मैने जीवन में अनेकों बार
ऐसा अनुभव किया है- सामने जा रही बस छूट गयी, शायद
अतिरिक्त प्रयास करते तो दौड़ कर पकड सकते थे, परीक्षा के दो
दिन पहले आलस्य कर गये, तैयारी मे थोड़ा ढीलापन रह गया वरना
और अच्छा कर सकते थे, लापरवाही में समय से बिल जमा नही किये
और बिजली या टेलीफोन कट गया और बे-वजह की परेशानी उठानी पडी,एजेन्ट
के रिमाइन्डर देने के बावजूद समय से प्रीमियम नही भरा और मेरी पालिसी लैप्स हो गयी
और उनका रिन्युवल कराने में भारी जहमत उठानी पडी,क्रेडिट
कार्ड का ड्यू समय पर नहीं भरा और खामखाह भारी पेनाल्टी भरनी पडी- कितने गिनाऊँ ,
अनगनित उदाहरण है जीवन में मेरी लापरवाही व आलस्य के जिनके कारण
मेरी कई बार तगडी आर्थिक क्षति हुई है या प्लान के मुताबिक जीवन में लक्ष्य व
सफलता प्राप्त करने से वंचित रह गया जिनका अब भी मन में मलाल है।पर इस अवसर निकलने
के बाद में निरर्थक पछतावा करने का क्या औचित्य और प्रयोजन है?
मैं कभी-कभी खुद से भी यह
प्रश्न करता हूँ कि जब सुनहरा अवसर सामने हो और आवश्यकता है सिर्फ और सिर्फ आगे
बढने और उसे प्राप्त करने की, तो फिर क्यों यहाँ जड़वत सा हो जाता हूँ और इसको अपने
सामने से गुजरते और बस जाया होते देखते रह जाता हूँ।
मुझे बचपन का एक दृश्य आज भी
याद है। मै बारह-चौदह वर्ष का रहा हूँगा जब मैं एकबार अपने एक दूर के रिश्तेदार के
साथ उनकी जीप में रात्रि में जंगल की यात्रा पर गया।मेरे वे रिश्तेदार शिकार के
शौकीन थे।रात के ग्यारह-बारह बजे घने जंगल मे बहते नाले के पास जहाँ तपती गरमी के
दिनों में आसपास के ज्यादातर पानी के श्रोत सूख जाने के कारण वन जीव, खासतौर पर
हिरन, प्राय: अपनी प्यास बुझाने आते हैं, गाड़ी की
जलती हेडलाइट के सामने लगभग सौ मीटर की दूरी पर एक हिरन नीलमणि सी चमकती आँखों के
साथ खडा था। जली हेडलाइट के साथ जीप रुकी और शिकारी लोग चौकन्ने व सक्रिय हो
गये।शिकारी महोदय ने राइफल उठाया और इत्मिनान से हिरन पर निशाना साध लिया।
मेरा हृदय यह अप्रत्याशित
दृश्य देख जोरों से धड़क रहा था और बालमन बस यही आग्रह कर रहा था कि हिरन को शिकारी
से जान बचाने के लिये जोर से छलाँग लगाते और चौकड़ी भरते जंगल में नौ-दो ग्यारह हो
जाना चाहिये।पर यह क्या!हिरन तो मूर्तिवत खड़ा था, भागकर जान
बचाने के बजाय वह स्तंभित सा जीप की जलती हैडलाइट को एकटक देख रहा था।
पर मेरे मन में अब तक यह
प्रश्न अटका था कि आखिर जब हिरन के पास मौका था कि वह भाग कर अपनी जान बचाये तो वह
स्तंभित सा वहाँ खड़ा, अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा क्यों करता रहा?
अब इसके पीछे का तथ्य जानकर कि
जीप की तेज हेडलाइट में हिरन चुँधियाई आँखों के कारण अँधा होकर असहाय,जड़वत
खड़ा रहता है,भाग ही नहीं सकता,उस घटना
का समाधान तो मन को मिल जाता है, किंतु अच्छे अवसर के सामने
होने पर मनुष्य का मन व मष्तिष्क का जड़वत हो जाना.और अपनी यथोचित सक्रियता की अनुपस्थिति में
जीवन में मिले एक सुनहरे अवसर को जाया चले जाने देना , एक
पहेली की तरह मन को परेशान व आंदोलित करता है।
अब इस अवसर की उपस्थिति में
मनुष्य की प्राय: जड़ता, निष्क्रियता का जो भी मनोवैज्ञानिक कारण व समाधान हो, परंतु
आप मुझसे इस बात पर अवश्य सहमत होंगे कि अवसर के जाया चले जाने के उपरांत अवसाद या
परेशानी दिखाना वैसे ही निरर्थक है जैसे पानी के ऊपर लाठी पीटना।
का पछताये अवसर बीते.......।
सच कहा आपने, हम तो बिना सर्चलाइट के जड़वत हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण।
ReplyDeleteसही कहा है आपने बाद में तो हाथ खाली रह जाता है।
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप।
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