Friday, November 16, 2012

महफिल के उठने का भला इंतजार कौन करता है....




किया तमाम सफर तय हमने बिना साहिल के
दरिया  और मौजों की परवाह कौन करता है ।
हम तो मनमौजी हैं कभी भी उठ चल देंगे,
महफिल के उठने का भला इंतजार कौन करता है।1

मुश्किल हालात से लड़ने की रही आदत जो,
हालात मनमाफिक हों परवाह कौन करता है।
जलते है दीपक तमाम दिन के उजाले में
सूरज के ढलने का इंतजार कौन करता हैं।2

उठाया हाथ, मैंने कई बार उसे जुम्बिस दी ,
आसमाँ की ऊंचाइयों की परवाह कौन करता है।
तोड़ कर लाता हूँ कुछ सितारे फलक से चुनकर
उनके टूटने और गिरने का इंतजार कौन करता है।3
[ जुम्बिस- to shake, to move]

किसका दिल टूटेगा किसका घर बिखरेगा,
फिरकापरस्ती में यह परवाह कौन करता है।
वे तो लायें हैं पहले ही जमीं पर यूँ जलजले तमाम।
कयामत के आने का इंतजार कौन करता है।4

खंजर है हाथ उनके है और हैं खून पर आमादा
कौन कातिल है कौन कत्ल परवाह कौन करता है।
अपनी लड़ाई तो हमें खुलेआम अब लड़नी होगी,
ऐलान-ऐ- जंग का भला इंतजार कौन करता है।5

सजी बैठक रहती हर रोज की महफिल उनकी
पड़ोस की फाँकामस्ती की परवाह कौन करता है।
वे तो हैं बेपरवाह और उनकी है बद  चालचलन
अपनी रुसवाई का भला इंतजार कौन करता है।6
[ रुसवाई - बदनामी़

उनको तो इल्म नहीं और है अहसास कहाँ,
आलिम की सीख की परवाह कौन करता हैं।
करते हैं दिन के उजाले में भी वो बेजा हरकत,
रात के अँधेरे का इंतजार कौन करता है।7
[आलिम- teacher,learned]

जिया ताउम्र है जो दरमियाँ फख्त बंदिशों में रहा
दीवारे जेल और पहरे की परवाह कौन करता हैं।
सहा है जुल्म जिसने बिन उम्मीद-ए-इंसाफ लिये
इजाबत की भला कैसी क्यों इंतजार कौन करता है।8। 
[इजाबत-Justice]

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