चलती ये सर्द हवा कितनी खामोशी से।
कितने गुमसुदा और तन्हा हैं ये दरख्त खड़े,
हैं पूछते सवाल यूँ अपनी ही गुम परछाईं से ।।
कितने गुमसुदा और तन्हा हैं ये दरख्त खड़े,
हैं पूछते सवाल यूँ अपनी ही गुम परछाईं से ।।
रात का गहराता धुआँ फिर भी चाँद सोया है,
उसको देखे बिना ये पपीहा खूब रोया है।
तलाश रातभर जुगनुओं की फौज करे ,
वादियों के पीछे ही कहीं आफताब खोया है ।।
सहर होने में अभी वक्त बहुत बाकी है ।
छलके शबनमी पैमाना और रात बनी साकी है।
चाँद आये या न आये इस महफिल में,
सितारों का नूर तो है बस थोड़ा हिजाव वाकी है ।।
छलके शबनमी पैमाना और रात बनी साकी है।
चाँद आये या न आये इस महफिल में,
सितारों का नूर तो है बस थोड़ा हिजाव वाकी है ।।
चाँद कब आयेगा देखकर पलकें थकी
स्याह जो रंग हुआ कि शाम की आँख झुकी ।
रात को ताने दिये थे जाते हुये उजाले ने,
पर उसके जाने से भला कब है कायनात रुकी ।।
दिखा जो चाँद तो रात का दिल हुलसा है,
चंद पल का नहीं ताउम्र का जो मसला है।
किसी के गिरने की जो आयी है धीमी आहट,
ओस की बूदों पर चाँदनी का पैर फिसला है ।।
स्याह जो रंग हुआ कि शाम की आँख झुकी ।
रात को ताने दिये थे जाते हुये उजाले ने,
पर उसके जाने से भला कब है कायनात रुकी ।।
दिखा जो चाँद तो रात का दिल हुलसा है,
चंद पल का नहीं ताउम्र का जो मसला है।
किसी के गिरने की जो आयी है धीमी आहट,
ओस की बूदों पर चाँदनी का पैर फिसला है ।।
रात का रंग खिले जो मिलीं उजली किरन,
लाजबाब नूर चमकती चाँदी सा ये तन औ वदन।
चांद की किस्मत में हैं ये नूरी चाँदनी रातें
तो खाक क्यों दिल को करें , यूँ सितारे गगन।।
लाजबाब नूर चमकती चाँदी सा ये तन औ वदन।
चांद की किस्मत में हैं ये नूरी चाँदनी रातें
तो खाक क्यों दिल को करें , यूँ सितारे गगन।।
कुछ रातों को आते आते समय बहुत लग जाता है,
ReplyDeleteआँख मिलाता चाँद कभी था, अब दिखते छिप जाता है।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteचाँद कब आयेगा देखकर पलकें थकी
ReplyDeleteस्याह जो रंग हुआ कि शाम की आँख झुकी
रात को ताने दिये थे जाते हुये उजाले ने,
पर उसके जाने से भला कब है कायनात रुकी,,
बहुत ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ,,,,,,बधाई स्वीकारें ,,,,देवेन्द्र जी,
MY RECENT POST: माँ,,,
बेहतरीन भाव सटीक लेखन
ReplyDeleteआज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ..........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
दिखा जो चाँद तो रात का दिल हुलसा है,
ReplyDeleteचंद पल का नहीं ताउम्र का जो मसला है।
किसी के गिरने की जो आयी है धीमी आहट,
ओस की बूदों पर चाँदनी का पैर फिसला है ।।
बहुत खूब लिखते हो ,अपनी उदासी शाम के सर मढ़ते हो .
तलाश रातभर जुगनुओं की फौज करे ,
ReplyDeleteवादियों के पीछे ही कहीं आफताब खोया है ।।
ये आँख मिचौली तो कब से चल रही है और पता नहीं कब तक चलती रहेगी. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.
खूबसूरती से लिखे एहसास ।
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...
लाजवाब.
सादर
अनु
खूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना |
ReplyDeleteVery Nice write.
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