Tuesday, August 23, 2011

तुमको जो हो पसंद वही बात करेंगे



अपनी छोटी क्लास में संस्कृत की एक कहानी पढी थीकहानी का शीर्षक तो याद नहीं किन्तु भाव इस प्रकार था –

एक राजा था । उसके पास एक बूढा व बीमार हाथी था । राजा के मंत्रियों ने राय दी कि हाथी की देखभाल की जिम्मेदारी गाँववालों को दे देते हैं ।राजा ने अपनी मंत्रियों की राय पर हाथी गांववालों को इस कडी हिदायत के साथ के सौंप दिया कि हाथी की देखभाल अच्छे से होनी चाहिये , यदि हाथी के बारे में कोई अशुभ समाचार किसी गांव वाले ने राजा को दिया तो उसे फाँसी की सजा होगी।

बेचारे गाँव वाले, अपना पेट तो भर नहीं पाते ठीक से, और अब ऊपर से हाथी जैसे विशाल पेट वाले जानवर की देखभाल व भरण-पोषण की जिम्मेदारी, अलग से राजा का भयंकर फरमान कि हाथी की अकुशलता की खबर लाने वाले को सीधे फाँसी, उनकी तो जान ही सांसत में थी ।

वे अपनी और अपने बाल-बच्चों की फिक्र कम, बल्कि हाथी की देखभाल और सेवा-सुश्रुषा में ज्यादा लगे रहते । फिर भी बूढा और बीमार हाथी गाँव वालों की सारी तीमारदारी व देखभाल के बावजूद अपनी अंतिम सांस गिनते गिनते एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो गया । अब पूरे गाँव पर एक भारी संकट आन पडा था । आखिर राजा को कौन जाकर हाथी की मृत्यु की खबर सुनायेगा और अपनी मौत की दावत देगा । फिर भी खबर तो पहुँचानी ही थी , तो गांव के एक समझदार बुजुर्ग को यह जिम्मेदारी दी गयी ।

बुजुर्ग राजदरबार में हाजिर हुआ , हाथी का हाल राजा को इस तरह सुनाया - महाराज ! हाथी न उठता है , न बैठता है , न खाता है, न पीता है, न साँस लेता है, न साँस छोडता है , न सोता है, न जगता है । राजा ने झुँझलाकर बोला- यह क्या बकवास है, क्या हाथी मर गया । बुजुर्ग ने सहज भाव से उत्तर दिया- महाराज आप हमारे मालिक हैं, यह तो आप ही कहने का अधिकार रखते हैं, मैं तो बस हाथी का हाल बयान कर रहा था ।

हमारे लोकशाही में अच्छे व सफल मैनेजर उसी समझदार बुजुर्ग की तरह हमेशा ही बडी चतुराई से अपने ऊपर वाले शासक को किसी हाथी के मरने की खबर ऐसी ही समझदारी से देते हैं । आखिर सच को सच कहकर कौन फाँसी पर चढना चाहता है ?

2 comments:

  1. इसी अर्धसत्य में सत्य छिपा रहता है।

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  2. टिप्पडी के लिये धन्यवाद प्रवीण ।

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