Sunday, August 28, 2011

.....संघे शक्ति कलयुगे ।


देश में चल रही वर्तमान गहमा-गहमी, भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठी बहस, ,जन-आंदोलन, धरना , अनसन-हडताल और परिणामस्वरूप संसद द्वारा जन-लोकपाल बिल के मुद्दे पर बहस और प्रस्ताव का पास होना निश्चय ही देश के लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक घटना  है , किंतु इस तथ्य  को , जो कि सरकार, व कुछ सांसदों व राजनीतिक दलों द्वारा उठाया जा रहा है और इन आंदोलनों व जनाग्रहों से देश की लोकतांत्रिक व संवैधानिक व्यवस्था को हो सकने वाले दूरगामी खतरों के ध्यान में रखते हुये चिंता व्यक्त की जा रही है , कि यह मुद्दा इतना सरल व सीधा नहीँ है जितना आंदोलनकारियों व इसके अगुआ लोगों द्वारा बताने की कोशिश हो रही है , को भी नकारा नहीं जा सकता । पर इस अति आवेश पूर्ण वातावरण व सरकारी असमंजस की परिस्थितियों  में एक तथ्य स्पष्ट दिखता है कि आज देश की राजनीतिक व्यवस्था, सरकार, सरकारीतंत्र और इसकी नौकरशाही एक दोराहे पर अनिर्णय व अनिश्चय की स्थिति- किंकर्तव्यम् किं- न कर्तव्यम् में खडी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 1991 में किये गये उल्लेखनीय सुधारों व उदारीकरण के पूर्व भारतीय सरकार और नौकरशाही की मुख्य भूमिका निषेधात्मक थी - परमिट और लाइसेंस राज में नौकरशाह, सरकारी अधिकारी और मंत्री मुख्यतया निषेधाज्ञा जारी करने के अभ्यस्त थे।उस अवधि में प्राइवेट क्षेत्र की भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमिका न्यून थी, सब कुछ सरकारी क्षेत्र के नियंत्रण में होने, आपूर्ति के सीमित संसाधनों व स्तर के कारण स्वाभाविक रूप से जन आकांक्षायें व माँग का दबाव भी कम था।चाहे राशनकार्ड लेना हो, पासपोर्ट बनवाना हो,गैस का कनेक्सन लैना हो,सरकारी कोटे में मकान या प्लाट आबंटित कराना हो, कार या स्कूटर खरीदना हो या उनका लाइसेस बनवाना हो, रेल या हवाई जहाज यात्रा का आरक्षण कराना हो,दूरसंचार पर लम्बी दूरी की काँल करनी हो, लोग लम्बी प्रतीक्षा सूची व लम्बी लाइन लगाने के अभ्यस्त थे।

किन्तु अर्थव्यस्था के उदारीकरण, वैश्वीकरण व खुली बाजार व्यवस्था के आने से लोगों की आकांक्षाएँ, जन-सेवाओं के प्रति अपेक्षायें , उपभोग की वस्तुओं व सेवाओं की माँग में भारी वृद्धि हुई है , जिनको पूरा करने में सरकार व सरकारी तंत्र असफल व ळाचार दिखता है।

1991 के बाद देश का आर्थिक व सामाजिक ढाँचा तो बदल गया किन्तु सरकारी तंत्र व उसका प्रशासनिक ढाँचा जस का तस रहा,सिवाय आंशिक व छिटपुट सुधारों के ।हमारा सरकारी तंत्र अभी भी अपने निषेधात्मक मनोवृत्ति से नहीं बाहर निकल पाया है।विभिन्न जनसेवाओं को प्रदान करने में होनेवाली हीला-हवाली, नाकारापन व असफलता से जनता का सरकार व सरकारी तंत्र के प्रति आक्रोश बढता जा रहा है ।और यह जनआंदोलन आमजनता की सरकारी तंत्र के प्रति उपजी इन्हीं निराशाओं  के विरुद्ध  प्रतिक्रिया कह सकते हैं।

तो सरकार के सामने आज सबसे बडी चुनौती है- सरकारी तंत्र व जनसेवा निकाय़ों का ढाँचागत व आमूल-चूल परिवर्तन,इनकी प्रदर्शन क्षमता को जनसाधारण की माँग व अपेक्षा के अनुकूल स्थापित करना ।यह है तो एक कठिन चुनौती, क्योंकि कोई नयी व्यवस्था तो फिर भी सुगमता से स्थापित हो जाती है, किंतु किसी वर्तमान व्यवस्था का ढाँचागत परिवर्तन बड़ा ही दुष्कर कार्य होता है , क्योंकि यह प्रक्रिया स्वयं के अनेक अंतर्विरोधों का सामना करने को बाध्य होती है ।फिर भी इसे करना असंभव भी नहीं ।

आशा की किरण हैं देश में वर्तमान कुछ महत्वपूर्ण जनसेवाओं से संबंधित क्षेत्र व विभाग, जिनमें पिछले एक-डेढ दशकों में उल्लेखनीय सुधार हुये हैं- जैसे- टेलीफोन व मोबाइल सेवाएँ, बैंकिंग सेवाएँ, संसदीय व विधान सभा के आम चुनाव, समाचार व मीडिया ।इन क्षेत्रों में आधुनिक सूचना तकनीकि के उपयोग, व ढाँचागत सुधारों के द्वारा सेवाओं की दक्षता व गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, और हमारे ये क्षेत्र ग्राहक-सेवा में निश्चय ही आज विश्वस्तरीय सेवा प्रदान कर रहे हैं।

इंटरनेट से रेल टिकट आरक्षण, पासपोर्ट के लिये आवेदन, बिजली बिल,टेलीफोन बिल, प्राँपर्टी टैक्स का आँन-लाइन भुगतान, लैंड व प्रापर्टी का आनलाइन रिकार्ड व संबंधित आवश्यक कागजादों को आँन-लाइन डाउनलोड करने की सुविधा, जैसे महत्वपूर्ण व सकारात्मक कदम हैं, जो कि जनसेवाओं के गुणवत्ता व दक्षतापूर्ण प्रदायगी में निश्चय ही मील के पत्थर साबित हो रहे हैं। भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया सर्वभारत यूआईडी प्रोजेक्ट आधार इस दिशा में महत्वपूर्ण ढाँचागत आधार सिद्ध हो सकता है।  

समस्या के वृहत् स्तर को देखते हुये मात्र सरकारी प्रयास नाकाफी होगा। समस्याओं के समाधान में नवाचार ( Innovative Solutions) , उचित तकनीकी साधनों का उपयोग व कार्यकुशल मानवसंसाधन का सफल प्रबंधन सरकारी व निजी क्षेत्र, दोनों, के साझा प्रयास, सहयोग व  आपसी भागीदारी से ही संभव है। इस दिशा में सटीक तरीके से डिजाइंड पीपीपी परियोजनायें  आने वाले समय में जनसेवाओं    की सक्षम व संतोषजनक प्रदायगी में अपरिहार्य व महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। कल के सुरक्षित, सुनहरे व उन्नत भारत व भविष्य के लिये यह संगठित व साझा प्रयास विकल्प-रहित है।

2 comments:

  1. मिल जुलकर चलना ही भविष्य की इबारत है।

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  2. सरकार से उम्मीद ही कर सकते हैं...

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