सरकारी तंत्र व संस्थाओं, जिनसे हमारा अपने रोजमर्रा के जीवनव्यवहार में सरोकार अनिवार्य रूप से पड़ता है, की प्रायः अकर्मण्यता, धीमी कार्यप्रणाली, सेवाओं को हासिल करने में आम आदमी के समय व पैसे की अनावश्यक बरबादी व उनमें व्याप्त घोर भ्रष्टाचार जैसी समस्यायें आम आदमी के मन में सरकार व सरकारी संस्थाओं के प्रति घोर निराशा व कुंठा उत्पन्न करती हैं।
वैश्वीकरण व खुलेबाजार के युग में जब देश का आमनागरिक भी विश्व के
अन्य उन्नत व उन्नतशील देशों में वर्तमान में उपलब्ध सक्षम व कुशल नागरिक सेवाओं
से भलीभाँति परिचित व उनसे विज्ञ है,ऐसे में अपने देश में आज भी मौजूद वही पुरातनपंथी, अति
अक्षम, भ्रष्ट व निकम्मी सरकारी संस्थाओं, व इनमें बदले हुये
आधुनिक तकनीकी युग में भी कोई सकारात्मक
परिवर्तन न आने से आम नागरिक के मन में सरकार व सरकारी संगठनों के प्रति निराशा व आक्रोश का बढ़ना स्वाभाविक है। वर्तमान में सरकार के विरुद्ध चल रहे सिविल
सोसाइटी आंदोलनों व इनकी जन-प्रसिद्धि के मूल कारण में यहीं
महत्वपूर्ण तथ्य हैं।
किंतु इस जटिल समस्या कि समीक्षा करते समय हमें यह महत्वपूर्ण
वैज्ञानिक तथ्य ध्यान में रखना होगा कि भौतिक वस्तुओं की तरह मानवसंचालित संस्थायें
भी एक निश्चित गति व संवेगयुक्त (with certain velocity and momentum) होती हैं । जैसे
एक भारी व गतिमान भौतिक वस्तु के अत्यधिक संवेग-शक्तिवान होने के कारण उसकी गति-दिशा
बदलने हेतु भारी वाह्य बल की आवश्यकता होती है,उसी
प्रकार विशाल मानवसंचालित संस्थाओं की स्वयं की अंतर्निहित गति व अतिसंवेगशीलता के
कारण उनकी गतिदिशा परिवर्तन हेतु भारी वाह्य बल और शक्तिपूर्ण नेतृत्व व कौशल की
आवश्यकता होती है। चाहे किसी भी स्तर का संस्थान हो, छोटा
अथवा बड़ा, उसमें अपेक्षित परिवर्तन की मात्रा के अनुपात में ही उसके नेतृत्व में बल
और शक्ति की आवश्यकता होगी जो उसकी वर्तमान गति की दिशा को संशोधित व बदल सके।
सरकार व सरकारी संस्थाओं के मुखिया व नेतृत्वकर्ता जो इस परिवर्तन की
आवश्यकता को देखते व समझते हैं और जिनके कंधों पर यह महत्वूर्ण जिम्मेदारी होती है, उन्हें अपनी संस्था में किसी अपेक्षित बदलाव हेतु इसमें
निहित भारी जड़त्वशक्ति का सामना व इसका निराकरण करना
अपरिहार्य व अनिवार्य है।
जैसा प्रबंधन की पुस्तकों में पढ़ने को मिलता है,इस परिवर्तन की प्रक्रिया के छ: प्रमुख कदम होते हैं-
1- दृष्टिकोण (Vision)- सरकार व सरकारी संस्थाओं
द्वारा अपनी प्रदत्त सेवाओं को प्राप्तकरने वाले आमनागरिक को एक ग्राहक के भाव से देखना
ही अपने आप में एक उल्लेखनीय परिवर्तनकारी (Transformational)
दृष्टिकोण सिद्ध हो सकता है।
2.संगठनात्मक संस्कृति में समुचित परिवर्तन (Right
Change in Organisational Culture) – किसी संगठन
में अपेक्षित सफल बदलाव प्रक्रिया का मुख्य आयाम है ऐसे वातावरण की स्थापना जो निर्धारित लक्ष्यों
की प्राप्ति में सहयोग करे। यदि किसी संगठन का नवीन दृष्टिकोण(Vision) उसमें एक नवीन
दिशा हेतु सोच व उद्देश्य प्रदान करता है तो उस संगठन की संस्कृति यह निर्धारित
करती है कि यह नवीन दृष्टिकोण संगठन के लोगों,कार्यकर्ताओं द्वारा कितना आलिंगित,स्वीकार्य व अमल में लाया जाता है , याकि यह उन्हें
मानसिक रूप से अस्वीकार्य है।
हमें यह समीकरण अवश्य समझना चाहिये कि नया दृष्टिकोण अपनाने का
तात्पर्य है एक बदलाव का आमंत्रण, बदलाव का तात्पर्य है व्यक्ति द्वारा एक लम्बी अवधि से अपने स्वभाव
द्वारा अपनाये हुये सुविधा क्षेत्र ( comfort zone) की तिलांजलि, अपनी सुविधा क्षेत्र से बाहर आने व स्थिति-परिवर्तन से उत्पन्न
होती है तात्कालिक अनिश्चितता, अनिश्चितता से
अटकलबाजी या परिकल्पना (speculation) बढ़ती है, परिकल्पना( speculation) की स्थिति भय उत्पन्न करती है और भय के कारण ही मनुष्य में विरोध का भाव
उत्पन्न होता है। बदलाव के इस समीकरण को ठीक से समझना व इसके अनुरूप संस्थाओं की
संस्कृति का निर्माण किसी भी बदलाव प्रक्रिया की दिशा में एक प्रमुख कदम है।
3.समुचित व्यवसायिक मॉडल (Right Business Model)- इस बात को बार-बार मंत्र की तरह दुहराने व रटने में
कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये कि किसी संस्था या संगठन का सही व्यवसाय मॉडल वही है
जो ग्राहकसेवाकेंद्रित वातावरण का निर्माण करता है व संस्था के कार्यकर्ता इसके
ग्राहकों को मूल्यवान सेवा प्रदान करने में पूरी तत्परता व लगनशीलता से निरत
हैं।
4. तकनीकि संरचना (Technology Infrastructure) – उपरोक्त वर्णित कदम दो व तीन की सफलता में सही
आईटी व तकनीकि ढाँचे की उपलब्धता अपरिहार्य व अनिवार्य है। उचित आईटी ढाँचे की
डिजाइन प्रक्रिया की तुलना हम अपने घर अथवा कार्यालय भवन की रिडिजाइनिंग से कर
सकते हैं।इसमें हमें वहीं सावधानियाँ बरतनी पड़ेंगी जो हमें अपने घर अथवा कार्यालय
भवन के रिमॉडल व विस्तार करने में रखनी पड़ती हैं, क्योंकि
हमें इस प्रक्रिया की अवधि में इस बदलाव के साथ-साथ अपने उस पुराने घर या कार्यालय
भवन में रहना व कार्य-निर्वाह भी करना है ।
5.परिवर्तन का रोडमैप(Transformation Roadmap)- कितनी ही अच्छी व महत्वपूर्ण योजना क्यों न हो, किंतु बिना सही क्रियान्वयन के वह अर्थहीन है। अत: सारी योजनाओं व
निर्धारित लक्ष्यों का सार है उनके क्रियान्वयन हेतु roadmap
तैयार करना ।बदलाव की प्रक्रिया का सबसे कठिन व चुनौतीपूर्ण कदम यही होता है।
6.प्रचालन व समयानुकूलन (Operate and adapt over
Time)- सरकारी संस्थायें प्राय: एकांगी ,पृथक साइलोस(separate silos) में कार्य करने की
अभ्यस्त होती हैं।पारंपरिक पदानुक्रमित निर्णय लेने की प्रक्रिया (hierarchical
decision making) इस एकांगी व पृथक
साइलोस (separate silo) पारिस्थिकी हेतु तो प्रभावी हो सकती हैं
किंतु संकलित प्रक्रियाओं के समुचित संचालन में अनेकों संस्थाओं की पारस्परिक
भागीदारी व सूचनाओं के आदान-प्रदान की आवश्यकता होती है।ऐसी परिस्थिति की माँग व
आवश्यकता होती है कि हर संस्था को अपनी
निर्धारित सीमारेखा के आगे जाकर अपने सहयोगी , व नागरिकों को संपूर्ण सेवा उपलब्ध
करा सकने हेतु अन्य
भागीदार संस्थाओं, के साथ भी आवश्यक
तालमेल,सामंजस्य व समायोजन करना होगा, ताकि नागरिकों को वतौर
ग्राहक सही व अर्थपूर्ण सेवा उपलब्ध हो सके।
सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली में बदलाव बहुत कुछ बदल सकता है.....
ReplyDeleteजी मोनिका जी। टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteएक सार्थक बदलाव के लिये प्रेरित करती पोस्ट।
ReplyDeleteप्रोत्साहित करती टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteसरकारी विभागों में चुस्त दुरस्त बनाए रखने के सार्थक बदलाव बहुत जरूरी है,,,,,,
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
जी धीरेंद्र जी। टिप्पड़ी हेतु आभार।
DeleteVery creativee post
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