है सब चमकते,
यह रातरानी,
झील का फैला हुआ सफेद पानी,
मखमली घास पर ओस की बूदों का मोती,
धवल हिमगिरि शिखर ल्यौं चाँदी नहाती,
सितारों की जमातें दूर तुमसे, उनीदीं हो रही हैं,
विश्व सारा यूँ पसर कर निश्चिंतमन हो सो रहा
है।
एक तुम ही हो अकेले जो पूरी रात जगते हो।
चाँद! तुम बहुत उदास दिखते हो।
जग समझता है,
कमलिनी तुम बिना खिलती नहीं,
तुम जब साथ हो तो रातरानी सोती नहीं,
चकोर एक टक देखता तुमको पलक गिरती नहीं,
मुक्तामणि तेरे बिन दिप्त जग करती नहीं,
तेरी चंचल किरण के आगोश बिन उदधि की प्यास है
बुझती नहीं।
अमृत पी रहे हैं सब निरंतर तेरी इस चाँदनी का,
जो सिक्त है हरपल तेरे हृदय की वेदना के आँसुओं
से,
अज्ञात कि तुम निरंतर शीतल आग जलते हो।
चाँद! तुम बहुत उदास दिखते हो।
sundar kvita.
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण जी।
Deleteवाह!!!!!बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
वाह, इस उदासी का कारण हर रात किसी न किसी का दुख रहता होगा।
ReplyDeletebhetreen
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