Sunday, August 28, 2011

...निरस ,विषद, गुनमय फल जासू।


तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में संत की परिभाषा बडे ही सटीक ढंग से की है -


संत हृदय नवनीत समाना ,
कहा कबिन पर कहइ न जाना ।
निज परिताप द्रवहिं नवनीता,
पर दु:ख दु:खी संत सुपुनीता ।
संत सुभाव जु सहज कपासू,
                  निरस,विषद,गुनमय फल जासू ।

तात्पर्य यह है कि अनेक कवियों ने संत हृदय की कोमलता की तुलना नवनीत ( मक्खन ) से की है , किंतु यह तुलना अपूर्ण है क्योंकि नवनीत तो अपने ही ताप ( गरमी) से पिघल जाता है , जबकि संत का हृदय तो दूसरे के दु:ख से ही द्रवित होता है ।   संत का स्वभाव तो कपास के वृक्ष जैसा होता है , जो किसी रस (भोग-विलास की लालसा) से रहित, विस्तारपूर्ण (वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना से ओत-प्रोत) , व उसका फल अनेक गुणों (ऐसी योग्यतायें जो परमार्थ के काम आती हैं ) से युक्त होता है ।

एक चौहत्तर वर्ष का बुजुर्ग व्यक्ति जब आम देशवासियों के कल्याण हेतु नि:स्वार्थ भाव से अपने प्राण व शरीर की कदापि चिंता न करते हुये यदि इतना शारीरिक तप कर रहा है और हम सबकी ही भलाई हेतु कष्ट उठा रहा है , यही तो संत-स्वभाव कहलाता है ।

महात्मा गाँधी ने अनेकों बार देश व समाज के कल्याण हेतु शारीरिक तप व त्याग का कठिन उदारण प्रस्तुत किया ।उनके जीवन का अध्ययन करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि उनके कर्म व विचार में प्रथम स्थान  साधारण जन व समाज की वेदना का उन्मूलन था,और वे इसके लिये किसी भी हद तक के त्याग,तपस्या, बलिदान व अहिंसक संघर्ष करने को सदैव तत्पर रहते थे ।इसीलिये तो वे हम सबके- हर देशवासी के बापू थे और हम उन्हें अपना राष्ट्रपिता मानते हैं।

प्रसन्नता की बात यह है कि महात्मा गाँधी आज भी हमारे जनमानस, नई पीढी, के विचार व व्यवहार में उतने ही प्रासंगिक व प्रेरणाश्रोत बने हुये हैं , जितना वे स्वयं अपने जीवन काल में व अपने समकालीन पीढी के लिये थे ।वे इसी तरह हमारे देश व समाज के लिये निरंतर आदर्श व प्रेरणाश्रोत बनें रहें, हम सबको यह मंगल-कामना निरंतर करते रहना चाहिये।

यह लेख मेरे ब्लाग का पचासवाँ लेख है, और मुझे हार्दिक प्रसन्नता यह हो रही है कि मैं इस लेख में यह विशेष व सामयिक चर्चा कर पा रहा हूँ ।

4 comments:

  1. ब्लॉग के पचासवें लेख पर बधाई । सचमुच पचासवां लेख देश के एक ऐसे संत पर लिखा गया है जो अतुलनीय है ।

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  2. अर्धशतक का अर्थ है कि शतक ही अर्ध है, आशा शत शतकों की है। जो मरे दीन के हेत, सूरा सोही।

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  3. आपका यह पचासा शीघ्र एक शानदार शतक का भी आभास दे रहा है.
    अनुपम छक्का लगाकर पूर्ण किया है आपने यह पचासा.
    यादगार रहेगा हमें यह.
    बहुत बहुत आभार,देवेद्र भाई.

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  4. Ardha shatak ki Badhaai. Aur shatak, dwishatak, trishatak aur shatshatak ke liye shubh kamnayen.

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