मेरी बेटी ग्यारहवीं कक्षा में है।जब ग्यारहवीं की बात होती है तो तुरंत बच्चों व उनके अभिभावकों के सामने एक पूरक प्रश्न आता है कि उसे बनना क्या
है यानि इंजिनियर,या डाक्टर या आर्ट्स विधा ।
हालाँकि आज की पीढ़ी तुलनात्मक रूप से अधिक स्वतंत्रमना व अपने भविष्य के प्रति ज्यादा स्पष्ट सोच रखती है,(ऐसा मेरा मानना है व आप मेरी इस बात से असहमत भी हो सकते हैं),किंतु जितना मेरा अनुभव है उससे मेरा यह मत
है कि इस स्टेज में बच्चों के मन में अपने बारे में ,अपनी क्षमता के बारे में,अपने भविष्य व कैरियर के बारे में सोच व समझ बननी ही शुरू होती है,और आंतरिक तौर पर उन्हें यह बहुत स्पष्ट नहीं रहता कि उन्हें क्या कैरियर चुनना है(हालाँकि यह एकदम
सत्य नहीं है व इसके अनेकों अपवाद भी होते हैं।)। ऐसे में प्राय: या तो बच्चे
के दसवीं के मार्क्स अथवा माँ-बाप की निजी सोच ही कमोवेश यह निर्णय लेती है कि वे ग्यारहवीं में क्या विषय चुनते हैं और आगे का क्या कैरियर स्ट्रीम अपनाते हैं। क्योंकि यदि ऐसा न होता तो प्रतिवर्ष काफी संख्या में IITयन इंजिनियरिंग की पढ़ाई के पश्चात् IIM अथवा HBS जैसे बिजनस स्कूलों से MBA कर अंतत: अर्थशास्त्र अथवा वित्तप्रबंधन के कैरियर को स्वेच्छा से क्यों अपनाते।(हालाँकि इस तथ्य पर यह तर्क स्वाभाविक है कि यह निर्णय अभिरुचि के कारणों से कम मगर आर्थिक महत्वाकांक्षाओं से ज्यादा लिया जाता है।)
हम अपनी अंतर्निहित क्षमताओं व रुझानों से रूबरू क्रमश: होते है,जीवन में मिलने वाली सफलतायें,विफलतायें हमें अपनी नैसर्गिक क्षमता से साक्षात्कार करने में सहायता करती हैं,और इस क्रमश: प्रक्रिया में ही हमें अपनी अभिरुचि,पसंद का उद्यम,व्यवसाय क्षेत्र व
उनके चयन का सही आभाष मिलता है।यह अलग बात है कि परिस्थितिवश व आर्थिक महात्वाकांक्षाओं के कारण कई बार हम मन मारकर अपने वर्तमान
व्यवसाय से ही चिपके रहते हैं और इसप्रकार हम अपनी सही अभिरुचि व क्षमता के कैरियर को अपनाने से
जीवन में वंचित रह जाते हैं।
मेरी बेटी जब छोटी अवस्था की थी तभी से उसकी दादी व घर के अन्य वरिष्ठ सदस्य उसे बड़ी होकर डाँक्टर बनने का आशीर्वचन देने लगे।शायद यही कारण रहा होगा कि हाईस्कूल के बाद उसने गणित छोड़ने व जीवविज्ञान विषय चुनने की इच्छा व्यक्त की।हालाँकि मेरा इस विषय पर बच्चों से कोई आग्रह नहीं किंतु मेरी चिंता का कारण था उसका गणित विषय से निरंतर अभिरुचि कम होना और हाईस्कूल की परीक्षा में भी गणित में संतोषजनक नंबर न लाना।
इसतरह मुझे उसके ग्यारहवीं के विषय - चुनाव में जीवविज्ञान के प्रति आकर्षण का कारण इस
विषय के प्रति किसी विशेष अभिरुचि होने के कारण कम बल्कि गणित विषय के प्रति पराजितभाव ज्यादा दिख रहा था। स्वयं गणित का छात्र रहे होने व यह अपना प्रिय विषय होने के कारण मुझे स्वयं को यह असंतोष दे रहा था कि मेरी बेटी एक पराजित योद्धा की तरह गणित विषय छोड़ दे।
मेरी उसको यह राय थी कि तुम्हे कल क्या कैरियर चुनना है यह निश्चय ही तुम्हारा अपना निर्णय है किंतु गणित को किसी विवशता वश,
पराजित भाव से छोड़ दो यह मुझे प्रसन्नता व
संतोष नहीं देता। मेरी राय में तुम गणित पढ़ना जारी रखो और बारहवीं बोर्ड में अच्छे मार्क्स लाओ।तुम विजयी भाव से स्वेच्छा से कल गणित
विषय के इतर संबंधित कोई कैरियर जैसे मेडिकल
इत्यादि चुनो , मेरी तुम्हें सदैव सहर्ष स्वीकृति व समर्थन होगा।
दूसरी मेरी उसको यह राय थी
कि बारहवीं तक गणित पढ़ना मेरे
दृष्टिकोण में एक विज्ञान के छात्र हेतु एक आवश्यक आवश्यकता है क्योंकि यह
( गणित) जहाँ एक ओर भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान के सिद्धांतो व प्रश्नों को समझने व हल करने में सहायक होती है,वहीं दूसरी ओर उच्च प्रबंधन,वित्त,अर्थशास्त्र के गूढ़ सिद्धांतों को भी सरलता से समझने में मददगार
सिद्ध होती है।यह मैंने अपनी IIM से प्रबंधन की पढ़ाई में स्वयं ही अनुभव किया है।
उसने मेरे सुझाव को माना,और
गणित व जीवविज्ञान दोनों विषय का
चयन किया है।हालाँकि मेरे कुछ शुभेच्छुओं,परिवारजनों ने इन दोनों विषय,
गणित व जीवविज्ञान, को साथ लेने पर बच्चे पर पढ़ाई का बोझ ज्यादा लादने के रिस्क के प्रति चेताया,किंतु मुझे व मेरी बेटी को यही निर्णय उचित लगा।
मुझे खुशी यह है कि मेरी बेटी का गणित में फिर से रुझान जागृत हो गया है व पुनः इस विषय में अच्छा करने लगी है।कल का निर्णय अभी कल पर छोड़ दिया है,और आज तो मैं
और मेरी बेटी, हम दोनों ही अपने निर्णय पर संतुष्ट हैं।
उसका
भविष्य उज्जवल व सफल हो, यही ईश्वर से कामना है।
निर्णय सही है पर खतरनाक भी है। आप गोपनीय ढंग से पता लगायें कि क्या बेटी ने आपका मन रखने के लिए गणित का चयन किया, मजबूरी में पढ़ रही है या फिर उसने अपना मन वास्तव में बदल दिया है।
ReplyDeleteहमारी शुभकामना है कि उसकी रूची जगे और उसे सफलता मिले।