमारी जेहन में पहला ध्यान ओबरा का ही आता रहा है- चोपन, जो ओबरा से 8 किमी पहले स्थित मुख्य रेलवे स्टेशन है, से ओबरा जाने वाली मेटैलिक सड़क जो दोनों ओर हरियाली से लकदक सुंदर होती,वहाँ की साफ-सुथरी हरी-भरी कालोनी,ओबरा के बाहरी हिस्सों में फैले सुंदर हरे-भरे जंगल व वहाँ स्थित सुंदर-स्वच्छ जल वाला रेनु नदी पर स्थित ओबरा डैम,जिसके पानी से उच्च क्षमता की बिजली पैदा की जाती है।यह सबकुछ हमारे जेहन में एक सुंदरतम व अनुपम स्थान के रूप से स्थापित रहा है।
किंतु लगभग तीस वर्षों के अंतराल पर जब अब हमारा ओबरा आना हुआ तो वहाँ का दृश्य व दशा देखकर घोर दु:ख व निराशा हुई- चोपन से ओबरा तक की टूटी-फूटी गड्ढों से भरी, व दोनों तरफ की नष्ट हरियाली व जंगल से उजाड़,वाली बदसूरत व बदहाल सड़क, क्रसर मसीनों के शोर व धूल से भरीं उजड़ी व निरंतर छीजती पहाड़ियाँ, उजाड़ व विरान सी कालोनी और इसकी टूटी-फूटी सड़कें, इसके बाहरी हिस्से की नष्ट-भ्रष्ट हरियाली, ऐसा लगा मानों किसी प्रेतस्थल में प्रवेश कर रहे हों। जो स्थान हमारे जेहन में स्वर्ग सा सुंदर व हमें सदैव मधुरस्मृति दायक रहा है, उसकी यह भयावह व घोर उपेक्षित दशा देखकर मन को बहुत चोट पहुँची।
यह सिर्फ एक दो स्थान की ही यह बात नहीं है, प्राय: हर वह स्थान जहाँ हमारा तथाकथित विकाश कार्य हुआ है अथवा हो रहा है,वहाँ विकाश तो जो है सो है पर निश्चय ही प्राकृतिक विद्रूपता अवश्यमेव ज्यादा बढ़ी है। विकाश की कुल्हाड़ी का पहला आघात हरियाली व हरे-भरे वृक्षों पर ही पड़ा है।
वैसे किसी भी विकाश का सामान्य मतलब तो यह नहीं माना जा सकता कि हरियाली व प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट व नेस्तनावूद कर दें। मैं कुछ महीनों पहले एक ट्रेनिंग के सिलसिले में सिंगापुर में था।सिंगापुर डेढ़- दो हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्र का देश है, जो हमारे देश के किसी भी मेट्रो शहर की तुलना में छोटा ही होगा, और भारतीय शहरों से हर मामले में हजारों गुना ज्यादा विकसित है, किंतु इसकी हरियाली व प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है,और गंदगी व धूल-धक्कड़ का तो नामोनिशान तक नहीं।जहाँ हमारे मेट्रो शहरों में हरियाली नेस्तनामूद हो चुकी हैं व जहाँ-तहाँ बस अजगर जैसे फैले बदसूरत फ्लाईओवर हैं जो आँखों को अति कष्टकारी लगते हैं, वहीं सिंगापुर का हर कोना हरीतिमापूर्ण है ,और वहाँ के फ्लाईओवर्स भी सुरुचिपूर्ण व हरे-भरे फसाड के साथ आखों को सुखकारी ही लगते हैं।
हमें भी अपनी सोच में परिवर्तन व समझदारी दिखानी होगी कि विकाश कार्यों के साथ हम अपनी प्राकृतिक संपदा व सौंदर्य को तहस-नहस न होने दें, बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य व इसकी हरीतिमा को विकाश का पूरक बनाकर रखें, और इसी तरह का ही विकाश माडल हमारे एक सुंदर,सुखद , मंगलकारी व सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित कर सकता है।
जहाँ जहाँ भी बचपन की स्मृतियों में पेड़ थे, अब वहाँ जाने पर दिखायी नहीं पड़ते हैं।
ReplyDeleteदेश में तरक्की न होकर उसकी उपेक्षा ही ज्यादा हो रही है ! अत्यंत दुखद है ये ! हमें अपने स्तर पर सुधार के लिए प्रयासरत रहना चाहिए !
ReplyDeleteLet's go green ! Save environment !
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हमें भी अपनी सोच में परिवर्तन व समझदारी दिखानी होगी कि विकाश कार्यों के साथ हम अपनी प्राकृतिक संपदा व सौंदर्य को तहस-नहस न होने दें, बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य व इसकी हरीतिमा को विकाश का पूरक बनाकर रखें, और इसी तरह का ही विकाश माडल हमारे एक सुंदर,सुखद , मंगलकारी व सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित कर सकता है।
ReplyDeleteआपकी सोच से मैं पूर्णतया सहमत हूँ.
अच्छी लगी यह पोस्ट।
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