Wednesday, April 20, 2011

जो हृदय का गीत था, वह........


जो हृदय का गीत था,
वह अश्रु-कम्पन बन गया।
पुष्प से उल्लसित बसंत,
उजाड मिहिर निर्भव हुआ।।
 
 
कामना में जो अनन्त था,
अब शून्य सा संकुचित है । 
दृष्टि का उत्कर्ष था जो,
अब अदृश्य और अगम्य है।।
जो साज था, आवाज था,
वह विमुख और विमौन है।
जो शब्द था ,अभिव्यक्ति था,
वह अपरिचितो सा कौन है?
 
 
जो प्राण था,संज्ञान था,
अब निष्पंद व निर्जीव है।
जो मान था , अभिमान था,
अवहेलना का प्रतिजीव है।।
जो ज्ञान था, समाधान था,
अब अज्ञानता व निराधान है।
जो विश्वास और विवेक था,
अब संदेहप्रद व अपजान है।।
 
 
जो भरत था, जो राम था,
वह बालि और सुग्रीव है।
जो कृष्ण था, बलराम था,
कुरु- पांडु बैर अतीव है।।
जो हृदय सत्संग था ,वह
अब नयन-कंटक-शूल है।
जो शक्ति था,था द्विभुजबल ,
अब निश्तेज निबल निमूल है।।
 
 
जो प्रेम था, सद्भाव था,
अब द्वेष और विद्वेष है।
जो नेह था ,जो सनेह था,
अब कलुषता व कुनेह है।।


 

11 comments:

  1. छोटे बंदों में बड़े-गहरे भाव.

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  2. वास्तव में सामाजिक वातावरण में असमानता की भयावहता,इंसानी सोच में अनुशासनहीनता व चारित्रिक दुर्वलता के कई कारणों की वजह से इंसान के मूल स्वरुप में ही आमूल चूल बदलाव आ चुका है और रही सही कसर शर्मनाक स्तर के भ्रष्ट व निकम्मों के देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री जैसे सत्य,न्याय व ईमानदारी की रक्षा के लिए सृजित पदों पे बैठ जाने से पूरी हो गयी है.... सभी खतरनाक बदलाव को आपने अपने इन शब्दों में सरलता से व्यक्त कर दिया है....

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  3. जो शब्द था ,अभिव्यक्ति था,
    वह अपरिचितो सा कौन है?

    बहुत ही सुन्दर।

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  4. प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार प्रवीण जी।

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  5. बहुत सुन्दर, बहुत बहुत सुन्दर ,देवेन्द्र जी
    कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी
    जितनी भी प्रशंसा करूँ कम है.
    बहुत बहुत आभार.
    मेरे ब्लॉग पर आयें.आज ही नई पोस्ट जारी की है.

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  6. जो प्रेम था, सद्भाव था,

    अब द्वेष और विद्वेष है।

    जो नेह था ,जो सनेह था,

    अब कलुषता व कुनेह है।


    छोटे-छोटे छंदों में गूढ और गंभीर अभिव्यक्ति. आभार सहित...

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  7. राकेश जी व सुशील जी आप दोनों का प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार।

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  8. जो प्रेम था, सद्भाव था,
    अब द्वेष और विद्वेष है।
    जो नेह था ,जो सनेह था,
    अब कलुषता व कुनेह है। ...

    Sach hai aaj kuch kuch aisa hi hai ... samay badal gaya hai shaayad ...

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  9. इस कविता में विचारों की गति ही इसका सौन्दर्य है।

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  10. कमाल का लेखन, कमाल की अभिव्यक्ति, सुन्दर शब्द संयोजन

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  11. जो विश्वास और विवेक था,

    अब संदेहप्रद व अपजान है..

    Awesome ! I am short of words to praise this beautiful creation .

    .

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