Tuesday, December 6, 2011

-पाने की खुशी और खोने का गम..


कल मेरा अतिप्रिय सोनी मेक डिजिटल कैमरा मेरी यात्रा के दौरान खो गया।मैं अपनी भतीजी के शादी समारोह में उपस्थित होने अपने गाँव आया हुआ था।मेरा डिजिटल कैमरा जो प्राय: मैं अपने मोबाइल की ही तरह ट्राउजर्स की साइड पॉकेट में रखता हूँ,लगता है गाड़ी में चढ़ने या उतरने में जेब से सरक कर कहीं गिर गया।

जैसा मैं बताया,मेरा प्रिय कैमरा होने के नाते इसका खोना मुझे बड़ा ही पीड़ादायक अनुभव हो रहा है,और मन में एक तरह का अपराधबोध भी हो रहा है कि मेरी कहीं न कहीं लापरवाही से ही यह कैमरा खोया होगा ।यही होता है, जब किसी चीज को पाकर आपको अपार खुशी हुई थी व  आप उसे अपना प्रिय बना लेते हैं,या वह आपके लिये अति मूल्यवान वस्तु हो तो उसके खोने की पीड़ा भी भारी होती है।

क्षमा करें मेरे इस लेख का उद्देश्य सबको यह बताना नहीं कि मेरा प्रिय व मूल्यवान कैमरा खो गया,क्योंकि यह आप सबके लिये किसी भी तरह से मायने नहीं रखता और इससे आपका कोई सरोकार भी नहीं। किंतु मेरे दु:खी मन में एक जो प्रश्न आया मैं उसे यहाँ साझा करना चाहता था- क्या किसी चीज को अपना प्रिय या पसंदीदा बनाना अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को अपने साथ रखना या धारण करना ही हमारी प्रथम भूल नहीं है?

क्योंकि जो प्रिय है अथवा मूल्यवान है और जिसको पाकर हमें अपार खुशी हुई थी और मन धन्य हो गया था ,यदि किसी कारण वश एकदिन बिछड़ जाता अथवा खो जाता है,तो अवश्य ही मन को भारी कष्ट पहुँचायेगा, तो आखिरकार हम जीवन में क्यों किसी को अपना अति प्रिय बनायें अथवा अति मूल्यवान वस्तु धारण करें और उसको पाने का अपने जीवन में उत्सव मनायें,  जब हमें पता है कि कल किसी भी कारण से यह हमसे बिछड़ेगी अथवा खो जायेगी तो हमारे मन को भारी दु:ख व पीड़ा पहुँचेगी?

मुझे इस प्रश्न के साथ-साथ इसके समाधान का एक हल्का सा संकेत भी इस विचार-चिंतन से मिलता है कि आखिर हमारे देश में योगी, तपस्वियों या सन्यासियों द्वारा अपने सभी प्रिय सम्बन्धों व मूल्यवान वस्तुओं का सर्वप्रथम व अनिवार्यत: त्याग करने का विधान इसीलिये बना है कि भविष्य में किसी भी प्रिय सम्बन्ध के टूटने या बिछड़ने या किसी मूल्यवान वस्तु के खोने की संभावना से मन में न तो किसी भी प्रकार का भय हो. न ही किसी भी प्रकार का इससें जनित क्षोभ या दु:ख ही।

अपने जीवनयापन व दैनिक आवश्यकताओं को सुचारू रूपेण पूरा करने हेतु हमें निश्चय ही अनेकों वाह्य संबन्धों व वस्तुओं पर अवलंबित होना ही पड़ता है, व उनकी अपने जीवन में दैनिक आवश्यकता व महत्व को हम कतई नकार भी नहीं सकते, किंतु इनका आना-जाना , मिलना-बिछड़ना,पाना-खोना भी जीवन की उतनी ही सामान्य प्रक्रिया व घटना है व इनको लेकर किसी भी तरह का हर्ष-विषाद नहीं करना होता ।समस्या तो तब आती है जब इन में से कुछ संबंध अथवा वस्तुयें हमारे लिये इतने प्रिय व मूल्यवान बन जाते हैं कि उनके बिछड़ने व खोने की तो बात दूर, मात्र इसकी शंका या कल्पना से ही मन विचलित व दु:खी हो जाता है।

तो ऐसा अनुभव व निष्कर्ष निकलता है कि किसी चीज के बिछड़ने या  खोने के संभावित दु:ख,दर्द या पीड़ा से बचने का सबसे प्रभावी तरीका तो यही हो सकता है कि हम अपने जीवन में आवश्यक संबंधों व वस्तुओं को बस आवश्यकता मात्र के दायरे में रखें बजाय कि उनके प्रति बेइंतहाँ चाहत,प्रेम या आकर्षण रखें कि इन मूल्यवान चीजों के खोने का मन में हमेशा भय बना रहे या इनके खोने से हमें दु:ख या पीड़ा हो।

वैसे एक मत यह भी हो सकता है कि अपनी प्रिय चीज के खोने के दर्द का भी अपना मजा है।आखिर इस जहान में इतने दिल न टूटे न होते,हम-अजीज बिछड़े न होते,लोगों की बेशकीमती चीजें जो उन्हें बेइंतहाईं रूप से पसंद थीं खोयी न होतीं, तो इस दुनिया में इतने खूबसूरत भावाभिव्यक्ति- साहित्य,काव्य,गीत,गजल व शायरी भी कहाँ से आये होते।मेरा भी पसंदीदा व कीमती कैमरा न खोया होता तो आखिरकार मैं यह लेख क्यों लिखता?
कह सकते हैं कि अपने अजीज चीज,जिससे पाने में अपार खुशी हुई थी, उससे बिछड़ने या उसके खोने के दर्द का भी अपना मजा है।तो मैं भी अपने इसी दर्द को अनुभव व इसका आनंद उठाने का प्रयाश कर रहा हूँ।

5 comments:

  1. जीवन के एक समय के बाद समेटने का प्रयास करना चाहिये, धीरे धीरे सब वैसे भी छोड़ना होगा। दर्शन तो अपनी जगह ठीक है पर आपके कैमरे खोने का दुख हमें भी बहुत है।

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  2. प्रवीण जी ने सही कहा। देवेन्‍द्र जी एक और पहलू है। आपने खोया है तो दर्द पाया है। जिसे मिला होगा वह उसे तो खुशी भी मिल गई होगी। दुनिया की यही रीत है।

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  3. भौतिक वस्‍तुओं के खोने पर क्‍या शोक मनाना। जीवित रिश्‍ते टूट जाते हैं तो दर्द होता है।

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  4. aajkal jivit rishto ke tutne per bhi logo ko yehshas nahi hota Ajitji

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  5. देह है,दुनिया है तो इसमें दर्द भी रहेगा ही...दर्द न हो तो देह दुनिया,कुछ न रहेगा...

    हाँ,यह है कि अपने मन पर इतना नियंत्रण अवश्य रखना चाहिए कि न ही वह दर्द के गर्द में डूब कर स्वयं को खो दे और न ही हर्ष के धुएं में उड़कर आसमान में पहुँच धरती से कट जाए...

    सुन्दर चिंतन, भले वो कैमरे के ही बहाने किया गया हो,किया आपने.....

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