कल अवकाश का दिन था और इस अवसर का सदुपयोग मैंने एक अति उपयोगी पुस्तक 'मेड इन जापान’ पढ़कर किया,जो जापानी मल्टीनेशनल कंपनी के संस्थापक स्व. मिस्टर आकियो मोरिटा की आत्मकथा
पुस्तक है।
प्रबंधन क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली इस पुस्तक की चर्चा
मैंने पहले भी अपने प्रबंधन कोर्स के दौरान प्रोफेसर महोदय लोगों द्वारा संबंधित कक्षाओं में अवश्य सुनी थी, किंतु पुस्तक को पढ़ना एक अति संतोषदायी व एक नया अनुभव रहा।
यह पुस्तक लेखक द्वारा 1986 में पूरी हुई व पेंग्विन बुक्स लिमिटेड द्वारा प्रकाशित हुई।मिस्टर आकियो मोरिटो का जन्म सन् 1921 में जापान के एक सम्मानित व्यावसायिक परिवार में हुआ,जिनका
मुख्य व्यवसाय प्रसिद्ध जापानी शराब के निर्माण में था ।भौतिक शास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी कर ,द्वितीय विश्वयुद्ध की हाल ही में हुई समाप्ति के उपरांत, इस 25वर्षीय स्वतंत्रमना युवक ने अपने पारिवारिक व्यवसाय से बिल्कुल अलग हटकर , सन् 1946 में एक बमबारी से उजड़े मकान के गैरिज में अपने एक इलेक्ट्रॉनिक इंजिनियर साथी मिस्टर मसारु इबुका के साथ मिलकर एक इलेक्ट्रॉनिक रेडियो निर्माण व रिपेयर कंपनी 'टोक्यो टेलीकाम इंजिनियरिंग कारपोरेसन' नाम से स्थापित की,जो
कि अनंतर,सन् 1958 में सोनी कारपोरेसन के नाम में परिवर्तित हो गयी,
और बाद में इसी नाम से दुनिया की अति प्रसिद्ध कंपनी बन गयी।
इस आत्मकथा में मिस्टर मोरिटा ने न सिर्फ अपनी
निजी जिंदगी व अपने परिवार के बारे में, सोनी कारपोरेसन की स्थापना,इसकी सफलता व इसके पीछे अपनायी गयी विलक्षण उत्पादन दक्षता व मार्केटिंग रणनीति का विस्तारपूर्वक विवरण दिया है,
बल्कि उन्होने जापानी संस्कृति,जापानी चिंतन,विशेषकर जापानी प्रबंधन के दर्शन व प्रणाली व इनकी विशेषताओं व इसकी अमरीकी व्यावसायिक दर्शन व प्रणाली से तुलनात्मक भिन्नता की भी अति विस्तार से चर्चा की है,जो प्रबंधन विज्ञान के समझ हेतु अति महत्वपूर्ण है।
वैसे तो
सेमीकंडक्टर ट्रांजिस्टर की खोज अमरीका में सन् 1950 में ही
हो गयी थी, किंतु इसका वास्तविक व्यावसायिक उपयोग प्रथमया सोनी कारपोरेसन कंपनी ने वाकमैन जैसा एक अद्भुत व अपूर्व प्रोडक्ट बनाकर ही किया।
इस पुस्तक के मुख्यत: 9 सेक्सन हैं- i)War,ii)Peace,iii)Selling to world(My learning
curve),iv)On
management(its all in family),v)American and
Japanese Style(the difference),vi)Competition(the fuel of Japanese Enterprise),vii)Technology(Survival
Exercise),viii)Japan and world and ix)World Trade(Advertising Crisis)..
पुस्तक में लेखक के कुछ महत्वपूर्ण कथन,
जिन्होने मेरे चिंतन को गहराई से स्पर्श किया, मैंने यहाँ उद्धृत किया है , जो
मेरे विचार से आकियो मारिटो के प्रबंधन दर्शन व व्यावसायिक रणनीतिक चिंतन पर सटीक प्रकाश डालता है-
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निवेशक व कर्मचारी- कंपनी में निवेशक व इसके कर्मचारी समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं,किंतु कदासमय इसके कर्मचारी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं,क्योंकि निवेशक तो प्राय: निजी फायदे हेतु कंपनी से अंदर - बाहर होते रहते हैं किंतु कर्मचारियों का भविष्य एक लंबी अवधि हेतु कंपनी की स्थिति-परिस्थिति से जुड़ा होता है।
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प्रबंधन का मौलिक दायित्व- प्रबंधन का मौलिक दायित्व होता है- निर्णय लेना,जिसका तात्पर्य है प्रबंधनतंत्र का कंपनी के प्रोडक्ट के तकनीकी पक्ष का व्यावसायिक ज्ञान व
इसकी अमली तकनीकि के भविष्य की दिशा व रुझान के प्रति दूरदृष्टि व
इसे पहले से ही भॉप लेने की क्षमता होनी चाहिये । प्रबंधक को अपने व्यवसाय क्षेत्र से संबंधित व विस्त्रित सामान्य ज्ञान का होना अति आवश्यक है।ज्ञान व अनुभव के संगम द्वारा जनित विशेष समझ व्यवसाय के प्रभावी प्रबंधन में अति सहायक सिद्ध होता है।
·
रचनात्मकता
की भूमिका- उद्यम में रचनात्मकता मुख्य कारक होती है।तीनों प्रकार की रचनात्मकता-तकनीकी में रचनात्मकता,प्रोडक्ट के योजना में रचनात्मकता व मार्केटिंग में रचनात्मकता
उद्यम की सफलता हेतु अति महत्वपूर्ण हैं।इनमें से किसी एक की भी अनुपस्थिति में बाकी सब व्यवसाय के दृष्टिकोण से निरर्थक सिद्ध होते हैं।
जापानी व अमरीकी व्यावसायिक सोच में अंतर को मॉरिटो ने निम्न प्रधान तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया है-
· जहाँ अमरीकी प्रबंधन दृढ़ पदक्रम (hierarchy) के आधार पर कर्मचारियों का हितनिर्णय
निर्धारित करता है
और इसमें प्रबंधनकार्य में जुड़े लोग विशिष्ट अधिकारप्रदत्त होते हैं,जबकि जापानी सोच में प्रबंधक कोई विशेष व्यक्ति नहीं होते जिनका दायित्व अपने बेवकूफ मातहतों से कंपनी के हित में असंभव काम
भी संपन्न कराना है।
· अमरीकी प्रबंधन जहाँ महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय हेतु ज्यादातर बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भर रहते हैं, वहीं जापानी प्रबंधन कंपनी के सारे व्यावसायिक निर्णय स्वयं ही लेते हैं।
· जहाँ अमरीकी तकनीकि सफलताओं के पीछे प्राय: सरकारी फंड से पोषित सैन्य परियोजनाओं व इससे उपलब्ध नवाचारों का योगदान होता है, वहीं जापानी व्यावसायिक रचनात्मकता की विशिष्टता यह होती है कि यह सैन्य उद्योग के भारी निवेश के
आर एण्ड के उत्पाद होने के बजाय
यह उपभोक्ता की माँग व अभिरुचि व बाजार के गतिशील परिवर्तन के द्वारा संचालित होती है।
· अमरीका में जहाँ कर्मचारियों की नौकरी असुरक्षित होती है, कंपनियों के प्रबंधक अपने निजी लाभ वश कंपनी से अंदर-बाहर होते रहते हैं किंतु कर्मचारी ऐसा करने में असमर्थ होते हैं, वहीं जापान में
कंपनी के प्रबंधन अपने कर्मचारियों का व उनकी नौकरी व इसके प्रति निरंतर उत्साह कायम रखने का विशेष ध्यान रखते हैं।
· अमरीका में जहाँ एक व्यक्ति अथवा कुछ
विशिष्ट व्यक्तियों से नियंत्रित प्रबंधन कंपनी की निर्णय प्रक्रिया पर संपूर्ण नियंत्रण रखता है,वहीं ज्यादातर जापानी कंपनियाँ प्रस्ताव पद्धति के सिद्धांत पर कार्य करती हैं जिसमें कर्मचारियों की कंपनी के मुख्य व्यावसायिक निर्णयों में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस प्रकार यह पुस्तक जापानी व्यावसायिक तरीके की सफलता की कहानी को दृष्टिकोण में रख यह
तथ्य स्पष्ट करती है कि एक विचार(Idea)हमारे संपूर्ण जीवन को बदल सकता है।
यह पुस्तक निश्चय ही नवउद्यमियों
हेतु अति प्रेरणादायी व शिक्षाप्रद पुस्तक है।इस पुस्तक द्वारा टीम-भावना व सामूहिक कार्यसंपादन,नवाचार(Innovation),कंपनी के संकटकालीन स्थिति में उच्च प्रेरणा व मनोबल बनाये रखने व कर्मचारियों के साथ प्रबंधन के स्वस्थ संबंधों का कंपनी के व्यावसायिक सफलता के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण व गंभीरतापूर्ण होने के तथ्य की अच्छी सीख मिलती है।यह पुस्तक प्रबंधन विज्ञान की शिक्षा व समझ के दृष्टिकोण से निश्चय ही अति ज्ञानवर्धक व प्रभावी पुस्तक है।
Sir,
ReplyDeleteFirst time I am heard about this one,
As you have mentioned in review, it is inspiring me to read it and learn to horizons of management world :)
Yes Suraj, you must read it.I am sure you will like it.
DeleteGood analysis of American and Japanese management theory.
ReplyDeleteनिश्चय ही जापानी लगन ने दुनिया में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं।
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