“मैं मन ही मन कामना कर रहा था कि इन (रजत गुप्ता) पर लगे सारे आरोप गलत
सिद्ध हो जायें। एक व्यक्ति जो इस महान देश में अपने सपने लेकर आया, और वह महान
अमरीकी सपने और उन्हे साकार कर पाने का एक अद्भुत उदाहरण रहा ,किंतु दुर्भाग्य से अंततः इनपर लगे सारे आरोपों हेतु बड़े ठोस सबूत उपलब्ध
थे और हमने इनके लिये इन्हे दोषी पाया।“ यह कथन था प्रधान
जूरी रिचर्ड लेप्कोस्की का जिन्होने फैसला सुनाने के पश्चात् अपनी बातचीत में मन
की पीड़ा अभिव्यक्त करते हुये बताया।
इसी तरह
एक अन्य जूरीसदस्य भी फैसले के बाद अपने मन का दुःख नहीं रोक पाये और उन्होंने
कहा- “सच पूछिये तो मेरे अंदर एक संघर्ष चल रहा था, मैं इस अद्भुत व्यक्ति के
विलक्षण जीवन के नतीजे को निर्धारित करने का प्रयास कर रहा था।“
इस तरह महान
अमरीकी स्वप्न का एक नायाब उदाहरण, और कहानी की किताबों में वर्णित किसी सफल नायक
सा सम्पूर्ण जीवन एक ही घटना में टूटकर बिखर और खाक में मिल गया ।
भारत में
एक अति साधारण परिवार में जन्म,किशोरावस्था में असमय माता-पिता की मृत्यु व अनाथ
होने की अनिश्चितता व जीवन-संघर्ष,फिर भी अपनी प्रतिभा व लगन से आई आई टी में
दाखिला और 1971 में मेकैनिकल ईंजिनियरिंग की विशिष्ट योग्यता से पढ़ाई पूरी करने
के उपरांत, विश्व के श्रेष्ठतम् प्रबंधन संस्थान हारवर्ड बिजनिस स्कूल से एम.बी.ए
की पढ़ाई पूरी कर विश्व की एक अति श्रेष्ठ परामर्शदाता कंपनी मैकेन्जी व मैकेन्जी
में नौकरी और बीस वर्ष से भी कम अवधि में कंपनी के शिखर पद ,विश्व प्रबंध निदेशक,
पर नियुक्ति, इस पद पर लगातार तीन टर्म तक, वर्ष 1994 से 2003 तक कार्यरत, कंपनी
प्रबंध निदेशक से सेवानिवृत्ति के उपरांत कंपनी के वरिष्ठ पार्टनर तथा विश्व के
अन्य प्रतिष्ठित बैंको व कंपनियों- गोल्डमैन सैक्स,प्रॉक्टर व गैंबल इत्यादि के
निदेशकमंडल में नियुक्ति, देश विदेश में अनेक प्रतिष्ठित प्रबंधन व स्वास्थ्य
शिक्षा संस्थानों के स्थापना व कुशल संचालन में प्रमुख व अगुआ की भूमिका,कई निजी
फंड कंपनियों के संस्थापक व मालिक, दुनिया के तमाम धर्मार्थ संस्थानों के प्रबंधन
व संचालन में प्रमुख भूमिका,विश्व में वर्तमान महान हस्तियों,राजनीतिक व प्रशासनिक
मुखियाओं से प्रगाढ़ मित्रता व श्रेष्ठ सभा-गोष्ठियों में प्रायः प्रमुख वक्ता व
अतिथि के रूप में विश्व भर में आमंत्रित होने वाले एक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति, भला
इससे अद्भुत, कहानी की किताबों के महान नायक जैसा सफल जीवन भला और क्या हो सकता है
।
किंतु यह
सब कुछ, एक महान उपलब्धियों भरा रजत-पटल सा चमकता महिमामंडित जीवन , एक स्याहमयी
घटना से सदैव के लिये धूमिल व कलंकित हो गया ।यह सारी उत्कृष्ट उपलब्धियाँ एक ही क्षण
में ध्वस्त हो गयीं । जो व्यक्ति संसार हेतु आदर्श व अनुकरणीय था,एक ही क्षण में
कलंकित व आर्थिक दुष्कर्म का पर्याय बन गया।
मन
में यह प्रश्न हथौड़े की तरह प्रहार करता है- ऐसा क्यों । आखिर रजत पटल पर स्याह
बिंदु क्यों ? जो अपने जीवन की लगनशीलता,अनुशासन , संयम व धैर्य की पराकाष्ठामयी तपस्या
द्वारा सफलता के शिखर पर पहुँचता है, वही व्यक्ति भला कैसे
अपने एक धर्मच्युत कदम से पतित-स्वर्गदूत की भाँति अवरोहित होकर गर्त को प्राप्त
हो जाता है।उसका एक क्षणिक पाप उसके आजीवन संचित पुण्य को वाष्पीभूत कर उन्हें
शून्य बना देता है। क्या है जो पूर्णता की पराकाष्ठा में भी एक ऐसी अतृप्त प्यास
की तरह जगता है,और सामने बहती सुर-सरिता के अमृत को त्याग
पाप-चसक की सिलती बूँदों को चाट कर तालु की तृष्णा को सिंचित करने को विवश करता है ?
क्या है जो निधियों बीच रहने पर भी दरिद्रता व तृष्णा की अग्नि मन
में प्रज्वलित रखता है? क्या राग,द्वेष,लोभ,मोह,मद,मात्सर्य देव तुल्य मानव के अंदर भी सुसुप्त अवस्था में स्थापित रहते हैं
व अनुकूल परिस्थिति पाते ही प्रदीप्त अग्नि की तरह जागृत हो जीवन के पुण्य-कुटीर
को क्षणमात्र में भष्मीभूत कर देते हैं?क्या धर्म,अर्थ व काम के त्रिशरीरी स्वरूप हमारे अंदर निरंतर संधानमयी हैं ? मनुष्य के सामने यह यक्षप्रश्न निरंतर उपहासमयी स्वरूप में खड़ा है,
कि कोई युधिष्ठिर तो इसका सामना करे,समाधान
बताये।किंतु क्या युधिष्ठिर को भी सत्य छोड़ अर्धसत्य अपनाने पर विवश नहीं किया गया,उन्हे भी तो इस अर्धसत्य के प्रतिकार में धर्मराज के पद से अल्पच्युत होना
पड़ा और स्वर्गारोहण के समय उन्हें भी दंडस्वरूप कनिष्ठा ऊंगली का कष्टमय परित्याग
करना पड़ा था। तो इस माया से लिपटे जगत में अपने कर्म के प्रतिकार की अग्नि परीक्षा
से तो प्रत्येक को गुजरना ही पड़ता है, वह सीता हो या कुंती।
इन
प्रश्नों के उत्तर तो अपने-अपने दृष्टिकोण को अनुसार अनेकों व इनकी समीक्षा में भी
अनेकों तर्क-वितर्क हो सकते हैं, किंतु यधार्थ जीवन में यह उत्कर्ष व उत्थान के
साथ नियत पतन एक अपरिहार्य व दुःखद संयोग की तरह सदैव परछाई की तरह साथ रहा है, अब
चाहे इसे बिडंबना की संज्ञा दी जाय अथवा तकदीर का खेल।
मन में घुमड़ते ये प्रश्न सहसा कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त हो जाते हैं-
उदित सूर्य अस्ताचल जाता,
दिवस रात्रि के अंक समाता,
धवल चाँदनी सिंचित धरती,पर
रजत पटल(चंद्रमा) पर स्याह बिंदु क्यों?
दिवस रात्रि के अंक समाता,
धवल चाँदनी सिंचित धरती,पर
रजत पटल(चंद्रमा) पर स्याह बिंदु क्यों?
उदभव जो करता वह गिरता,
सिंधुवाष्प वारिधि में मिलता,
निधि मिलती जो कल खो जाती,
उत्थान-पतन की चक्रगति क्यों ?
सिंधुवाष्प वारिधि में मिलता,
निधि मिलती जो कल खो जाती,
उत्थान-पतन की चक्रगति क्यों ?
रजत पटल पर स्याह बिंदु क्यों ?
दुखद है, कमजोरी कहाँ से आकर घेर ले, कहना कठिन है..
ReplyDeleteअचंभित होने के सिवा क्या कहा जाय! कौन सा ज्ञान बघारा जाय!!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा सारगर्भित विचारणीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार,देवेन्द्र जी.