वैसे
शौकिया तौर पर, और ज्यादा सही कहें तो मनमौजी तौर पर, नियमित लिखता ही हूँ और इसलिये लिखता हूँ कि लिखने में मजा आता है, किंतु
मन के एक कोने में बैठा स्थाई स्व-आलोचक, जो
कि चाहे आप जो भी कर लें या तीर मार लें, वह
हमेशा असंतुष्ट व परेशान आत्मा बना रहता है, नाक-भौं
सिकोड़ते प्रायः भुनभुनाता रहता है कि- इतनी मगजमारी करते हो, इतना वक्त जाया करके ब्लॉग लिखने,वह
भी हिंदी में, जैसा फालतू व मनहूस काम करते हो, पर तुम्हारा लिखा कोई पढ़ता-वढ़ता तो है
नहीं, सिवाय तुम्हारी पत्नी और बच्चों, और
वह भी उन्हे जबरदस्ती पकड़कर पढ़ाते हो, और तुम्हारे एक-दो सहृदय मित्रों के जो
कि दोस्ती की खातिर तुम्हारे बकवास लेख को बर्दास्त कर लेते हैं।
तो
जैसा पहले ही बताया कि यह मनमौजीपना वाला लेखन जारी है, और जायज कारण सिर्फ यही है कि लिखने में मजा आता है।आपको बताऊँ , कई
बार यह स्ट्रेस-बस्टर का काम करता है। किसी बात को लेकर मन में उमड़-घुमड़ व
तनाव हो,जैसे ही मन के विचार शब्द का रूप लेकर
मोबाइल फोन की स्क्रीन पर पंच-इन होते जाते हैं,मन का सारा उमड़-घुमड़ व तनाव साथ-साथ काफूर होता जाता है।
लिखते
ही मन को आश्वासन मिल जाता है कि चलो! मैंने अपने मन के बात-विचार लिख दिये, अब पढ़ने वाले जानें और कोई नहीं भी पढ़ता तो ऊपर वाला जाने । (ऊपर
वाला यानि भगवान जिसके भरोसे आप वह सब छोड़ना पसंद करते हैं जो आप करना नहीं चाहते
या जिसे करना या उससे पार पाना आपके बूते के ही बाहर है।)
अब
यह अदृश्य ऊपर वाला, या आपके बेचारे पाठक आपके बकवास लेखन पर कितनी गम्भीरता से तवज्जो
देते हैं, यह तो वे ही बेहतर जानते होंगे, पर
गोया आपको तो कमोवेश यह तसल्ली सही हो जाती है कि चलो किसी को तो अपने मन की बात
कह दी मैंने , भला आपके मन के लिये इससे बेहतर
स्ट्रेस-बस्टर क्या हो सकता है।
इसीलिये
मैं तो कहता हूँ कि यह शौकिया लेखन किसी जॉगिंग से कम नहीं, कि जिसे सुबह-सुबह उठकर करने में जोर
तो बहुत लगता है, प्रतिदिन खुद को अपने अंदर से धकियाना तो पड़ता है, पर जब एक बार जॉगिंग पूरी कर लेते हैं,फिर तो पूछिये मत , आपका मन व शरीर
दोनों बड़ा हल्का अनुभव करते हैं, ऐसे लगता है मानों दोनों फूल की तरह
हल्के हो गये हैं व हवा में तैर से रहे हैं, तब कोई बोझ, दबाव या तनाव नहीं होता।
इसीतरह
लिखने के बाद आप मन में फूल की तरह हल्का व तनावरहित अनुभव करते हैं, जैसे जॉगिंग के उपरांत आप कुछ समय तक विचारों के प्रवाह से मुक्त, वर्तमान में अवस्थित अपनी हर गहरी श्वाँस को स्पष्ट अनुभव करते होते
हैं, उसी तरह लिखने के उपरांत आपका मन भी पूर्ण विचारशून्यता अवस्था व
वर्तमान में अवस्थित आपके मन-मस्तिष्क के हर सूक्ष्म संवेदना व स्पंदन तरंगों को
स्पष्ट अनुभव करता होता है,एक तरह से आप स्वयं के अंतर् को एक द्रष्टा
रूप में देखते होते हैं। (यदि असहमत हों
तो क्षमा करेंगे किंतु मैं तो मात्र अपने व्यक्तिगत अनुभूति को यहाँ इमानदारी से
साझा कर रहा हूँ।)
इस
तरह लिखने की आदत की सबसे अच्छी उपलब्धि तो यह है कि आप स्वयं के प्रति कुछ पल
द्रष्टा भाव प्राप्त कर लेते हैं,अपनी
बेवकूफियों,गलतियों व अंतर्दुविधाओं को भी दूसरों
से कह देने व उनपर खुद भी मुस्करा सकने का साहस व सहजता स्वयं के अंदर जागृत हो जाती है।
और
अगर मेरी ये सारी बातें आपको बेवकूफी व
बकवासभरी लगें व उनपर आप हँस रहे हों तो इसपर भी मैं सहज आनंदित व हृदय से आभारित
होता हूँ कि आपने मेरी इन निरर्थक बातों
को भी पढ़ने का वक्त तो दिया।
इस
तरह कहें तो लिखने की इस आदत से हृदय में सभी के प्रति आभार व कृतज्ञता का भाव भी
उत्पन्न होता जा रहा है।तो लेखन के शगल से मन में जो आनंदभाव अनुभव हो रहा वह आपसे
साझा करने से स्वयं को न रोक पाया, आशा है आप भी इसे पढ़ आनंदित अनुभव कर पाये होंगे।
आप एकदम सही कह रहे हैं। लेखन बहुत सारी समस्याओं का हल है।
ReplyDeleteअपने से बतियाने का सशक्त माध्यम है लेखन..
ReplyDeletehaan ye bilkul theek kaha hai aap ne
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