(मेरी यह छोटी सी
भेंट उन महापुरुषों को समर्पित है जो सत्य बोलने का साहस रखते हैं व न्याय की
स्थापना के लिये निरंतर संघर्षरत हैं।)
मौन शांति है,मौन सहमति,
यह तो प्राय: ही भ्रम होगा।
शांति-मौन या तटस्थ-मौन ?
पहले भेद समझना होगा।1।
निर्भयता ही सत्यनिरूपित,
भयमन क्या सच कह पाता है?
सच तो है शिव भी सुंदर , पर
सत्य भयावह भी होता है।2।
न्याय बिना, हर-जन-सुख के बिन,
शांति रही बेमानी ही है।
न्यायरहित यह शांति ढोंग है,
गलाघोटती बंधन ही है।3।
अशांत मौन की होगी ही
ऊँची यह प्राचीर तोड़नी।
बहुधा सच के चित्कारों में,
बसती है शांति की जननी।4।
बहुत रह लिये तटस्थ मौन तुम,
अब तो सच कहना ही होगा।
त्याग मखमली सुविधा पथ
यह,अंगारों पर
चलना होगा।5।
पर सावधान सच के संग ही,
हिंसात्याग निभाना होगा।
सत्य कहो पर उद्वेग-रहित हो,
अहं-त्याग भी करना होगा।6।
सत्य अन्ततः विजय द्वार पर खड़ा हुआ मिल जायेगा।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा/बताया है
ReplyDeleteबहुत रह लिये तटस्थ मौन तुम,
ReplyDeleteअब तो सच कहना ही होगा।
त्याग मखमली सुविधा पथ
यह,अंगारों पर चलना होगा।
जोश से भरी सुन्दर रचना....
सुन्दर, अति सुन्दर
ReplyDeleteप्रवीण,संदीप,संध्या जी व नवेंदु टिप्पड़ी के लिये आपका हार्दिक आभार।
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