Wednesday, April 27, 2011

पुष्प ! तुम अति हृदय विशाल हो।


पुष्प ! तुम अति हृदय विशाल हो।
रंग हो, परिपूर्ण हो तुम
प्रेमीजनों की आसक्ति हो ,
सौन्दर्य की अभिव्यक्ति हो तुम,
रूप-रस-गंध-कामना की शक्ति हो





किन्तु न लेश भी मद किया है
शीश धारण सहज होते,
किन्तु न कोई पद लिया है

मान क्या अपमान क्या,
स्नेह क्या, अधिकार क्या ,
देवार्चना रतिश्रृंगार क्या,
मुकुट-शोभित पद-दलित क्या
तुम रहे समभाव से ही।
जिये निस्पृह भाव से ही



जन्म उत्सव में सहजता,
मृत्यु श्रद्धांजलि भी तटस्थता
मोक्षज्ञान हो , बुद्ध से तुम
पुष्प ! तुम अति हृदय उदार हो

10 comments:

  1. पुष्प ! तुम अति हृदय उदार हो

    आपके भाव पुष्प बनकर रूप रंग के साथ साथ वातावरण में खुशबू बिखेर रहें हैं.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  2. उदार हृदय से नि‍कली सुंदर अभिव्‍यक्ति.

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  3. जन्म उत्सव में सहजता,
    मृत्यु श्रद्धांजलि भी तटस्थता
    मोक्षज्ञान हो , बुद्ध से तुम
    पुष्प ! तुम अति हृदय उदार हो


    क्या खूब लिखा है आपने पुष्पों के विषय में ....फूल का सम्बन्ध हमारी जिन्दगी के हर पहलु से होता है ....और उस सम्बन्ध को आपने उद्घाटित किया है ....आपका आभार इस सुंदर और सारगर्भित रचना के लिए ...!

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  4. बहुत सुन्दर विवरण दिया आपने फूलों का एसा लगा मानों उसके मूक शब्दों को आवाज दे दी हो |
    सुन्दर रचना |

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  5. जन्म उत्सव में सहजता,
    मृत्यु श्रद्धांजलि भी तटस्थता ...

    Ye pushp ki abjilaasha hai ya majboori ..... gahri rachna hai ...

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  6. मीनाक्षी जी और नासवा साहब आपका हार्दिक आभार।

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  7. जन्म उत्सव में सहजता,
    मृत्यु श्रद्धांजलि भी तटस्थता
    जन से लेकर मृत्यु और उसके बाद की यत्रा को फूलों के बिम्ब से आपने दक्षता से उकेरा है। इस कविता का दर्शन प्रेरित करता है।

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  8. धन्यवाद मनोज जी।

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  9. सत्य कहा....

    सार्थक सुन्दर मनमोहक रचना...

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  10. पुष्प हर समय का संगी है। बहुत ही सुन्दर।

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