कुछ उलझी कुछ सुलझी सी,
कुछ रुकती कुछ चलती सी,
कुछ बुझती कुछ जलती सी,
गरम तवे पर सिकती जिंदगी।1।
माँ की गोदी में रहते थे बैठे सिकुड़े,
गलियों में थे धूम मचाते भागते दौड़े,
जीवन की गाड़ी और जुते अब घोड़े,
कितने गियर बदलती जिंदगी।2।
मिट्टी मुँह में डालें लगती लड्डू जैसी,
छक कर खायी चाट,पकौड़े लस्सी,
अब तो जीभ पेट में मचती रस्साकस्सी,
क्या क्या स्वाद बदलती जिंदगी।3।
चिकने टुकड़े पत्थर के चुनते थे रखते,
फिर थैली में रंगबिरंगे कंचे थे सजते,
तीनपाँच के चक्कर में हैं अब दिन खपते,
कुछ पाती कुछ खोती बेचारी सी जिंदगी।4।
नींदों में परियाँ ही परियाँ दिखती ,
सपने में गुल्ली डंडा से थी दर नपती ,
उलझन ही उलझन अब आँखे कब झपती,
करवट बदले थकी जागती सोती जिंदगी।5।
सपने में गुल्ली डंडा से थी दर नपती ,
उलझन ही उलझन अब आँखे कब झपती,
करवट बदले थकी जागती सोती जिंदगी।5।
माँ की कहानियों में राजा से थे मिलते ,
यारों के संग चेहरे के क्या रंग थे खिलते ,
गुजरा कितना वक्त हँसे खुल दिल के रस्ते,
तासों के पत्तों सी फेंटती बँटती जिंदगी।6।
यारों के संग चेहरे के क्या रंग थे खिलते ,
गुजरा कितना वक्त हँसे खुल दिल के रस्ते,
तासों के पत्तों सी फेंटती बँटती जिंदगी।6।
एक दिन में सारे विश्व घूम आती थी जिन्दगी, अब कुछ ठहरी ठहरी सी लगती जिन्दगी।
ReplyDeleteSo true... lovely write,
ReplyDeleteगुजरा कितना वक्त हँसे खुल दिल के रस्ते,
ReplyDeleteतासों के पत्तों सी फेंटती बँटती जिंदगी।
...वाह! जीवन का कटु सत्य दिखाती बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
बचपन मे लौट जाने को मन करने लगा। काश ऐसा हो पता। बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteमाँ की कहानियों में राजा से थे मिलते ,
ReplyDeleteयारों के संग चेहरे के क्या रंग थे खिलते ,
गुजरा कितना वक्त हँसे खुल दिल के रस्ते,
तासों के पत्तों सी फेंटती बँटती जिंदगी।6।
जिंदगी के रंग भी अनूठे है. सुंदर अभिव्यक्ति.