Tuesday, November 6, 2012

हों अस्तमान तो भी मर्यादित।

कितनी मर्यादा लिये अस्त होता है सूरज प्रतिदिन !


कुछ माह पूर्व अमिताभ बच्चन जब अपनी गंभीर अस्वस्थता हॉर्निया की शल्यचिकित्सा के उपरांत स्वास्थ्य लाभ कर दुबारा धीरे-धीरे अपने सार्वजनिक व व्यावसायिक जीवन में वापसी कर रहे थे तो उन्होंने अपने एक ट्वीट में एक बड़ी महत्वपूर्ण बात लिखी थी कि -प्रभु से यही प्रार्थना है कि जीवन में हम अस्तमान भी मर्यादित रूप से हों।

सत्य है जिसने इस जीवन की यात्रा को मर्यादा गरिमा के साथ निभाया है, सफलता प्रसिद्धि के अति उच्चशिखर पर अपना स्थान स्थापित किया है,और जब उसे यह सत्य भी ज्ञात है कि हर उदित सूर्य की अंतिमगति तो अस्त होना ही है,वह तो सदैव यही कामना करेगा कि उसका अस्तकाल भी मर्यादापूर्ण हो।

प्राय: ऐसा देखा जाता है कि लोग अपनी प्रतिभा,योग्यता परीश्रम से जीवन में अप्रतिम सफलता प्राप्त कर प्रसिद्धि के उच्चशिखर पर स्थापित तो हो जाते हैं,किंतु मनुष्य के स्वाभाविक अहंस्वभाव व वर्तमान शोहरत की चकाचौंध के फलस्वरुप यह अकस्मात् भूल जाते हैं कि उत्कृष्ट शिखर के आरोहण के उपरांत जो अंतिम शेष यात्रा है, वहवरोहण है, उन्नति की पराकाष्ठा के उपरांत जो शेष है, वह अवनति ही है।इसके फलस्वरूप प्रायः उनके जीवन का आरोहण व ढलान का वक्त बड़ा ही गरिमारहित व दुखदायी सिद्ध हो जाता है।इस आरोहण व अवनति के ढलान  की अस्वीकृति की दशा में मनुष्य सदमे, दुख क्षोभ का शिकार हो जाता है।

ऐसे कितने ही उदाहरण हैं कि अपने जीवन में अद्भुत रूप से तर्कसंगत,उद्यमशील, सफल महान व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम सोपान में अपने अटपटे,आग्रह मूढ़तापूर्ण व्यवहार व अतर्कसंगत निर्णयों के कारण बुरी तरह से विफल दुखी रहे।महान मोटरकार निर्माता हेनरी फोर्ड,जो अमरीकी उद्यमशालियों में सर्वश्रेष्ठ व विश्व में आधुनिक मोटर कार के जनक के रुप में जाने जाते हैं, उनके जीवन-इतिहास का अध्ययन करें तो यह ज्ञात होता है कि उनके जीवन का अंतिम सोपान उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप मर्यादित व सफल नहीं रहा।वस्तुतः वे अपने जीवन के ढलान के वर्षों में उनके आग्रही व तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व व रवैये, जिद्दी,अतार्किक व अव्यावसायिक निर्णयों के कारण फोर्ड मोटर कंपनी को बुरी तरह से व्यवसायिक असफलता झेलनी पड़ी, यहाँ तक कि 1940 के दशक में  कंपनी को भारी घाटा व फलस्वरूप कंपनी में ताले लगने की नौबत आ गयी थी, और अमरीकी सरकार को कंपनी के कर्मचारियों के भविष्य को ध्यान में रखते कंपनी के सरकारी अधिग्रहण करने हेतु  गंभीरता पूर्वक विचार तक करना पडा था। फिर फोर्ड कंपनी के प्रबंधकों व मि. हेनरी फोर्ड के परिवार सदस्यों, उनके अपने ही पौत्र द्वारा के उनके विरूद्ध बगावत कर देने व प्रबंधतंत्र का अधिकार उनके हाथ से छीन  स्वयं के नियंत्रण लेने के उपरांत ही स्थिति नियंत्रण में आयी व कंपनी का अस्तित्व बचा रह सका। इस तरह हेनरी फोर्ड का अंतिम समय अति असफल, निराशाजनक व त्रासदीपूर्ण रहा, और इसी के सदमें में उनकी सन् 1947 में मृत्यु भी हो गयी।

इसीप्रकार अनेकों उदाहरण हैं कि अपनी अलौकिक योग्यता, प्रतिभा व अथक श्रम से जीवन में सफलम व महान व्यक्ति अपने अस्तकाल में बुरी तरह विफल रहे व उनका अंतिम समय बड़ा ही त्रासदीपूर्ण बीता।ऐसे लोगों की सूची में  कितने ही महान खिलाड़ियों, फिल्मकलाकारों, गायकों, संगीतकारों, राजनितिज्ञों व अन्य लोकप्रिय विधाओं की महान हस्तियों के नाम शामिल हैं, जिनकी अपने जीवन में प्राप्त अप्रतिम सफलता व लोकप्रियता के उपरांत भी उनके जीवन का अंतिम समय अति दुःखदायी,त्रासदीपूर्ण व कष्टमय बीता व उन्हें बड़े ही अमर्यादित तरह से इस संसार से अंतिम प्रयाण करना पडा।

वैसे तो उदय और अस्त, उत्थान पतन शिखर और खाँईं तो इस प्रकृति का मौलिक  सिद्धांत है सूर्य,चंद्रमा,ग्रह,तारे,नक्षत्र,चर,अचर,सजीव,निर्जीव सभी प्रकृति के इस मौलिक सिद्धांत के पालन हेतु बाध्य है किंतु उदय के उत्सर्ग व तेजस्विता के साथ, अस्त होने की गरिमा व मर्यादा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

जीवन के पुष्परचित सुगम पथ पर सहज गतिशीलता के साथ ही साथ इसके अग्निपथ पर भी मर्यादा सहित यात्रा करना ही इसे वास्तविक विजय पथ बनाता है

6 comments:

  1. सुख में मर्यादा और दुख में गरिमा बनी रहे, बहुत ही अच्छा विषय चुना है आपने।

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  2. उदय के उत्सर्ग व तेजस्विता के साथ, अस्त होने की गरिमा व मर्यादा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।तभी जीवन का वास्तविक विजय पथ बनता है,,,,,,,,,

    बहुत बढ़िया उम्दा प्रेरक प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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  3. बहुत सुन्दर लेखन सर.....
    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.

    सादर
    अनु

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  4. बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक और प्रेरक आलेख...

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  5. बहुत ही अच्छा विषय और बहुत ही सुंदर दर्शन। अच्छी लगी यह पोस्ट।

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  6. "Udeti Savita tamrah, tamrewastameti cha,
    Smpattou cha vipattou cha, mahatam ek rupata".

    Equanimity in both high and low is the test of true character.

    Excellent thoughts. Thanks.

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