आज कार्तिक पूर्णिमा है।जब से होश सँभाला इस दिन के महत्व व इसकी पवित्रता को सन्निकट से देखने व अनुभव करने का अवसर मिला।कार्तिक माह के प्रथम दिन(दीपावली से पंद्रह दिन पहले)पहले से ही तैयार लिपे-पुते तुलसी के चबूतरे पर शाम को जब माँ घी के दीपक जलाती तो मैं उनके साथ बैठा रहता और बड़ी अधीरता से उनकी पूजा समाप्त होने व प्रसाद में चढ़ी मिश्री चटपट मिलने व खाने की ताक में रहता।
मेरी माँ पूरे कार्तिक माह नियमित शाम को तुलसी की दीपपूजा करती हैं व कार्तिकपूर्णिमा की शाम को ढेर सारे घी के दीपक जलाकर व पेड़ा इत्यादि विशेष प्रसाद द्वारा सम्पन्न होती है। सच कहें तो कार्तिकापूर्णिमा की शाम हमारे लिये दूसरी दीपावली की तरह ही प्रकाशमय व मिष्ठानमय होती ।माँ पूजा समाप्त कर तुलसी माता के गीत गातीं और हम इस उत्साह व फिक्र में वहाँ बैठे
रहते कि हमारे जलाये घी के दीपक ज्यादा समय तक जलें व हवा के झोके से बुझें नहीं,इसी चक्कर में माँ द्वारा इस पूजा के लिये बड़ी मेहनत से घर पर ही तैयार किया गाय का शुद्ध घी
का थोड़ा अपव्यय व नुकसान भी हो जाता व इससे नाराज भी हो जातीं।
मैं
देखता हूँ कि मेरी माँ का पूरे कार्तिक माह ही पूजा व्रत चलता रहता है,वे पूरे माह प्रति रविवार व्रत रहती हैं जिसमें शाम को बस थोड़ा सा गुड़ व रोटी खाती हैं । ढेर सारा घर का काम व दिन भर व्रत रहने से कभीकभार अस्वस्थ भी हो जाती हैं,
किंतु अभी भी सत्तर वर्ष की उम्र में व्रत के कड़ाई से पालन में कोई मुरव्वत नहीं करतीं
हैं।उनके इस शक्ति व साहस पर अतिशय आश्चर्य भी होता है व चिंता भी।
इसके अतिरिक्त
अपने बचपन में यह भी देखता था कि घर के शिवमंदिर में भी कार्तिकपूर्णिमा पर विशेष पूजा व हवन होता।गाँव से कई लोग गंगा स्नान हेतु काशी व प्रयाग जाते।रेलवे की नौकरी में जब मैं इलाहाबाद में कार्यरत था तो कार्तिकपूर्णिमा को संगमस्नान के लिये जाता था।हालाँकि मैं इतना सौभाग्यशाली व धर्मनिष्ठ तो नहीं हूं कि नियमित गंगास्नान कर पाया हूँ पर जो भी
स्वल्प अनुभव किया है उससे कहना चाहूँगा कि प्रात: सूर्योदयकाल में प्रयाग में किये गये गंगास्नान से बड़ा व अद्भुत सुख व सौन्दर्य आज तक कोई अन्य अनुभव नहीं हुआ।
स्कूल के लिये जब गाँव से शहर आ गया तब कार्तिकपूर्णिमा का सिक्खधर्म में विशेष महत्व देखने व अनुभव को मिला।गुरुनानक देव का जन्मदिन व इसको प्रकाशोत्सव पर्व के रूप में
मनाने हेतु गुरुद्वारों की बहुत सुंदर सजावट होती और गुरुद्वारे
में दिनभर पाठ चलता ।मैं
अपने सिक्खधर्म अनुयायी मित्रों के साथ गुरुद्वारे जाता व वहाँ छककर प्रसाद का
हलवा खाता,उस प्रसाद का स्वाद आज भी मन में उसी प्रकार ताजा है।
अपने
स्कूल के हिंदीपुस्तक में कार्तिकपूर्णिमा पर एक सुंदर निबंध भी पढ़ा था जिसे प्रसिद्ध कथाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा था।इस निबंध में कार्तिकपूर्णिमा के पौराणिक महत्व से लेकर वर्तमान युग में गुरुनानक देव के जन्मदिन होने व सिक्खधर्म में इसके
विशेष महत्व के अतिरिक्त इस दिन को उन्होने वर्ष का सबसे पवित्र व श्रेष्ठ दिन कहा है,जिस दिन स्नान,ध्यान व दान द्वारा मनुष्य का तन,मन,हृदय व आत्मा सभी तृप्त व पवित्र हो जाते हैं।
जब मैं
वाराणसी बीय़चयू में पीजी का छात्र था तब
वहाँ की अति प्रसिद्ध कार्तिकपूर्णिमा का गंगास्नान,इस दिन की शाम गंगा में
दीपदान,विशेष आरती का आयोजन देखने का सौभाग्य मिला,वह सुंदर व मनोरम दृश्य आज भी
मन में स्थाई है।
इसी
प्रकार रेलवे के सेवाकाल की शुरुआत में जब मैं बरौनी में पदासीन था, तो वहाँ
दिनकरजी की जन्मस्थली सिमरिया व मोकामा घाट क्षेत्र में पूरे कार्तिक माह गंगातट
पर भारी संख्या में लोग कुटिया बनाकर कल्पवास करते व शाम को गंगा जी की भव्य आरती
का आयोजन होता।इस तरह भारत के विभिन्न राज्यों व क्षेत्र में ही इस पुनीत पर्व को
अपने-अपने तरीके से मनाने की प्राचीन परंपरा रही है।
हालाँकि तर्क के स्तर पर देखें तो हमारे जीवन का हर दिन,हर पल बराबर शुभ व महत्वपूर्ण है,तरीके से तो
हमारे जीवन का प्रत्येक ही दिन कार्तिकपूर्णिमा है,किंतु कुछ विशेष क्षण,विशेष मुहुर्त,विशेष दिन ,जब सृष्टि द्वारा कोई विशेष व शुभ पहल होती है,कोई अलौकिक घटना घटित होती है,किसी महान आत्मा का संत के रूप में पृथ्वी पर अवतरण होता है,जो कि मानवसभ्यता के अस्तित्व व कल्याण के आधार बनते हैं,तो वे दिन हमारे जीवन में निश्चय ही प्रधान व पवित्र स्थान रखते हैं।
इन पवित्र दिनों को उन्ही
महान घटनाओं व महापुरुषों की स्मृति में जप-तप-ध्यान-दान
सम्पन्न करने से निश्चय ही हमारे आत्मा की पवित्रता जाग्रित होती है,और जिससे हमारा मन,शरीर व हृदय भी पवित्र व स्वस्थ होता है।इसीलिये
इस प्रकार के पवित्र दिनों व अवसरों का प्राचीन समय से ही उत्सव-पर्व इत्यादि के
रूप में मनाने की हमारी संस्कृति व परंपरा रही है।इस प्रकार कार्तिक पूर्णिमा का दिन
भी हमारे संस्कृति व परंपरा में श्रेष्ठतम् स्थान रखता है।
सबको
कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें।
आप के कार्तिक माह में मां के स्नान का आत्मीय वर्णन मुझे अपने जीवन में अपने मां के कार्तिक स्नान की याद ताजा कर दी । हालांकि आज वही मां अपने जर्जर एवम कष्टकर काया के साथ अपने अंतिम समय को बिता रहीं हैं । उनके उस समय को याद करके जीवन की निस्सारता को इतने नजदीक से महसूस करना उद्विग्नता पैदा कर देता है ।
ReplyDeleteइन पवित्र दिनों को उन्ही महान घटनाओं व महापुरुषों की स्मृति में जप-तप-ध्यान-दान सम्पन्न करने से निश्चय ही हमारे आत्मा की पवित्रता जाग्रित होती है,और जिससे हमारा मन,शरीर व हृदय भी पवित्र व स्वस्थ होता है।
ReplyDeleteसारगर्भित आलेख ......शुभकामनायें.
कानपुर में थे तो हर कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान करने जैते थे, रेत में खेलना, थक जाना फिर छोले भटूरे खाना..
ReplyDeleteअति सुन्दर आलेख ..शुभकामनाएं..
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