कितना गम
और
कितनी खुशी
परिवर्तन
जीवन का अपरिहार्य नियम है।हमारा जो भी आज है वह कल कल में बदल जाता है व आने वाला
कल एक नया आज लाता रहता है।आज जो हमारा अति प्रिय है,जिसको पाकर हम अति धन्य हैं,जिसके विछोह की कल्पना मात्र से हम अधीर हो सकते हैं,वहीं प्रियतम चीज कल हमसे निश्चय रूप से विलग हो जायेगी।जिन सुख-सुविधाओं के
प्रति हमारा आग्रह है,जिनके बिना हम अपने सहज जीवन की कल्पना
भी नहीं कर सकते,वहीं सुख-सुविधायें किसी न किसी कारण से हमसे
दूर होंगी व हमें नये परिस्थितियों में इन सुख
सुविधाओं से रहित जीवन जीना
पड़ता है।
सबसे चुनौतीपूर्ण
परिवर्तन का सामना तो हमें अपने जीवन में अपने शरीर व स्वास्थ्य को लेकर करना पड़ता
है।नयी अवस्था,नया जोश,भरपूर ऊर्जा,लालित्य से भरा चेहरा व अंगप्रत्यंग ऐसा
प्रतीत होता है मानों हमें पंख लगे हों,यूँ जैसे हम आसमान में
उड़ रहे हो।फिर एक दिन अचानक जब एक व्यक्ति को जब यह पता चलता है कि जिस रूप-रंग-अंग लालित्य पर उसे बड़ा नाज है वह तेजी से क्षिण होने लगे हैं,चेहरा रूपहीन हो रहा है,दाँत टूट रहे है,बाल झड़ रहे हैं,चेहरे पर झुर्रियाँ आ रहीं हैं,घुटने जबाब दे रहे हैं,रक्तचाप बढ़ा हुआ है,और हृदय निरंतर कमजोर हो रहा है और किसी भी दिन इसकी गति अचानक रुक सकती हैं,गुर्दा लीवर जैसे प्रधान अंग लाचार और कमजोर हो रहे हैं और इस कारण शरीर की
ऊर्जा व जोश निरंतर क्षिण हो रहा है।
निजी स्वास्थ्य
की चुनौतियों के साथ-साथ इसी अवस्था में व्यक्ति के सामने पारिवारिक जिम्मेदारियों
व सम्बंधों के स्तर पर भी अनेक चुनौतियाँ व जटिलतायें मुँह बा कर सामने खड़ी हो जाती
हैं। अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य की समस्यायें,दाम्पत्यजीवन में अति घर्षण,बच्चों
की शिक्षा-दिक्षा व उनका कैरियर,बुजुर्ग माता-पिता का दिनपरदिन
बिगड़ता जा रहा स्वास्थ्य,नजदीकी नातों-रिश्तों की खटपट व उनसे
संबंधित जिम्मेदारियों के निर्वहन का दायित्व,कुल मिलाकर कहें
तो व्यक्ति अंदर और बाहर से,मन और शरीर से पूरा झकझोर दिया जाता
है,यूँ प्रतीत होता है मानों अति ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर लगातार दौड़ते
जा रहे घोड़े को उसका सवार लगातार कोड़े मार रहा हो कि और तेज दौड़ो,तुम रुक नहीं सकते,तुम थम नहीं सकते,तुम साँस भी नहीं ले सकते।इस तरह व्यक्ति
बेहाल दौड़ता जाता है,जहाँ उसका मन और शरीर दोनों निरंतर
घायल व लहूलुहान हो रहा है।कितने रंजोगम,कितनी अकुलाहट,कितनी बेचैनी,मानों दुष्चिंताओं व परेशानियों के गहरे
स्याह बादल ही उसके जीवन में उतर आये हों और उसके जीवन का उजाला घटाघोप अँधेरे से ढक
सा गया हो।
इन दुविधाओं
व दुश्चिंताओं में फँसे विचारश्रृंखलाओं की उलझन में फँसे व्यक्ति के मन के गहरे अंतर्चेतन
से भी कभी एक चिंतन की चमकती लकीर मन के सतह पर तैर जाती है।यह व्यक्ति से कुछ गहरे
प्रश्न करती है- किस बात से तुम हो दुखी,क्या तुम्हे पता नहीं कि तुम्हारा पूरा जीवनघटनाक्रम एक
निरंतर चलचित्र है।जिसको तुम अपना निजी समझते हुये उसपर अधिकार जताते फिरते हो,उसके हमेशा पास रहने का मोह जताते हो, वह वास्तव में
कभी तुम्हारा था ही नहीं। जिनको तुम परेशानी,कष्ट,दुख समझते हो और उनसे हमेशा आँख-बचाते, भागते फिरते हो ,उन्ही की माला अंतत: जिंदगी तुम्हारे गले में एक दिन डालेगी और तुम बिना कुछ
कर पाने की स्थिति में इन्हीं अवांछित चीजों व परिस्थितियों के साथ जीने को मजबूर होगे।फिर
किस चीज पर अधिकार जताना व किस चीज से आँख बचाना।समझो तो सबकुछ तुम्हारा ही है,और ज्यादा समझना चाहते हो तो तुम्हारा तो कुछ भी नहीं है।फिर किसके पास होने का हर्ष और किसके खोने का गम।
वैसे भी इन सारे तथाकथित दुखों-मुसीबतों के बीच भी यदि व्यक्ति शांत,संयत और स्मितमय बना रहे तो प्राय: संभव कि कल फिर
जीवन में आने वाले नये उजालों व खुशियों को वह फिर से पहचान पाये व आनंदित हो सके
वरना तो हमेशा दुखी स्वभाव रखने से व्यक्ति को जीवन में अँधेरे का इतना अभ्यास हो
जायेगा कि तुम कल के उजाले को भी नहीं सहन कर सकेगा।
इसलिये यह जीवन-चलचित्र हमारे सामने सुख लाता है अथवा दुख,प्रिय लाता है अथवा अप्रिय,हमें
सदैव शांत व प्रसन्न रहना है, अक्ष्क्षुण शांति व चिर आनंद
ही हमें हमारा स्वभाव बनाना होगा।
जीवन दे चाहे दुनियाभर के रंजोगम हमें फिर भी हम मुस्कराते रहें।
धनात्मकता और ऋणात्मकता मिलकर ही चलाती है दुनिया ..
ReplyDeleteइतनी सार्थक टिप्पड़ी हेतु आभार संगीता जी।
Deleteपरिवर्तन जीवन का अपरिहार्य नियम है।और इस चुनौतीपूर्ण परिवर्तन का सामना करना ही पडेगा,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
सत्य बात है धीरेंद्रजी। टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteईश्वर भी सहने की परीक्षा उसी से लेता है, जो सह सकता है।
ReplyDeleteउसकी मर्जी तो वह ही जानता है।टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deletesona tap kar hi kundan banata hai.
ReplyDeleteजी, यही तो हमारे जीवन की कसौटी है।
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