Wednesday, August 24, 2011

तोता और गधा


एक तोता और एक गधा साथ-साथ हवाई-जहाज से यात्रा कर रहे थे । तोता बहुत नटखट व शैतान स्वभाव का था। जब भी विमान-परिचायिका उसके पास आती या पास से गुजरती, वह उसे छेडता, भद्दे कमेंट्स पास करता,विमान-परिचायिका करती भी क्या! वह ड्यूटी पर थी, तोते के व्यवहार को नजर अंदाज करते हुये यात्रियों की सर्विस में व्यस्त थी । 


यह देख गधे को मजा आने लगा था, और तोते की देखा देखी अब वह भी विमान-परिचायिका को छेडने, फब्तियाँ कसने में  तोते के संग शामिल हो गया। जब विमान-परिचायिका को यह सब  बर्दास्त के बाहर हो गया तो इसकी शिकायत विमान के पाँयलट से की । पाँयलट को तोते व गधे के इस अशोभनीय व्यवहार पर बहुत गुस्सा आया और उसने विमान-परिचायिकाओं और स्टीवार्ड्स को हिदायत दिया कि तोते और गधे दोनों को विमान से धक्के मारकर बाहर फेंक दें ।

वही हुआ, आखिर दोनों को उडती हवाई जहाज से धक्के मारकर बाहर फेंक दिया गया। विमान से बाहर गिरते ही गधा तो चकरघिन्नी की तरह चक्कर खाते नीचे की ओर गिरने लगा, और डर और भय के मारे चीखने चिल्लाने और भगवान से जान बचाने की दुहाई करने लगा। उधर तोता विमान  से बाहर फेके जाने पर भी निश्चिंत और  अब भी मजे ले रहा था। उसने बदहवास गधे से पूछा, 'अबे तुझे उडना आता है ? ' गधे ने जबाब दिया 'नहीं' , तो तोता उसकी बेवकूफी का मजाक उडाते बोला , ' अबे जब तुझे उडना नहीं आता तो एयर होस्टेस को क्यों छेडा, तूने क्यों पंगा लिया? देख! मुझे तो उडना आता है। '
 
प्रबंधन की भाषा में कहें तो तोता का अपनी हरकतों के लिये प्लान-बी था , यानि विमान से बाहर धक्का देकर फेंके जाने पर भी उसको कोई खतरा नहीं था, क्योंकि उसे उडना आता था, जबकि गधे के पास कोई  प्लान-बी नहीं था , उसने पंगा तो ले लिया, परंतु उससे होने वाले खतरों का उसे न तो आभाष था और न ही उससे निपटने का उपाय।
 
हर मैनेजर को अपने डी.एन.ए. की सही जानकारी होना कि वह तोता श्रेणी में आता है अथवा गधा श्रेणी में आता है , प्रबंधन ज्ञान व कौशल का प्रथम सोपान है । गधा श्रेणी का मैनेजर जब भी तोता श्रेणी के मैनेजर की देखा-देखी कोई एडवेंचरस हरकत करता है, तो वह भारी मुसीबत को न्योता देता है ।
 
अपने अनुभव से अपनी सही श्रेणी जानते हुये मैं तो हमेशा किसी ऐसे एडवेंचर से दूर रहता हूँ जो कि सँभालना मेरे कूबत से बाहर है । आप भी अपनी श्रेणी को ठीक-ठीक जान लें, और उसी के मुताबिक जीवन में कोई चाँस लें, बेमतलब के बखेडों से हमेशा बचे रहेगे ।

11 comments:

  1. लगता है गधे को प्रबंधन स्कूल में भेजना चाहिये.

    वैसे बड़ी गंभीर विचार बड़ी आसानी से समझाया है. कोई भी काम करते वक्त सभी तरह से विचार कर लेना आवश्यक है.

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  2. प्रबंधन का अच्छा पाठ पढाया है आपने देवेद्र भाई.

    पर मैं सोचे जा रहा हूँ कि वह कौनसी एयरलाइन है
    जिसमे तोते और गधे को भी उड़ने का टिकट मिल जाता है.
    क्यूँ न एक्सपेरिमेंट करके देखा जाये.

    आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे कृतार्थ किया है.
    आभारी हूँ आपका.

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  3. रचना जी व राकेश जी, टिप्पडी के लिये धन्यवाद ।

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  4. Great One!! I don't know why it is removed from FB.

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  5. ये तोता ताऊ का हीरामन है और गधा ताऊ का रामप्यारे है, आज आपने ताऊ के इन दोनों चरित्रों को स्पष्ट भाषा में समझा दिया है. सुंदरतम प्रबंधन सीख.

    रामराम.

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  6. अब देखते हैं कि हम तोते हैं कि गधे।

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  7. काम की बात कथासार के साथ । आभार सहित...

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  8. रामपुरिया जी, प्रिय प्रवीण जी एवं सुशील जी , टिप्पडी के लिये हार्दिक धन्यवाद।

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  9. बड़ी सहजता से आधुनिक जीवन में अत्यंत उपयोगी मंत्र सिखाती है यह पोस्ट। लेकिन एक सत्य तो हमेशा बना रहता है कि यह बात तोता ही बेहतर समझ पाता है। गधा तो पढ़कर भी गधा ही रहेगा..!

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  10. Misra ji, namaskar. akhir apne aap ko nahi hi rok paye. Jo raj janane ke liye singapore me log aap ke pichhe pade rahte the, wo raj aap ne aaj sari dunia ko bata dia. thanks

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