सजल नयन के मोती देखे, किन्तु अपरिचित हृदय वेदना। देखा खिला स्मितमय चेहरा, किन्तु अनसुना मन का रुदना। | |
| भृकुटि बलों का मान तो देखा, देखी नही हृदय-वत्सलता। उपालम्भ की प्रतिध्वनि सुन ली, तो प्रणय गीत की तान भी सुनता! |
किसलय का कोमल स्पर्श लिया तो, कांटो की थोडी चुभन भी लेते। जलधारा स्वयं जब हुए तिरोहित, तो औरों की नैया भी खे देते। | |
| भीगा मन जो शंका की वृष्टि से, तो प्रेम-शपथ-विश्वास भी करते मन विनोद में असमर्थ रहा तो प्रेमदृष्टि दे मनपीडा ही हरते।। |
अभिव्यक्ति में बाधा थी तो, नयन इशारे से ही कह देते। प्रेम-विकल राधा गोकुल में, मोहन प्राण शक्ति दे आते । | |
| दिया न जो दो शब्द प्रेम के, विषबाणों के प्रहार न करते। जो हृदय वेदना हर न सके तो मन-कटुता की पीर न भरते। |
कातर मन-हिय दो बूँद लहू से, माँ का अमृतरस पान विसरते! मन संकुचित उसे शीशार्पण से, जिस थाती से तुम अवतरते ? | |
Monday, April 25, 2011
…. किन्तु अपरिचित हृदय वेदना।
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किस लोक में विचरण करने लगें है देवेन्द्र भाई,हम तो आपके एक एक शब्द से बेहोश होते जा रहे हैं.
ReplyDelete"दिया न जो दो शब्द प्रेम के,
विषबाणों के प्रहार न करते।
जो हृदय वेदना हर न सके तो
मन-कटुता की पीर न भरते।"
इतना ऊपर जाओगे ,तो इस लोक में कैसे आओगे.
कृपया, इस लोक में आ जाईये .मेरे ब्लॉग पर भी
इंतजार हो रहा है आपका.
किसलय का कोमल स्पर्श लिया तो,
ReplyDeleteकांटो की थोडी चुभन भी लेते।
जलधारा स्वयं जब हुए तिरोहित,
तो औरों की नैया भी खे देते।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
दृश्य में पश्य-अभाव की वेदना.
ReplyDeleteगूढ़ रहस्य को अपने आप में छिपाये हुए है इस कविता की हर पंक्तियाँ...समझना बरा ही मुश्किल है क्योकि इन्ही रहस्यों के बीच मानव स्वभाव विचरित है...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति में बाधा थी तो,
ReplyDeleteनयन इशारे से ही कह देते।
प्रेम-विकल राधा गोकुल में,
मोहन प्राण शक्ति दे आते ।
हर पंक्ति अंतस को छू जाती है. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..लाजवाब!
अहा, बस यही हो जाये।
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