मैंने फूलों को
भी पत्थर बनते देखा है,
पानी से भी लोहे
को छिजते देखा है,
रहता हूँ मैं भी तो पत्थर के ही घर में,
पर इसको भी
शीशे सा ढहते देखा है।1।
रामायण भागवत
पुराण, भरथरी कथा
बैताल पचीसी, पंचतंत्र और प्रेमचंद ,
सुनता आया इतनी
सारी कथा कहानी
अब खुद को ही
एक कहानी बनते देखा है।2।
लैला मजनू, शीरी फरहाद, जूलियट रोमियो
मुमताजों के
ताजमहल बनते आये हैं क्यों?
प्रेम कहानी
में दोनों एक दूजे में खोते थे,पर
(अब) तितली को भी
फूलों को ताने देते देखा है।3।
पूर्णिमा शशि,कामधेनु,स्वाती नक्षत्र श्यामल सुमेघ,
केतकी पुष्प,रक्ताभ पद्म,प्रात: ओशों से ढकी दूब,
कहते हैं इन
सबसे शीतल अमृत झरते रहते हैं,
पर अब तो
मैंने बादल से तेजाब बरसते देखा है।4।
ये शीतल मंद
हवायें,चंपा की सुरभि बयारें,
ये कलियों का
खिल जाना,फूलों का मुस्काना,
कल तक जो थे
मौनशांत जीते थे सायों के पीछे,
उनको अब रवि के
रथ का संचालन करते देखा है।5।
छुइमुई,जूही की कली,तितली के पंखों पर रंगकनी,
पंखुड़ियों के
नाजुक तन पर धीरे सेँ अंगुली फेरी,
जो ऊष्ण किरण-लपटों
से फूलों की तरह कुम्हलाते थे,
आज उन्हे भी दिप्तांगारों
पर नाट्यम करते देखा है।6।
माँ की थपकी,बापू की स्वीकृति,भाई से छीनाझपटी,
प्रिय का
आमंत्रण, वे नयन मिलन,दिवसरात्रि का सम्मेलन,
जो सब कुछ कह
जाते थे पलकों के एक इशारे से,
उनको भी अब
लफ्फाजों से शोर मचाते देखा है।7।
धर्मसूत्र और
स्मृतियाँ कहती हैं भेदविभेद नियम,
जीवन जीने के
सदाचरण,कितने ही सारे यज्ञहोम ,
जीवन भर जिन
दुर्गों की हरहाल मरम्मत करते थे,
ऊंची इन
प्राचीरों को निज हाथ ढहाते देखा है।8।
दीनदु:खी लाचार
निबल दुनिया के सारे दुख उनके,
उनकी खाली है
मुट्ठी फरियाद कहें भी तो किससे,
जन्मों की पीड़ा
को वे करते हृदय गर्भ में धारण,
शांतमुखी जो थे
शदियों से,अब आग उगलते देखा है।9।
दो गज कपड़े,तुलसी के दल,गंगा की अमृत जलबूदें
ये तो हैं बस
अंतगति,जीतेजी ये कब मिल पायीं।
जो मेरी राह
बचाकर गुजरे,वे ही मेरे महाप्रयाण पर,
रामनाम को सत्य
बताते,अर्थी को कंधा देते देखा है।10।
मन का हाहाकार इतना स्पष्ट शब्दों में बता पाना बहुत कठिन है।
ReplyDeleteaaj hai bela milan ki kal vida ki rat hogi rah saka hai kun bankar abtuk kiska sahara bhagya se sanghrsh karte aaj bhi insan hara bhor hoye kuan jane phir kabhi ye rat hogi
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