अठखेलियाँ जो खेलती
चंचल लहर, के
चिर आलिंगन में बधा
पतवार हूँ मैं।1।
उदधि का जलता हृदय
धधकती ज्वाला अनल
गहन तल में मौन स्थित
अदृश्य ऊष्मा-आह हूँ मैं।2।
आदि-अंत रहित,चलित
नियति के रेतावली पर
गतिमय समय की चाल
छीजता पदचाप हूँ मैं।3।
चंचल नयन,प्राची उषा
वेणियों को नित सजाती
गुंथित वेणी-पुष्प का
सुमधुर सुवास हूँ मै।4।
गगनथाली में सजती,
दीप्त तारों की अली
रात्रि की आँचल सजाता
जुगनूप्रकाश हूँ मैं। 4।
गा रहे जो गीत
तुम तन्मय स्वरों में
शब्दपट में मौन साधे
हृदय-पीर-दाह हूँ मैं।5।
तुम कहानी रोज कहते
और सुनता यह जगत
पर जिसे तुम मौन रखते
वे अनकहे हमराज हूँ मैं।6।
मैं अकेला बाट जोहा
तुम चले ,संग कारवाँ
जिन पथों से गुजरते तुम
वहाँ बना पदचिह्न हूँ मैं।7।
पग तो आगे बढ़ गये
पर शब्द पीछे रह गये।
एक पल जो तुम पुकारो,
प्रत्युत्तर बनी आवाज हूँ मैं।8।
चंचल लहर, के
चिर आलिंगन में बधा
पतवार हूँ मैं।1।
उदधि का जलता हृदय
धधकती ज्वाला अनल
गहन तल में मौन स्थित
अदृश्य ऊष्मा-आह हूँ मैं।2।
आदि-अंत रहित,चलित
नियति के रेतावली पर
गतिमय समय की चाल
छीजता पदचाप हूँ मैं।3।
चंचल नयन,प्राची उषा
वेणियों को नित सजाती
गुंथित वेणी-पुष्प का
सुमधुर सुवास हूँ मै।4।
गगनथाली में सजती,
दीप्त तारों की अली
रात्रि की आँचल सजाता
जुगनूप्रकाश हूँ मैं। 4।
गा रहे जो गीत
तुम तन्मय स्वरों में
शब्दपट में मौन साधे
हृदय-पीर-दाह हूँ मैं।5।
तुम कहानी रोज कहते
और सुनता यह जगत
पर जिसे तुम मौन रखते
वे अनकहे हमराज हूँ मैं।6।
मैं अकेला बाट जोहा
तुम चले ,संग कारवाँ
जिन पथों से गुजरते तुम
वहाँ बना पदचिह्न हूँ मैं।7।
पग तो आगे बढ़ गये
पर शब्द पीछे रह गये।
एक पल जो तुम पुकारो,
प्रत्युत्तर बनी आवाज हूँ मैं।8।
परिचय की गूढ़ता को हर शब्द से स्पष्ट करती पंक्तियाँ।
ReplyDeleteतुम कहानी रोज कहते
ReplyDeleteऔर सुनता यह जगत
पर जिसे तुम मौन रखते
वे अनकहे हमराज हूँ मैं।6।
बहुत खूब देवेन्द्र जी ... दिल की बात जानके मौन रहना ही सच्चा हमराज है ...
मैं अकेला बाट जोहा
तुम चले ,संग कारवाँ
जिन पथों से गुजरते तुम
वहाँ बना पदचिह्न हूँ मैं।7।
मील का पत्थर बनना भी शान्ति देता है आलोकिक सकूं देता है ...
बहुत ही अनुपम भाव लिए है रचना ....